Wednesday, April 24, 2024
spot_img
Homeपुस्तक चर्चामुस्लिमों द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन की सच्चाई को सामने लाने वाली पुस्तक

मुस्लिमों द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन की सच्चाई को सामने लाने वाली पुस्तक

सुप्रसिद्ध इतिहासकार स्व. (डॉ.) किशोरी शरण लाल (20 फरवरी 1920 – 11 मार्च 2002) का प्रस्तुत शोध ग्रंथ “Growth of Muslim Population in Medieval India” (मध्यकालीन भारत में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि) जब सन् 1973 में प्रकाशित हुआ तब प्रो. लाल ने स्वयं को एकबारगी इतिहासकारों के उस संगठित गिरोह के विरुद्ध खड़ा पाया जो समकालीन मुस्लिम स्रोतों की साक्षी को तोड़-मरोड़कर या दबाकर भारत में मुस्लिम शासनकाल को महिमामंडित करने के लिए विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों और शासकों की ध्वंस-लीला और मतान्तरण की नीति को यत्नपूर्वक छिपाने में लगा हुआ था।

प्रो. लाल ने अपने इस शोध ग्रंथ में मध्यकालीन स्रोतों की साक्षी के आधार पर बल और प्रलोभन के द्वारा मतान्तरण के फलस्वरूप मुस्लिम जनसंख्या में असामान्य वृद्धि का चित्र प्रस्तुत किया। इस पुस्तक के द्वारा प्रो. लाल ने भारतीय मुसलमानों के दिलो-दिमाग पर हावी इस भ्रम को तोड़ने की कोशिश की कि वे विदेशी आक्रमणकारियों की संतान हैं। प्रो. लाल ने समकालीन स्रोतों के आधार पर सिद्ध किया कि भारतीय मुसलमानों की वर्तमान पीढ़ी की रगों में भारतीय रक्त बह रहा है। उनके पूर्वजों को बल या प्रलोभन से इस्लाम में मतान्तरित किया गया था।

इस पुस्तक में प्रो. लाल ने मध्यकालीन भारत में मुस्लिमों की असाधारण जनसंख्या वृद्धि के कई कारण गिनाए है, यथा मुस्लिम आक्रमणकारी सेनाओं की भारत में सतत घुसपेठ, सीमा के उस पार से मुस्लिम सैनिकों की सतत भर्ती, मुस्लिम देशों से आनेवाले आव्रजकों का हार्दिक स्वागत, बलात धर्मांतरण, प्रलोभनों से धर्मांतरण, मुसलमानों का हिन्दू महिलाओं से बहुविवाह, और ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने के पैगम्बर के आदेश से प्रेरणा, आदि।

इस पुस्तक में प्रो. लाल ने इतिहास के जिस उपेक्षित तथ्य कि और पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है वह यह कि सतत जेहादी आक्रमणों में मुस्लिम आक्रांताओं को युद्ध केदियों (माले गनीमत) के रूप में असंख्य हिंदू पुरुष, महिलाएं और बच्चे मिलते थे, जिसे इस्लामिक परम्परा के अनुसार बाजारों में गुलाम के रूप में बेच दिए जाते थे। अंततः ये गुलाम भी मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि में कारण बने।

इस पुस्तक के प्रकाशन से एक तहलका मच गया था और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का संगठित गिरोह उनके विरोध में खड़ा हो गया, किन्तु श्री लाल द्वारा प्रस्तुत तथ्यों की प्रामाणिकता को चुनौती देना संभव नहीं था। वे अकेले थे, किसी गुट या पार्टी के सदस्य नहीं थे, जबकि विरोधी गुट संगठित था, आक्रामक था। प्रो. लाल अकेले होते हुए भी सत्य की राह पर निर्भीकता से डटे रहे।

26 फरवरी, 1920 को जन्मे प्रो. लाल ने 1941 में प्रयाग वि·श्वविद्यालय से इतिहास विषय में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करके भारत में मुस्लिम शासन काल को ही अपने शोध का क्षेत्र चुना। चार वर्ष तक शोध करके उन्होंने 1945 में खिलजी वंश के शासनकाल पर डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। इस विषय ने उन्हें मध्यकालीन स्रोतों को जानने और उनका गहन अध्ययन करने का अवसर प्रदान किया। 1950 में उनका शोध प्रबंध पुस्तक रूप में प्रकाशित हुआ। इस ग्रंथ ने उन्हें एक श्रेष्ठ शोधकर्ता और इतिहासकार के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। देश-विदेश की शोध पत्रिकाओं में उसकी प्रशंसात्मक समीक्षाएं निकलीं। पचास वर्ष बीत जाने पर भी वह ग्रंथ अपने विषय का सर्वाधिक प्रामाणिक और पूर्ण ग्रंथ माना जाता है। उसे आज भी कई वि·श्वविद्यालयों में पाठ्यपुस्तक अथवा संदर्भ ग्रंथ की मान्यता प्राप्त है। और उसके अनेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। कई भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है। इस शोध ग्रंथ से प्राप्त प्रतिष्ठा के कारण प्रो. लाल को 1950 में ही भारतीय इतिहास कांग्रेस के मध्यकालीन खण्ड का अध्यक्षीय भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया। एक श्रेष्ठ इतिहासकार के रूप में उनकी ख्याति चहुंओर फैल गयी।

1944-45 में एक वर्ष प्रयाग वि·श्वविद्यालय में पढ़ाने के बाद प्रो. लाल ने 1945 से 1963 तक नागपुर, जबलपुर और भोपाल के कालेज में शिक्षक पद से कार्य आरम्भ करके प्राचार्य पद तक कार्य किया। किन्तु उनकी शोध साधना में कोई विघ्न नहीं पड़ा। 1963 में उनकी अगली शोधकृति “सल्तनत का सूर्यास्त’ (ट्विलाइट आफ दि सल्तनत) प्रकाशित हुई जो उनकी शोध क्षमता का एक अन्य कीर्तिमान बन गयी। तभी दिल्ली वि·श्वविद्यालय के इतिहास विभाग में प्राध्यापक पद पर उनकी नियुक्ति हुई। पूरे दस वर्ष तक उन्होंने दिल्ली वि·श्वविद्यालय में रीडर के नाते काम किया। उन्हीं दिनों उन्हें भारतीय इतिहास कांग्रेस के कोषाध्यक्ष का दायित्व भी सौंपा गया जिसे उन्होंने 3 वर्ष तक निभाया। किन्तु उनका शोधकार्य अबाध चलता रहा।

पुस्तक शीर्षक: Growth of Muslim Population in Medieval India

https://archive.org/details/growth-of-muslim-population-in-medieval-india-k.-s.-lal
◘ लेखक : डॉ. किशोरी शरण लाल

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार