Thursday, April 25, 2024
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Monthly Archives: March, 2021

पहेली है कि तुम्हारा असली चेहरा क्या है?

जापान में झेन आश्रमों का यह नियम है कि अगर कोई भिक्षु, यात्री-भिक्षु, विश्राम करना चाहे, तो उसे कम से कम एक प्रश्न का उत्तर देना चाहिए। जब तक वह एक प्रश्न का ठीक उत्तर न दे दे, तब तक वह अर्जित नहीं करता विश्राम के लिए। वह आश्रम में रुक नहीं सकता, उसे आगे जाना पड़ेगा।

भारतीय सांस्कृतिक विचारधारा

भारतीय संस्कृति विश्व के पुरातन संस्कृतियों में से एक है। कई विद्वान भारतीय संस्कृति को विश्व की सर्वाधिक प्राचीन संस्कृति मानते हैं।

एस सी एसटी एक्ट एक निर्दोष ब्राह्मण के 20 साल खा गया

उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के ग्राम सिलावन निवासी विष्णु तिवारी को हाईकोर्ट ने 20 साल बाद रेप व हरिजन एक्ट के मामले में निर्दोष साबित किया है।

धन्य है राज दरभंगा

जब जब भारत के दानवीरों की बात की जायेगी, तो उनमें राज दरभंगा का नाम स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा।

फिर से चली कोटा में पर्यटन की बयार चंबल रिवर फ्रंट और चम्बल में क्रूज

कोटा में भी विश्व के कोने-कोने से सैलानी आयें और चंबल के असीम सौन्दर्य के साथ-साथ सांस्कृतिक विरासत से रूबरू हो,

स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास और अनछुए पक्ष को सामने लाने के लिए लेखकों से निवेदन

हर्ष का विषय है कि भारतीय संस्कृति, परंपरा एवं लोकाचार के मार्ग का निर्वाहन करते हुए इंडिक अकादमी भारतीय इतिहास की ओर भी अग्रसर है। इस कड़ी में आगे बढ़ते हुए हम आपके समक्ष प्रस्तुत करने वाले हैं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अनछुए पक्ष।

जब मैने करगिल की टाईगर हिल पर तिरंगा फहरायाः नायक दीपचंद

मुंबई के श्री जयवंत राऊतजी ने ठान ऱखा है कि मोर्चे पर, देश की सीमा पर और देश के लिए बलिदान होने वाले वीर सैनिकों और पुलिस कर्मियों के परिवारों को किसी तरह का अभाव हनीं होने देंगे।

इन्दौर का ये रोचक अतीत आपको रोमांचित कर देगा

आज से लगभग 300 साल पहले ‘स्पेशल इकॉनोमिक ज़ोन’ के एक दूरदर्शी विचार के तहत इंदौर की स्थापना का बीज पड़ा और यह क्रांतिकारी कल्पना थी तब के इंदौर के ज़मींदार रावराजा नन्दलाल मंडलोई की।

अखंड भारत के दो विकल्प और ‘सबका विकास’ के ख़तरे

वस्तुतः यही पिछले सत्तर साल का हाल है। इस्लामी तत्वों ने बिना किसी कानूनी प्रावधान या अपनी कोई पार्टी, आदि के होते भी सभी हिन्दू दलों द्वारा ही निरंतर इस्लामी विशेषाधिकार झटके हैं।

साहित्य को राष्ट्रीयता के दायरे में नहीं बांधा जा सकता – प्रो. सत्यकाम

वेबिनार के प्रारंभ में विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. विमलेंदु तीर्थंकर ने प्रो. सत्यकाम का स्वागत करते हुए उनके व्यक्तित्व की सरलता और सहजता को रेखांकित किया।
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