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एक यादगार शाम ‘कनाडा की उड़न तश्तरी’ के साथ

मुंबई में कला-संस्कृति-साहित्य और रचनाधर्मिता की विविध विधाओं से जुड़े लोग अपना रचनात्मकता और सृजनधर्मिता का उत्सव पूरे जोशो-जुनून के साथ मनाते रहते हैं। थिएटर, भोजपुरी लोक संगीत गायन और कला से जुड़ी विभा रानी ने अवितोको रुम थिएटर के माध्यम से एक ऐसी संकल्पना को जन्म दिया है जिसमें संवाद और गपशप के साथ ही संगीत, गायन, थिएटर और कला के वविध आयामों को जानने समझने और भाग लेने का भी मौका मिलता है। विभा रानी प्रणीत अवितोको रूम थिएटर, थिएटर जगत में न्यूनतम में अधिकतम देने का प्रयास है। आज अवितोको रूम थिएटर के कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, वाराणसी, लखनऊ और कानपुर चैप्टर काम कर रहे हैं।

मुंबई में एक फ्लैट के छोटे से कमरे में इतनी सहजता और सरलता से चुनिंदा दर्शकों व श्रोताओं के साथ जिस गंभीरता और रचनात्मकता के साथ ये आयोजन होता है वह अपने आप में एक अकल्पनीय प्रयोग है।

इस बार रुम थिएटर के मेहमान थे कनाडा से आए हिंदी के शुरआती ब्लॉगरों में से एक श्री समीर लाल और उनकी धर्मपत्नी। इस कार्यक्रम में समीर लाल ने अपने विस्थापन और पुनर्स्थापन के साथ-साथ अपनी रचना प्रक्रिया पर बात की और इस माध्यम से देश में भी अलग-अलग जगहों से विस्थापित हुए लोगों की बातें सामने आई। समीर लाल के साथ सवाल-जवाब के माध्यम से भी लेखन, व्यक्ति व स्थान का संकट, अपनी जद्दोजहद, अभिव्यक्ति के स्वरूप, भाषा, कला, संस्कृति आदि के संरक्षण जैसी अनेक बातें उभरकर सामने आईं। कार्यक्रम का संचालन कथाकार और ब्लागर रश्मि रविजा ने किया।

समीर लाल जबलपुर से कनाडा पहुँचै और वहाँ अंग्रेजी माहौल में दफ्तर में काम करते हुए पूरे वातावरण में हिंदी की कमी महसूस करते रहे। हिंदी की इस कमी को उन्होंने अपने ब्लॉग लेखन से जीवित रखा और साथ ही दुनिया भर में फैले हिंदी प्रेमियों को ब्लॉग पर हिंदी लिखने के लिए प्रेरित भी किया।

अवितोको रुम थिएटर की विभा रानी जी के घर “विस्थापन व पुनःस्थापन के बीच सृजन” पर हुई चर्चा के साथ शुरु हुआ ये कार्यक्रम जैसे जैसे आगे बढ़ता गया संवाद की रोचकता बढ़ती गई।

समीर जी ने अपनी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा, स्कूली दिनों में परसाईजी को पढ़ा था, उनके व्यंग्य से ही प्रेरणा मिली कि अपनी बात व्यंग्य के जरिये कही जाए तो ज्यादा असर पैदा करती है। 2006 में उड़न तश्तरी के नाम से ब्लॉग लेखन शुरु किया और ये इंटरनेट पर दुनिया भर के हिंदी प्रेमियों में इतना लोकप्रिय हुआ कि कई लोगों ने मुझसे ब्लॉग लेखन की प्रेरणा ली। इसके बाद हाल ही में समीर जी ने खान-पान पर यू य्टूब चैनल भी शुरु किया जो लगातार लोकप्रिय हो रहा है।

उन्होंने कहा कि कनाडा में लोगों से बात करने के लिए आपको खेलों, कुत्तों और चीज़ के बारे में जानकारी होना चाहिए, क्योंकि वहाँ लोग इसी विषय पर बात करते हैं। वहाँ कई तरह का चीज़ मिलता है और हर एक की अपनी विशेषता होती है।

श्री समीर लाल ने बताया कि कनाडा में वे राजनीतिक क्षेत्र में भी कदम रख चुके हैं और संभव हुआ तो वहाँ की संसद का गला चुनाव भी लड़ेंगे। उन्होंने वहाँ की चुनाव प्रक्रिया के बारे में कई रोचक जानकारियाँ दी। उन्होंने बताया कि वहाँ के सांसदों और मंत्रियों से मिलना एकदम आसान है। अगर आप किसी मंत्री से मिलना चाहो तो वो ऱद गाड़ी चलाकर आपके घर आ जाता है। सांसदों और मंत्रियों को कोई विशे।धिकार नहीं है, न उनके पास कोई ड्रायवर है न और कोई सुविधा। चुनाव के दौरान बैनर पोस्टर आम सभा आदि कुछ नहीं होता है। अगर आपने किसी के घर पर उसकी अनुमति से कोई बैनर या पोस्टर लगाया तो उसे चुनाव के बाद खुद हटाना पड़ता है। इसलिए एक ओर चहाँ चुना के नतीजे आ रहे होते हैं तो दूसरी ओर चुनाव में खड़े उम्मीदवार हार रहे हों या जीत रहे हों, वो लोगों के घर से पोस्टर बैनर हटाते दिखाई देते हैं।

कनाडा के लोगों की जीवनशैली की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वहाँ लोगों में सहजता, ईमानदारी और एक दूसरे पर विश्वास करने की भावना है। अगर आप फोन करके अपने बॉस को कहेंगे कि मैं बीमार हूँ और ऑफिस नहीं आ पाऊंगा तो बॉस यह नहीं कहेगा कि तुम बहाने बना रहे हो, वो कहेगा अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना और पूछेगा कि मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ। ऑफिस में भी अगर आपके बॉस को आपसे कुछ पूछना हो तो वह चलकर आपके पास आता है। वहाँ ऑफिसों में सबको एक जैसी कुर्सी टेबल मिलती है, अलग से कमरा या चैंबर बहुत कम ही देखने को मिलता है।

श्रीमती साधना लाल ने भी कनाडा पहुँचने से लेकर वहाँ की जीवन शैली की कई रोचक बातें साझा कर, कनाडा की जीवनशैली को लेकर श्रोताओं के सवालों के रोचक जवाब दिए। उन्होंने बताया कि वहँ चोरी की घटनाएँ बिल्कुल भी नहीं होती। अगर आप अपनी गाड़ी में सामान भूल जाएँ और दरवाजा भी खुला रह जाए तो आपका सामान या बैग जैसा कि तैसा पड़ा रहता है।

विज्ञापन एजेंसी में काम कर चुके सुबोध पोद्दार ने बताया कि वह किस तरह कोलकोता से मंबई आकर विस्थापन व पुनःस्थापन के दौर से गुजरे हैं। उन्होंने कहा कि विज्ञापन एजेंसी में आर्टिस्ट का काम करते हुए कैसे वे झंडू, अमूल, केसरी बाम जैसे उत्पादों के आकर्षक विज्ञापनों के लेखक बन गए उन्हें पता ही नहीं चला। उन्होंने कहा कि मेरी एजेंसी में विज्ञापन का मतलब अंग्रेजी से ही होता था, लेकिन एक बार एक गुजराती व्यापारी के लिए विज्ञापन के लिए चर्चा करने के लिए एजेंसी में कोई ऐसा आदमी नहीं था जो हिंदी में बात कर सके। मुझे वहाँ बातचीत के लिए ले जाया गया और मैने बताने के लिए कुछ लाईनें बोल दी और वही लाईनें विज्ञापन के लिए हिट हो गई।

विगत कई वर्षों से सुबोध पोद्दार एक अनूठा काम कर रहे हैं, वे किसी भी नृत्य समारोह में नृत्य करने वाले कलाकार के रेखाचित्र बनाते हैं और वे इतने जीवंत होते हैं कि ऐसा लगता है मानो रेखांकनों के बीच ही नृत्य चल रहा है। इस विधा में परिपक्वता हासिल करने के लिए उन्होंने खुद 4 सात तक ओड़िसी नृत्य की शिक्षा ग्रहण की। वे अंधेरे में डूबे किसी हाल में जहाँ नृत्य का कार्यक्रम चल रहा होता है अपने रेखांकनों से नृत्य को कागज़ पर उतारते जाते हैं। अपनी इस विधा की लोकप्रियता की बदौलत वे इटली, अमरीका, फ्राँस, चीन सहित देश के कई प्रमुख शहरों की यात्रा कर चुके हैं। प्रायः नर्तक दर्पण में देखकर नृत्य का अभ्यास करते हैं लेकिन सुबोध जी ने अपनी छाया देखकर नृत्य का अभ्यास किया ताकि वे अपने स्केचों में नृत्य की भावभंगिमा ज्यादा असरकारक ढंग से उतार सके।

जाने माने कथाकार श्री सूरज प्रकाश ने पाकिस्तान से आए अपने दादाजी को याद करते हे कहा कि उनकी वजह से हम अपने घर में सरायकी भाषा बोलते थे। आज पाकिस्तान की अफगान सीमा पर रहने वाले दो करोड़ लोग ये भाषा बोलते हैं और इस पर फिल्में और टीवी धारावाहिक भी बन रहे हैं। पाकिस्तान के मुलतान में इस भाषा में पीएचडी हो रही है। उन्होंने बताया कि विभाजन के बाद लाखों लोग जो इस भाषा को जानते थे विस्थापित होकर देश के अलग-अलग हिस्सों में बस गए जिससे ये भाषा भी बिखर गई लेकिन गूगल की वजह से इस भाषा को जानने व समझने वाले लोग एक दूसरे के संपर्क में आए हैं और वाट्सप ग्रुप के जरिये इसी भाषा में इसके मुहावरों में संवाद कर इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनकी दादी की बहन अनपढ़ थी मगर वो हर बात पर इतने शानदार मुहावरे बोलती थी कि हम दंग रह जाते थे। उन्होंने कहा कि विस्थापन के बाद भाषा के साथ कई यादें, कई संस्कार और कई परंपराएं मर जाती है। हम सभी लोग एक तरह से विस्थापित हैं, हमें अपनी भाषा और बोली को बचाने का प्रयास करना चाहिए।

इस कार्यक्रम में शशि झा, मनीषा झा, शुभम जैन, नेहा शर्मा, शशि सिंह, सूरज प्रकाश, मधु अरोरा, मंजुला देसाई, पूर्णिमा पांडे, नलिनी, सुबोध पोद्दार, शाहजहां, आभा बोधिसत्व, चंद्रकांत जोशी, अजय ब्रह्मात्मज, कोशी ब्रह्मात्मज आदि की भागीदारी भी रही।

कार्यक्रम की खास बातें-

1. उपस्थितरचनाकारों की किताबों की प्रदर्शनी व विक्री रखी गई ।

2. प्रकाशन की नई विधा ‘ज़ीन’ के बारे में कोशी ब्रह्मात्मज द्वारा जानकारी दी गई और उनके द्वारा प्रकाशित ‘ज़ीन’ को वहां प्रदर्शित किया गया।

3. आमंत्रित वक्ता समीर लाल के औपचारिक स्वागत के साथ-साथ वक्ता तथा एंकर को मानधन देने की शुरुआत की गई और उसे आगे भी बनाए रखने का निश्चय किया गया।

4. सभी को यह जानकारी दी गई है यह एक परफॉर्मेंस प्लेस है और परफॉर्म करने के इच्छुक यहां अपनी प्रस्तुतियां दे सकते हैं।

5. अवितोको रूम थिएटर के इस मंच से व्यक्ति तथा संस्थाएं जुड़कर कार्यक्रम कर या करवा सकते हैं। अवितोको रूम थिएटर का यह मंच सभी रचनाकर्मियों के लिए उवालब्ध रहेगा।

6. यह जानकारी दी गई कि अगला कार्यक्रम 11 अप्रैल, 2020 को महान कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु पर आधारित होगा। ज्ञातव्य हो कि यह रेणु जी का जन्मशती वर्ष है।

श्री समीर लाल का ब्लॉग
http://udantashtari.blogspot.com/