Saturday, April 20, 2024
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कश्मीरी पंडित की टीस के 30 साल: ‘एक भयावह दौर जिसने सबकुछ खत्म कर दिया’

जिस समय देश में जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति युवाओं की रग-रग में बसने लगी थी, कश्मीर का एक युवा बीएचयू में पढ़ने आया। जब मौका मिलता, खूबसूरत पहाड़ियों वाले अपने शहर बांदीपोरा की ओर चल देता। पढ़ाई पूरी करने के बाद एके कौल को बीएचयू में ही समाजशास्त्र विभाग में शिक्षण का मौका मिला।

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 एक बड़ी बीमारी थी कश्मीर के लिए, जिसने वहां से निकलने वाली सुगंध को दुर्गंध में बदल दिया था। इसकी वजह से पूरा सिस्टम खराब हुआ।

उस खबर ने झकझोर दिया: 1989-90 में अचानक, एक दिन खबर मिली कि कश्मीर में पंडितों और दूसरे हिन्दुओं को मारा जा रहा है। उनके घर फूंके जा रहे हैं। माहौल ऐसा बना दिया गया कि वहां रहने के लिए कुछ नहीं बचा। ऐसे में बीएचयू में अध्यापन कर रहा वह युवा डॉ. अशोक कुमार कौल विचलित हो गया। उसके अभिभावक, भाई, उनका परिवार सब संकट में घिर चुके थे।

आज भी टीस उठती है: आज उस घटना के 30 साल बाद प्रो. अशोक कौल बताते हैं कि मन तब का विचलित हुआ, अबतक स्थिर नहीं हो सका है। हिंसा के बाद भाई रूप किशन कौल, जो बांदीपोरा के एक सरकारी कॉलेज में बॉटनी के टीचर थे, अपने परिवार और माता-पिता को लेकर बीएचयू आ गये। किसी तरह जान बचाई थी सभी ने। इनके अलावा पड़ोसी डॉ. सुरेश सराफ व 10 और लोग भी थे। सबके चेहरों पर खौफ था। क्या करें, कहां जाएं, सूझ नहीं रहा था। कुछ अरसा सभी बनारस में रहे। फिर नया ठौर तलाशने निकले। भाई दिल्ली और फिर जम्मू चले गए और डॉ. सराफ व उनके साथ के लोगों ने जम्मू में ठिकाना तलाशा।

सबकुछ तो वहीं छूट गया: प्रो. कौल बताते हैं कि जिस समय यह तूफान आया, बांदीपोरा के घर में जाड़े की तैयारी हो रही थी। गर्म कपड़े निकाले गये थे। कई दिन का राशन लाकर रख दिया गया था। सोने-चांदी के गहने थे। जब आततायियों का हमला हुआ तो कुछ भी तो साथ नहीं ला सके। बस जान बचाकर निकले। प्रो. कौल के पिता मेघलाल कौल बांदीपोरा में शिक्षक थे। खेती भी थी। दो-तीन मकान थे। यहां आए तो एक कमरे में सबको गुजारा करना पड़ा। जीवन के अंतिम समय में वह बड़े भाई के पास जम्मू चले गए।

अब वह भरोसा कहां से लाएं: कौल कहते हैं-बतौर समाजशास्त्री कह सकता हूं कि सिर्फ कानून-व्यवस्था से बात नहीं बनेगी। मोहब्बत की वह इमारत फिर बनानी पड़ेगी। इसमें कितना वक्त लगेगा, नहीं कहा जा सकता। आशा है जीवन में एकबार फिर मिठास घुलेगी। और फिर यह धरती का स्वर्ग कहा जा सकेगा।

साभार- https://www.livehindustan.com/ से

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