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अत्याचारी व्यक्ति जीवन में दुःख का ही भागी बनता है

बाबर और औरंगजेब ने अपने जीवन में हिन्दू जनता पर अनेक अत्याचार किये थे। हमारे मुस्लिम भाई उनकी धर्मान्ध नीति का बड़े उत्साह से गुण गान करते हैं। पर सत्य यह है कि अपनी मृत्यु से पहले दोनों को अपने जीवन में किये गए गुनाहों का पश्चाताप था। अपने पुत्रों को लिखे पत्रों में उन्होंने अपनी व्यथा लिखी हैं।

बाबर ने जीवन भर मतान्धता में हिन्दुओं पर अनेक अत्याचार किये। एक समय तो ऐसा आया की हिन्दू जनता बाबर के कहर से त्राहि माम कर उठी।

बाबर की मतान्धता को गुरु नानक जी की जुबानी हम भली प्रकार से जान सकते है। भारत पर किये गये बाबर के आक्रमणों का नानक ने गंभीर आकलन किया और उसके अत्याचारों से गुरु नानक मर्माहत भी हुए। उनके द्वारा लिखित बाबरगाथा नामक काव्यकृति इस बात का सबूत है कि मुग़ल आक्रान्ता ने किस तरह हमारे हरे-भरे देश को बर्बाद किया था।
बाबरगाथा के पहले चरण में लालो बढ़ई नामक अपने पहले आतिथेय को संबोधित करते हुए नानकदेव ने लिखा है:-
हे लालो,बाबर अपने पापों की बरात लेकर हमारे देश पर चढ़ आया है और ज़बर्दस्ती हमारी बेटियों के हाथ माँगने पर आमादा है। धर्म और शर्म दोनों कहीं छिप गये लगते हैं और झूठ अपना सिर उठा कर चलने लगा है। हमलावर लोग हर रोज़ हमारी बहू-बेटियों को उठाने में लगे हैं, फिर जबर्दस्ती उनके साथ निकाह कर लेते हैं। काज़ियों या पण्डितों को विवाह की रस्म अदा करने का मौका ही नहीं मिल पाता। हे लालो, हमारी धरती पर खून के गीत गाये जा रहे हैं और उनमे लहू का केसर पड़ रहा है। लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि बहुत जल्दी ही मुग़लों को यहाँ से विदा लेनी पड़ेगी, और तब एक और मर्द का चेला जन्म लेगा।

कविता के दूसरे चरण में नानक ने लिखा:

हे ईश्वर, बाबर के शासित खुरासान प्रदेश को तूने अपना समझ कर बचा रक्खा है और हिन्दुस्तान को बाबर द्वारा पैदा की गयी आग में झोंक दिया है। मुगलों को यम का रूप प्रदान कर उनसे हिन्दुस्तान पर हमला करवाया, और उसके परिणामस्वरूप यहाँ इतनी मारकाट हुई कि हर आदमी उससे कराहने लगा। तेरे दिल में क्या कुछ भी दर्द नहीं है?

तीसरे चरण का सारांश है:

जिन महिलाओं के मस्तक पर उनके बालों की लटें लहराया करती थीं और उन लटों के बीच जिनका सिन्दूर प्रज्ज्वलित और प्रकाशमान रहता था, उनके सिरों को उस्तरों से मूंड डाला गया है और चारों ओर से धूल उड़ उड़ कर उनके ऊपर पड़ रही है। जो औरतें किसी ज़माने में महलों में निवास करती थीं उनको आज सड़क पर भी कहीं ठौर नहीं मिल पा रही है। कभी उन स्त्रियों को विवाहिता होने का गर्व था और पतियों के साथ वह प्रसन्नता के साथ अपना जीवन-यापन करती थीं। ऐसी पालकियों में बैठ कर वह नगर का भ्रमण करती थीं जिन पर हाथी दाँत का काम हुआ होता था। आज उनके गलों में फांसी का फन्दा पड़ा हुआ है और उनके मोतियों की लड़ियाँ टूट चुकी हैं।

चौथे चरण में एक बार फिर सर्वशक्तिमान का स्मरण करते हुए नानक ने कहा है:

यह जगत निश्चित ही मेरा है और तू ही इसका अकेला मालिक है। एक घड़ी में तू इसे बनाता है और दूसरी घड़ी में उसे नष्ट कर देता है। जब देश के लोगों ने बाबर के हमले के बारे में सुना तो उसे यहाँ से भगाने के लिये पीर-फकीरों ने लाखों टोने-टोटके किये, लेकिन किसी से भी कोई फ़ायदा नहीं हो पाया। बड़े बड़े राजमहल आग की भेंट चढ़ा दिये गये, राजपुरूषों के टुकड़े-टुकड़े कर उन्हें मिट्टी में मिला दिया गया। पीरों के टोटकों से एक भी मुग़ल अंधा नहीं हो पाया। मुगलों ने तोपें चलायीं और पठानों ने हाथी आगे बढ़ाये। जिनकी अर्ज़ियाँ भगवान के दरबार में फाड़ दी गयी हों, उनको बचा भी कौन सकता है? जिन स्त्रियों की दुर्दशा हुई उनमें सभी जाति और वर्ग की औरतें थीं। कुछ के कपड़े सिर से पैर तक फाड़ डाले गये,कुछ को श्मशान में रहने की जगह मिली। जिनके पति लम्बे इन्तज़ार के बाद भी अपने घर नहीं वापस लौट पाये, उन्होंने आखिर अपनी रातें कैसे काटी होंगी?

ईश्वर को पुनः संबोधित करते हुए गुरू नानकदेव ने कहा था:
तू ही सब कुछ करता है और तू ही सब कुछ कराता है। सारे सुख-दुख तेरे ही हुक्म से आते और जाते हैं, इससे किसके पास जाकर रोया जाये, किसके आगे अपनी फ़रियाद पेश की जाये? जो कुछ तूने लोगों की किस्मत में लिख दिया है, उसके अतिरिक्त कोई दूसरी चीज़ हो ही नहीं सकती। इससे अब पूरी तरह तेरी ही शरण में जाना पड़ेगा। उसके अलावा अन्य कोई पर्याय नहीं।
(सन्दर्भ- स्टॉर्म इन पंजाब – क्षितिज वेदालंकार)

बाबर मतान्धता में जीवन भर अत्याचार करता रहा। जब अंत समय निकट आया तब उसे समझ आया की मतान्धता जीवन का उद्देश्य नहीं हैं अपितु शांति, न्याय, दयालुता, प्राणी मात्र की सेवा करना जीवन का उद्देश्य हैं।

अपनी मृत्यु से पहले बाबर की आँखें खुली ,उसे अपने किये हुए अत्याचार समझ मैं आये। अपनी गलतियों को समझते हुए उसने अपने बेटे हुमायूँ को एक पत्र लिखा जिसे यहाँ उद्धृत किया जा रहा हैं।

“जहीर उद्दीन मोहम्मद बादशाह गाज़ी का गुप्त मृत्यु पत्र राजपुत्र नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ के नाम जिसे खुद जिंदगी बक्शे सल्तनत की मजबूती के लिए लिखा हुआ। ए बेटे हिंदुस्तान की सल्तनत मुखत लीफ़ मज़हबों से भरी हुई हैं। खुद का शुक्र हैं की उसने तुझे उसकी बादशाही बक्शी है। तुझ पर फर्ज है कि अपने दिल के परदे से सब तरह का मज़हबी तअस्सुब धो दाल। हर मज़हब के कानून से इंसाफ कर। खास कर गौ की कुरबानी से बाज आ जिससे तू लोगों के दिल पर काबिज़ हो सकता है और इस मुल्क की रियाया तुझसे वफादारी से बंध जाएगी। किसी फिरके के मंदिर को मत तोड़ जोकि हुकूमत के कानून का पायबंद हो।इन्साफ इस तरह कर की बादशाह से रियाया और रियाया से बादशाह खुश रहे। उपकार की तलवार से इस्लाम का काम ज्यादा फतेयाब होगा बनिस्पत जुल्म की तलवार के। शिया और सुन्नी के फरक को नजरंदाज कर वरना इस्लाम की कमजोरी जाहिर हो जाएगी।और मुख्तलिफ विश्वासों की रियाया को चार तत्वों के अनुसार (जिनसे एक इन्सानी जिस्म बना हुआ है) एक रस कर दे, जिससे बादशाहत का जिस्म तमाम बिमारियों से महफूज रहेगा।खुश किस्मत तैमुर का याददाश्त सदा तेरी आँखों के सामने रहे जिससे तू हुकूमत के काम में अनुभवी बन सके। “
इस मृत्यु पत्र पर तारीख 1 जमादिल अव्वल सन 395 हिज्री लिखा है।

(सन्दर्भ- अलंकार मासिक पत्रिका, 1924 मई अंक )

हुमायूँ ने अपने पिता बाबर की बात को कई मायने में अनुसरण किया। उसके बाद अकबर ने भी इस बात को नजरअंदाज नहीं किया।

इसी से अकबर का राज्य बढ़ कर पूरे हिंदुस्तान में फैल सका था। बाद के मुग़ल शराब, शबाब के ज्यादा मुरीद बन गए थे। जब औरंगजेब का काल आया तो उसने ठीक इसके विपरीत धर्मान्ध नीति अपनाई। पहले गद्दी पाने के लिए अपने सगे भाइयों को मारा। फिर अपने बाप को जेल में डालकार प्यासा और भूखा मार डाला। मद में चूर औरंगजेब ने हिन्दुओं पर बाबर से भी बढ़कर अत्याचार किये। जिससे उसी के जीवन में अपनी चरम सीमा तक पहुँचा मुग़ल साम्राज्य का पतन आरंभ हो गया।

औरंगजेब के अत्याचार से हिन्दू वीर उठ खड़े हुए। महाराष्ट्र में वीर शिवाजी,पंजाब में गुरु गोविन्द सिंह , राजपूताने में वीर दुर्गा प्रसाद राठोड़, बुंदेलखंड में वीर छत्रसाल, भरतपुर और मथुरा में जाट सरदार, असम में लचित बोर्फुकान। चारों ओर से औरंगजेब के विरुद्ध उठ रहे विद्रोह को दबाने में औरंगजेब की संगठित सारी शक्ति खत्म हो गयी। न वह जिहादी उन्माद में हिन्दुओं पर अत्याचार करता, न उसके विरोध में हिन्दू संगठित होकर उसका प्रतिरोध करती। उसका मज़हबी उन्माद ही मुगलिया सल्तनत के पतन का कारण बना।
अपनी मृत्यु से कुछ काल पहले औरंगजेब को अक्ल आई तो उसने अपने मृत्यु पत्र में अपने बेटों से उसका बखान इस प्रकार किया हैं।

शहजादे आज़म को औरंगजेब लिखता है-

बुढ़ापा आ गया, निर्बलता ने अधिकार जमा लिया और अंगों में शक्ति नहीं रही। मैं अकेला ही आया, और अकेला ही जा रहा हूँ। मुझे मालूम नहीं की मैं कौन हूँ और क्या करता रहा हूँ। जितने दिन मैंने इबादत में गुजारे हैं, उन्हें छोड़कर शेष सब दिनों के लिए मैं दुखी हूँ। मैंने अच्छी हुकूमत नहीं की और किसानों का कुछ नहीं बना सका। ऐसा कीमती जीवन व्यर्थ ही चला गया। मालिक मेरे घर में था पर मेरी अन्धकार से आवृत आँखें उसे न देख सकी।

छोटे बेटे कामबख्श को बादशाह ने लिखा था -”मैं जा रहा हूँ और अपने साथ गुनाहों और उनकी सजा के भोझ को लिये जा रहा हूँ। मुझे आश्चर्य यही है कि मैं अकेला आया था, परन्तु अब इन गुनाहों के काफिले के साथ जा रहा हूँ। मुझे इस काफिले का खुदा के सिवाय कोई रहनुमा नहीं दिखाई देता। सेना और बारबरदारीकी चिंता मेरे दिल को खाये जा रही हैं। “
(सन्दर्भ मुग़ल साम्राज्य का क्षय और उसके कारण- इन्द्र विद्या वाचस्पति )

अलमगीर यानि खुदा के बन्दे के नाम से औरंगजेब को मशहूर कर दिया गया जिसका मुख्य कारण उसकी धर्मान्धता थी। पर सत्य यह है कि हिन्दुओं पर अत्याचार करने के कारण अपराध बोध उसे अपनी मृत्यु के समय हो गया था।

इस लेख को लिखने का मेरा उद्देश्य बाबर या औरंगजेब के विषय में अपने विचार रखना नहीं हैं अपितु यह सन्देश देना है कि

“अत्याचारी व्यक्ति जीवन में दुःख का ही भागी बनता है ”
यही अटल सत्य है और सदा रहेगा।