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मजदूरी भी करता रहा और हजारों पेड़ भी लगा दिए

पप्पू कुशवाह….। रोजगार का साधन सिर्फ मजदूरी। मिली तो ठीक, नहीं मिली तो चिंता भी नहीं। लेकिन इस बात की चिंता जरूर है कि उसके रोपे पौधे पेड़ बन जाएं। पर्यावरण, हरित क्रांति जैसे सरकारी शब्दों से कोई लेना-देना नहीं। बावजूद इसके धुन लगी और 5 हजार से अधिक पौधों को पाल-पोस दिया। काम सतत जारी है। पेड़ों को पालने का हुनर किसी को सीखना हो तो वह पप्पू की पाठशाला पहुंचे।

दोपहर 1 का समय। राजगढ़ जिले की नरसिंहगढ़ तहसील का तापमान 43 डिग्री। लोग घरों में दुबके थे। इक्का-दुक्का लोग ही सड़क पर थे। ऐसी तपती दोपहरी में पप्पू कुशवाह पूरी तन्मयता से सड़क किनारे के एक पौधे में पानी डाल रहा था। पौधा जामुन का था और लगभग 6 माह का था।
उसके लिए हम्माली करने से ज्यादा जरूरी यह काम था। एक बाद दूसरे पौधे को पानी देता रहा और क्रमश: आगे बढ़ता रहा। हमने पहली बार किसी को पौधों के लिए पानी ढोते देखा था, लेकिन रामलीला मैदान में रहने वाला कपिल प्रजापति तो बचपन से ही पप्पू को पौधों की सेवा करते देख रहे हैं। तकरीबन 12 साल से रोज पप्पू की यही दिनचर्या है। वह केवल पौधारोपण नहीं करता, बल्कि बच्चों की तरह उनकी देखभाल भी करता है।
पौधे रोपने के बाद जंगल से कांटे लाकर उन पौधों की सुरक्षा भी करता है। रोज साइकिल से ढोकर पौधे के पेड़ बनने तक सींचता है। पप्पू के रोपे 5 हजार पौधे 12 साल में पेड़ बच चुके हैं। एडवोकेट संजय शेखर कहते हैं कि पप्पू जितने भी पौधे लगाता है, उन्हें रोज देखता है। उनके लिए सुरक्षा-पानी का इंतजाम करता है। जैसे ही पौधे पेड़ बन जाते हैं तो देखता है कि किसी बीमारी के कारण पेड़ की जड़ खोखली तो नहीं हो रही। पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद भी पेड़ों पर एक नजर जरूर मारता है।
सरकारी रोपण के अधिकांश पौधे सूख जाते हैं, वहीं पप्पू का कहना है कि उसका एक भी पौधा नहीं सूखा। प्रशासनिक मदद की बात करें तो तहसील और जिला स्तर पर उसे कई पुरस्कार मिले, लेकिन किसी ने भी उसके काम में सहयोग नहीं किया। पप्पू बताते हैं, 26 जनवरी 2011 को प्रशासन ने 10 हजार स्र्पए देने की घोषणा की थी, लेकिन स्र्पए आज तक नहीं मिले।
बीच में पप्पू ने हम्माली छोड़ दी थी, क्योंकि नगर पालिका ने काम से प्रभावित होकर उसे मस्टर यानी रोजनदारी पर पेड़ों में पानी डालने की नौकरी दे दी थी। एक महीने बाद ही नौकरी से हटा दिया। कारण, केवल पेड़ों की देखभाल के लिए नगर पालिका किसी को नौकरी पर नहीं रख सकती।
सूनी पहाड़ियों को हरियाली से कर दिया श्रृंगारित
एक जमाना था जब विंध्याचल पर्वत माला की सुरम्य वादियां किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेती थीं। 1950 के दशक में डायरेक्टर महबूब की नजरें मालवा के कश्मीर कहे जाने वाले नरसिंहगढ़ की खूबसूरती देखकर ठहर गई थीं। उस जमाने की मशहूर अदाकारा नादिरा, हास्य कलाकार मुकरी सहित पूरी यूनिट ने एक पखबाड़ा तक फिल्म 'आन की शूटिंग यहां की पहाड़ियों पर की थी। लेकिन चार दशक से वृक्षों के प्रति अपनाई गई संवेदनहीनता से कस्बे को घेरे छह की छह पहाड़ियां मैदान में तब्दील हो गईं।
ऐसे में 20 साल पहले नरसिंहगढ़ की वाराद्वारी छोटी हनुमान गढ़ी, बड़ी हनुमान गढ़ी, काक शिला पहाड़ी, भैसाटोल रेस्ट हाउस पहाड़ी, गणेश चौक किला पहाड़ी, सूरजपोल पहाड़ी की हरियाली लगभग समाप्त हो गई थी। जिन पहाड़ियों पर सीताफल के हजारों वृक्ष थे और शहर को सीताफल निर्यात में पहचाना जाता था, वहां की पहाड़ियां वीरान होती गईं। फल विक्रेता खेमचंद कुशवाह बताते हैं कि राजधानी दिल्ली में भी नरसिंहगढ़ के सीताफल खासे पसंद किए जाते थे। दशहरे से ही सीताफल की आवक शुरू हो जाती थी।
तभी खेल शिक्षक राधेश्याम भिलाला ने पहाड़ियों को फिर से हरा-भरा करने की ठानी। भिलाला ने सबसे पहले नीम की निवोड़ी से बीज बनाना सीखा। इसके बाद मजदूर से निवोड़ी बिनबाते और उनसे बीज तैयार करते। इस तैयार बीज को बारिश के मौसम में दूसरी बारिश के बाद पहाड़ी के ऊपर से डाल देते थे।
1997 से शुरू हुए इस प्रयास का असर ही है कि नरसिंहगढ़ की जो पहाड़ियां सीताफल के वृक्ष उजड़ने पर सूनी हो गईं थीं, आज नीम की हरियाली से अच्छादित हैं। राधेश्याम बताते हैं कि 22 सालों में करीबन 1 लाख नीम के वृक्ष हरियाली विखेर रहे हैं। अब राधेश्याम भिलाला के प्रयास से वापस पहाड़ियां हरी-भरी हो गई हैं।

साभार-http://naidunia.jagran.com/से