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श्री श्री रविशंकरजी से एक मार्मिक अपील

प्रतिष्ठा में

श्री श्री रविशंकर जी

आर्ट आॅफ लिविंग

भारत

संदर्भ: विश्व सांस्कृतिक उत्सव आयोजन (11-13 मार्च, 2016) स्थल

विषयः स्थान परिवर्तन हेतु अनुरोध

श्रृद्धेय गुरुदेव,

प्रणाम।

हमने आपको हमेशा शांति और प्रेम के मार्ग पर चलने और चलाने वाले आध्यात्मिक पुरुष के रूप में जाना हैं। जहां अशांति हुई, वहां शांतिदूत के रूप मंे आपको अपनी भूमिका निभाते देखा है। आपकी पहल पर आयोजित विश्व सांस्कृतिक उत्सव को लेकर अशांति का माहौल बनता देख हम चिंतित हैं।

चिंता इसलिए भी है कि कई वर्ष पूर्व आपने स्वयं यमुना निर्मलीकरण मंें सहयोगी दिल्ली आयोजन का नेतृत्व किया था और आज आप स्वयं यमुना नदी की अविरलता-निर्मलता के सिद्धांतों को भूलते अथवा जानबूझकर नजरअंदाज करने की मुद्रा मंे दिखाई दे रहे हैं।

माननीय, आप एक आध्यात्मिक शक्ति हैं।

1. आखिरकार आप कैसे भूल सकते हैं कि…दिल्ली की यमुना मंे आज भले ही जल की जगह मल बहता दिखता हो, किंतु ऊपर बहता मल ही सिर्फ नदी नहीं है ?

2. कैसे भूल सकते हैं कि सिर्फ बहने वाला जल, नदी नहीं होता; जबकि नदी, एक संपूर्ण जीवंत प्रणाली के रूप में परिभाषित की गई है ?

3. कैसे भूल सकते हैं कि तल, तलछट, गाद, रेत, ढाल, बाढ़ क्षेत्र, वनस्पति, जीव और पंचतत्वों से संपर्क मिलकर ही प्रत्येक नदी के गुण व जीवंतता तय करते हैं ?

4. कैसे भूल सकते हैं कि एक नदी के जीवन में बाढ़ भूमि की भूमिका उन फेफङों की तरह होती है, जिन पर अधिक दाब अथवा उनकी अशुद्धि होने पर जीव के संास पर संकट आ जाता है ?

बाढ़ भूमि को आप नदी मां के उन स्तनों की तरह भी मान सकते हैं, जो शिशु को उतना और तब तक ही लेने की इज़ाजत देते हैं, जब तक कि शिशु के जीवन के लिए जरूरी हो।

5. क्या यह भूलने की बात है कि बाढ़, नदी की संपूर्ण जीवंत प्रणाली का शोधन करने के अलावा बाढ़ क्षेत्र और आसपास के भूजल की समृ़िद्ध भी सुनिश्चित करती है।

अतः बाढ़ को आज़ादी चाहिए, निर्माण की बंदिशें नहीं।

6. दिल्ली के पास भूजल रिचार्ज के ढांचों पर हमने पहले ही कब्जा कर लिया है। ले-देकर यमुनाजी की बाढ़ भूमि बची है। मोटे स्पंज की भांति अपने गहरे एक्युफर में संजोकर रखने की क्षमता के कारण ही वजीराबाद से ओखला बैराज के बीच की बाढ़ भूमि, दिल्लीवासियों की जन-जरूरत की जलापूर्ति हेतु एक बङे ’रिजर्व ग्राउंड वाटर बैंक’ की तरह है। इसे दूषित कर.. स्पंज पर दबाव डालकर, क्या आयोजन इस ग्राउंड वाटर बैंक को कंगाल बनाने का काम नहीं करेगा ?

क्या इससे दिल्लीवासियों के लिए जल स्वावलंबन की पहले से कम संभावनायें और कम नहीं हो जायेंगी ?

7. क्या आप दावा कर सकते हैं कि यमुना बाढ ़भूमि पर आयोजन के एक हजार एकङ तक के फैलाव, निर्माण, विशाल स्टेज, पार्किंग, कचरा, आने वालों के मल-मूत्र विसर्जन का इंतजाम, तीन दिन के समय में 35 लाख लोगों की आवाजाही व करीब सुनिश्चित कर आर्ट आॅफ लिविंग, नदी जीवंतता के सिद्धांतों की रक्षा करने का काम करने जा रहा है ?

8. उत्सव के तैयारी कार्य, पहले ही नदी बाढ़ भूमि की वनस्पति और माटी में मौजूद लाखों जीवंत प्राणियों को रौंदने का काम शुरु कर चुके हैं। आखिरकार आप कैसे दावा कर सकते हैं कि आयोजन, नदी जीवंत प्रणाली के घटकों को कोई नुकसान नहीं पहुंचायेगा ?

9. आप कैसे दावा कर सकते हैं कि उत्सव आयोजन स्थल का चुनाव, नदी जीवंतता के प्राकृतिक सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं है; जबकि यह नदी जीवंतता के प्राकृतिक सिद्धांतों का ही नहीं, बल्कि यह माननीय राष्ट्रीय हरित पंचाट व देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गये नदी संरक्षण संबंधी पूर्व आदेशों का भी उल्लंघन है ?

10. ज्ञात हुआ है कि याचिका पर पंचाट के आदेशा पर तैयार मौका मुआयना रिपोर्ट ने भी माना है कि उत्सव तैयारी हेतु किया जा चुका विध्वंस व निर्माण, हरित पंचाट के जनवरी, 2015 के आदेश की अवमानना है; फिर भी आप आयोजन स्थल के चुनाव को उचित कैसे ठहरा सकते हैं ?

माननीय, नदी जीवंतता के सिद्धातों के आधार पर न्यूजीलैंड और इक्वाडोर जैसे आधुनिक मान्यता वाले देशों ने हाल के वर्षों में नदी को ’नैचुरल पर्सन’ का संवैधानिक दर्जा दिया है, किंतु भारत, तो बहुत पहले नदियों को मां (नैचुरल मदर) मानने वाला देश हैं। विश्व सांस्कृतिक उत्सव में हमें 155 देशों से लोगों केे आने की सूचना है। दुनिया के तमाम ऐसे देश जो नदियों को मां नहीं कहते, किंतु वे भी आज नदियों के साथ शुचिता का व्यवहार सुनिश्चित करने में लग गये हैं।

उन्हे क्या संदेश देंगे हम ?

यमुना जी की जीवंतता के घटकों के साथ दुव्र्यवहार कर, क्या आप भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक सोच का उचित प्रतिबिंब, दुनिया के सामने पेश करेंगे ?

माननीय, हमने सुना है कि आयोजन के दौरान एक सर्वधर्म सत्र भी होगा।

इस सत्र के जरिये क्या हम दुनिया को यह बताने जा रहे हैं कि नदियों को मां मानने वाले देश-भारत के आध्यात्मिक गुरु और सभी धर्मों के प्रमुख, सिर्फ नाम के लिए मां मानते हैं; असल में उनका व्यवहार कुछ और है ?

क्या हमारा यह व्यवहार, दुनिया का आध्यात्मिक-सांस्कृतिक नेतृत्व करने के पेश भारतीय दावे का विरोधाभास पेश नहीं करेगा ?

बगल में बहता मल और उसके सामने भारतीय सांस्कृतिक उत्सव की झलक कितनी उचित होगी ?

यदि यमुना प्रेमियों ने मौके पर पहुंचकर विरोध किया और उसे रोकने के लिए बल प्रयोग करना पङा, तो यह आपकी ओर से शांति और प्रेम का संदेश होगा अथवा अशांति और हिंसा का ?

माननीय, आयोजन के लिए ग्रेटर नोएडा में जे पी, बुराङी में निरंकारी समाज आयोजन का स्थान आदि कई स्थान विकल्प हो सकते हैं; फिर यमुना जी की छाती पर ही आयोजन की जिद्द क्यों ?

हो सकता है कि यमुना भूमि को आयोजन के लिए चुनने में आयोजक व आयोजन को कोई सुविधा हो, किंतु क्या आप अपनी जिद्द के पक्ष मंे कोई एक तर्क दे सकते हैं कि आर्ट आॅफ लिविंग के आयोजन से यमुना नदी मां को कोई सुविधा मिलेगी ? एंजाइम लाकर दिल्ली के नालों में डालने के आपके तर्क और यमुना मां की छाती को रौंदने के इस कृत्य का आपस में कोई लेना-देना नहीं है; यह सच स्वयं आपका अंतर्मन जानता ही होगा।

माननीय, आप समर्थ हैं। आपको सत्ता का समर्थन प्राप्त है। भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय, स्वयं इस आयोजन के साथ है। हो सकता है कि तमाम विरोध के बावजूद, आप इस आयोजन को संपन्न भी कर लें, किंतु क्या यह एक आध्यात्मिक शक्ति के सोचने के लिए यह प्रश्न हमेशा शेष नहीं रह जायेगा कि आपके लिए एक नदी मां बङी है या व्यक्तिगत जिद्द ? एक बार आपने आयोजन कर लिया, तो यह एक नजीर हो जायेगी। इस नजीर की आङ में यमुना जी की छाती एक बार नहीं बार-बार रौंदी जायेगी। क्या आपको यह स्वीकार्य होगा ? कैसी नजीर पेश करने जा रहे हैं आप ??

माननीय, आपसे अनुरोध है कि स्थान चयन को निजी सुविधा और प्रतिष्ठा का मुद्दा न बनायें। संस्कृति का उत्सव है; मां यमुना का उल्लास बना रहने दें; स्थान बदले; उचित स्थान चुने। उदार मन की एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करें कि वर्तमान इससे प्रेरित हो सके; गुणगान कर सके।

माननीय, आस्थाओं के टूटना अच्छा नहीं होेता।

भारत इस वक्त लोकतंत्र के सभी स्तंभों के प्रति आस्था के टूटने के दौर से गुजर रहा है। आपसे अनुरोध है कि कृपया आध्यात्मिक-धार्मिक शक्तियों के प्रति आस्था टूटने का एक और माध्यम न बनें आप। आयोजन स्थल को लेकर आपकी जिद्द से जो सबसे बुरा होगा, वह यही होगा।

क्या आप यह चाहेंगे ?

सदाचार की अपेक्षा सहित

निवेदक

अरुण तिवारी
[email protected]
9868793799