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देश के विकास के लिए 5 साल नहीं 100 साल आगे की योजना चाहिएः श्री रजत सेठी

नोट बंदी को लेकर देश भर में तरह तरह के मुहावरों, किस्सों, अफवाहों और गप्पबाजी का ऐसा दौर चल रहा है कि आम आदमी तो क्या अर्थशास्त्र की सामान्य समझ रखने वालों को भी समझ में नहीं आ रहा है कि नोटबंदी नाम के इस अजूबे को कैसे समझे। ऐसे में मुंबई में जब भारतीय अर्थ व्यवस्था -चुनौतियाँ और अवसर पर एक संवाद हुआ तो कार्यक्रम में मौजूद श्रोताओँ को नोट बंदी से लेकर अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र से जुड़े कई रोचक पहलुओं के बारे में विस्तार से जानने को मिला।

3झारखंड के मुख्य मंत्री के सलाहकार एवँ असम के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत की इबारत लिखने वाले श्री रजत सेठी ने कहा कि अर्थव्यवस्था का मुद्दा सीधे राष्ट्रवाद से जुड़ा है। उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा कि जब भाजपा या संघ से जुड़ा कोई व्यक्ति किसी भी मुद्दे को राष्ट्रवाद से जोड़कर देखता है तो मीडिया वाले ये पूछते हैं कि आप अतिवादी क्यों हैं? उन्होंने कहा कि देश से जुड़े हर मुद्दे को राष्ट्रवाद के नजरिए से ही देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारी आर्थिक सुधार या आर्थिक व्यवस्था ऐसी हो जो स्वावलंबन को बढ़ावा दे। उन्होंने कहा कि पं. दीनदयाल उपाध्याय ने अंत्योदय के माध्यम से देश में स्वावलंबन को व्यापक परिप्रेक्ष्य में परिभाषित किया था। इसके पहले अँग्रेजी राज में दादा भाई नौरोजी ने आर्थिक स्वावलंबन को लेकर ‘पॉवर्टी ऐंड अन-ब्रिटिश रुल इन इंडिया’ जैसी पुस्तक लिखकर सशक्त तथ्यों के साथ देश के लोगों को ये एहसास कराया था कि अंग्रेज किस तरह से भारत की सोने की चिड़िया को नोच रहे हैं। उन्होंने इस बात को प्रमुखता से उठाया कि हम अपने देश में इस हद तक आत्मनिर्भर हो जाएँ कि हमें कभी किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े।

1श्री सेठी ने कहा, देश में ही बनाएँगे और देश में ही खाएँगे जैसी सोच में भी खामियाँ हैं, राष्ट्रवाद को आज इस सीमित नज़रिए से भी नहीं देखना चाहिए। भारत की नीतियाँ ऐसी हो कि हम हर स्थिति में कैसे आत्मनिर्भर रहें चाहे वह युध्द की स्थिति हो या वैश्विक मंदी का दौर। उन्होंने कहा कि हम मात्र पाँच साल की योजना बनाते हैं जबकि चीन और अमेरिका में आनेवाले 100 साल की नीतियाँ बनाई जाती है। आज अगर नोट बंदी हुई है तो इसके नतीजे आने वाले 100 साल को प्रभाबावित करेंगे। उन्होंने कहा कि श्री नरेंद्र मोदी ने पहली 15-7-3 के सूत्र को सामने लाते हुए 15 साल की नीति, सात साल की योजना और तीन साल में क्रियान्वय की सोच रखी है। कलाम साहब ने 2020 का स्वप्न देखा था, आज मोदीजी उनके इसी स्वप्न को साकार करने की दिशा में काम कर रहे हैं।

इस अवसर पर इंडिया पॉलिसी केंद्र की शोध प्रमुख सुश्री शुभ्रस्ता ने कहा कि भारतीय वांग्मय में राष्ट्र शब्द की कोई परिकल्पना ही नहीं है। राष्ट्र शब्द पश्चिम से आया है। हमारी सोच तो वसुधैव कुटुंबकम की है। हमने उत्पादन, उत्पादक और व्यापार से राष्ट्र समझ लिया है। जिन लोगों ने किताबें पढ़ ली वे अर्थशास्त्र की बातें करते हैं लेकिन भारत के किसी गाँव की एक महिला को क्या समस्या आ रही है इसको समझे बिना पूरा अर्थशास्त्र किसी काम का नहीं। उन्होंने कहा कि नोटबंदी के फैसले से ये बात तो सामने आई है कि इससे आम आदमी परेशान होने के बावजूद खुश है, लेकिन राजनीतिक दल खुश नहीं है। उन्होंने कहा कि मीडिया नोटबंदी को लेकर मौत के काउंट डाउन में लगा है लेकिन इससे आम आदमी को क्या मिलने वाला है उसकी कहीं कोई बात नहीं हो रही है।

इस अवसर पर स्व. राष्ट्रपति एपीजे अबुल कलाम के एडीसी रहे व हिन्दू हैरिटेज फाउंडेशन, दिल्ली के उपाध्यक्ष कर्नल अशोक किनी ने कहा कि मैं कोंकण में पैदा हुआ, केरल में पढ़ाई की और नगालैंड से लेकर देश के कई हिस्सो में काम करके देश को एक व्यापक नज़रिए से समझा है। उन्होंने कहा कि जब मैं नगालैंड की सीमा पर पोस्ट हुआ था तो हमें दो किलोमीटर की यात्रा करने में 8 घंटे लगते थे। वहाँ जब पहली बार फौजी के रूप में गया तो लोग जब हमसे टाटा बाय बाय करते थे तो कहते थे तो पहली बार उन्होंने कहा, विदेशी फौजी बाय बाय। फिर कहा भारतीय फौजी बाय बाय लेकिन एक दिन ऐसा भी आया जब हम लोग उन लोगों से घुल मिल गए तो उन्होंने कहना शुरु किया हमारे फौजी बाय बाय।

4उन्होंने कहा कि जब मुझे कलाम साहब का एडीसी बनने के लिए उनके पास भेजा गया था तो उन्होंने यह वाकया सुनाया–ये सुनते ही कलाम साहब ने कहा कि तुम ही मेरे एडीसी रहोगे और इसके बाद कलाम साहब ने राष्ट्रपति के रूप में अपना पहला दौरा नगालैंड का किया और वे वहाँ तीन दिन रहे।

कर्नल किनी ने स्व. कलाम से जुड़े ऐसे कई संस्मरण प्रस्तुत किए जो श्रोताओं के लिए किसी यादगार और रौमांचक अनुभव से कम नहीं थे। कर्नल किनी ने कहा कि देश के बुध्दिजीवी वर्ग से लेकर मीडिया की भूमिका ये होना चाहिए कि वो समाज के साथ उन लोगों से संवाद बनाए जो अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज देश में एक ऐसा प्रधान मंत्री आया है जो जनता से सीधे संवाद कर रहा है और जनता अपनी बात प्रधान मंत्री तक पहुँचा रही है।

इस अवसर पर मुंबई विश्वविद्यालय के कुलपति श्री संजय देशमुख ने वैश्विक जनसंख्या में हो रही वृध्दि, समुद्री सीमा से लेकर जैव विविधता, वनस्पति, पेड़-पौधों की खत्म हो रही प्रजातियों को मानव समाज के लिए घातक बताते हुए कहा कि आर्थिक नीतियाँ मनुष्य के हिसाब से नहीं प्रकृति के हिसाब से बनाई जानी चाहिए ताकि हमारा पर्यावरण, मौसम और भौगोलिक परिस्थितियाँ हमारे जीवन के लिए खतरा न बने।

इस अवसर पर विद्या भारती पंजाब संगठन मंत्री श्री विजय नड्डा ने कहा कि देश की आर्थिक नीतियों का सीधा असर सीमा पर सबसे पहले होता है। अगर सीमा पर स्थित गाँवों और वहाँ के लोगों तक शिक्षा नहीं पहुँचती है तो इसका दुष्प्रभाव पूरे देश पर होगा। उन्होंने बताया कि किस तरह पंजाब के सीमावर्ती गाँवों में शिक्षा के माध्यम से देश की नई पीढ़ी को राष्ट्रीय भावनाओं के साथ जोड़ा जा रहा है।

लेखक एवँ विचारक श्री रतन शारदा ने कहा कि अर्थशास्त्र का पहला पाठ घर में ही पढ़ने को मिलता है। हमने अपने घर में ये सीखा है कि बाजार से लाए जाने वाला सामान जिस धागे में बंधकर आता था उसे हमारी माँ सम्हाल कर रखती थी और उस धागे को भी काम में लेती थी। ये छोटी छोटी चीजें अर्थशास्त्र की सही समझ पैदा करती है।

इस कार्यक्रम के सफल आयोजन में समर्थ भारत दिल्ली के श्री सुखदेव विशिष्ट, विकास खत्री, मुंबई के श्री सर्वेश सावंत, संदीप जाधव, डॉ. रामेश्वर नाईक, पुणे के डॉ. महेश महाडिक की भूमिका उल्लेखनीय थी।