Saturday, April 20, 2024
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Monthly Archives: December, 2018

नियति का महाभारत

महाभारत पर न जाने कितने लेखको ने अपनी कलम चलाई है और न जाने कितने लेखक इस विषय पर आगे भी लिखेंगे। लेकिन लेखक ने इसे इतिहास से वर्तमान को समझने के उद्देश्य से लिखा है।

हिन्दी साहित्य का पक्ष रखने के लिए प्रवक्ताओं की आवश्यकता

वर्तमान समय विपणन या कहे प्रचार-प्रसार का है, जिसमें एक छोटी-सी चाय उत्पादक या विपणन संस्थान भी जब बाजार में अपना उत्पाद लाती है,

राफेल पर न्यायालय के फैसले का सम्मान हो

क्या परिदृश्य है! फैसले की एक, दो या तीन पंक्तियां उद्धृत कर अजीब अर्थ निकाले जा रहे हैं। अब तो कोष्ठक में दिए गए कैग और लोक लेखा समिति संबंधी

गुस्से से प्यार का रिश्ता गहरा, जिस प्यार में गुस्सा नहीं वह बनावटी : मनोज ‘मुंतशिर

हम चाहें वो हमें मिल जाए। मुझपे दोनों हादसे गुजरे हैं। यह बात लेखक एवं गीतकार मनोज ‘मुंतशिर ने दैनिक जागरण वार्तालाप में ‘प्यार पर केंद्रित शायरी में गुस्से और निराशा की

भाजपा के लिये यही समय है जागने का

रोजगार का मुद्दा है। रोजगार सृजन में ठहराव का यह प्रमुख कारण है। किसानों से जुड़ी समस्याओं पर भी केन्द्र सरकार को गंभीर होना होगा।

पक्ष एवं विपक्ष के गठबंधनों में दरारें

भूमिका अभी तक केवल सत्ता की सौदेबाजी तक सीमित रही है। लेकिन विचारणाीय बात है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में अब नेतृत्व के बजाय नीतियों प्रमुख मुद्दा बननी चाहिए,

भाजपा के लिए सबक लेने का समय

इन्हीं विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने पूर्वोत्तर भारत में अपना एकमात्र राज्य मिजोरम गंवा दिया। दस वर्षों से यहां शासन कर रही कांग्रेस के खिलाफ इस बार सत्ता विरोधी लहर इतनी तीव्र थी कि मुख्यमंत्री लल

हिंदी भारतीय संस्कृति की संवाहक और दिल की भाषा है – को जोंग किम

सर सी.आर.रेड्डी शैक्षिक संस्थाओं के अध्यक्ष श्री कोम्मारेड्डि राम बाबू, महाविद्यालय के कॉरस्पॉन्डन्ट एवं अन्य पदाधिकारियों ने समारोह में भाषा के महत्व पर अपनी राय जताई। समापन समारोह में प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने तेलुगु में भाषण देकर श्रोताओं को अभिभूत कर दिया।

भाषा और प्रभावी व्यक्तित्व पर डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने दिया सकारात्मकता का संदेश

शासकीय शिवनाथ विज्ञान महाविद्यालय में दिग्विजय कालेज के हिंदी विभाग के राष्ट्रपति सम्मानीय प्राध्यापक और प्रख्यात मोटिवेशनल वक्ता डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने उत्साहवर्धक अतिथि व्याख्यान देकर विद्यार्थियों में नया जोश भर दिया ।

देश, समाज और संस्कृति के बहाने लिखने का सिलसिला

देश की आज़ादी के रजत जयंती वर्ष (1972) में हमारी पीढ़ी के अनेक युवाओं को सम सामयिक घटनाक्रम में रूचि, वाक पटुता और भाषा पर पकड़ के गुण लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में खींच लाये थे.
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