Thursday, March 28, 2024
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हिंदुस्तानी संगीत घरानों के रोमांचक किस्सों की दुनिया, वाह उस्ताद!

संगीत कौन नहीं सुनता हम सभी सुनते हैं चाहे वह फिल्म संगीत हो शास्त्रीय संगीत,लोक संगीत हो या गजल,कविता या कोई इंस्ट्रुमेंटल संगीत। संगीत में हर व्यक्ति की अपनी अपनी पसंद होती है अपने अपने पसंदीदा गीत और गायक,गायिकाएं भी । भारतीय संगीत की बात करें तो यह वह महासागर है जिसमें इतनी धाराएं मिलती हैं जिन्हें सुनने और समझने में शायद एक जीवन कम पड़ जाए। संगीत की कई पहलू हैं इस पुस्तक में संगीत के प्रमुख पहलू।

संगीत घरानों को पुस्तक वाह उस्ताद में बारीकी से समझाने का प्रयास किया गया है ।

संगीत और घरानों की समझ
जैसे एक आम संगीत प्रेमी जिसने कभी विधिवत कोई संगीत प्रशिक्षण नहीं लिया है उसके नजरिए से भी संगीत को दिखाया जाना चाहिए संगीत के राग और साज से संबंधित प्रयोगों को समझा जाना चाहिए।कुछ इस तरह से संगीत की बारीकियों का सरलीकरण हो जिससे उसकी रूचि संगीत शुरू हो उसे रस आए।

एक आम हिंदुस्तानी की शास्त्रीय संगीत में रुचि बिल्कुल खत्म सी हो गई है बहुत कम ऐसे व्यक्ति हैं जो शास्त्रीय संगीत को सुनना और समझना पसंद करते हैं ऐसा इसलिए भी की संगीत जैसे दुरूह विषय की आम समझ विकसित करने वाली पुस्तकें हमारे देश में बहुत ही कम लिखी गई हैं।इस पुस्तक वाह उस्ताद को संगीत घरानों का इतिहास कहा जाएं तो अतिश्यो्ति नहीं होगी लेखक ने इस पुस्तक को आप तक पहुंचाने में बहुत मेहनत की है।श्री झा ने ऐसा ही महान प्रयास किया है जो संगीत में रुचि रखने वाले व्यक्ति के लिए अद्भुत अमूल्य है।

दिलचस्‍प जानकारीयां
यह पुस्तक हमें महान संगीतकारों गायको और वादकों से जुड़ी छोटी छोटी बातें बहुत ही रोचक अंदाज में बताती है। घरानों कि समझ देने के साथ साथ लेखकराग क्या है,कितने प्रकार के हैं, स्वर क्या है,बंदिश किसे कहते हैं ,गायक और वादक सुर कैसे साधते हैंगुरु शिष्य परम्परा में किन नियम कायदे और अनुशासन की पालना होती थी और हैं के बारे में सहज तरीके से बताया है।एक आम संगितप्रेमी को शास्त्रीय नियम कायदों और शब्दावली से लेखक श्री प्रवीण झा ने मशहूर गायकों वादकों व संगीतकारों और उस्तादों से जुड़े किस्सों के द्वारा बहुत दिलचस्प तरीके से समझाने का शानदार व सराहनीय प्रयास किया है।

तानसेन और कानसेन
पुस्तक वाह उस्ताद में प्रवीण कुमार लिखते हैं कि हम सभी तानसेन तो नहीं बन सकते लेकिन “कानसेन” तो बन ही सकते हैं क्योंकि संगीत का आनंद लेने के लिए यह जरूरी नहीं है कि हमें संगीत के राग और सुर की समझ हो लेकिन यदि थोड़ा बहुत गायक,वादक और वाद्ययंत्र की समझ हो जाए तो सुनने का आनंद दुगना हो जाता है।पुरातन काल से लेकर वर्तमान समय तक संगीत में संगीत के क्षेत्र में भिन्न भिन्न प्रकार की शैलियां रही है और हर शैली के गायक व वादक किसी न किसी गुरु या घराने से जुड़े होते हैं।

संगीत घरानों का काल कालक्रम
घराने हिंदुस्तानी संगीत के वाहक हैं जिनसे पीढ़ी दर पीढ़ी और गुरु शिष्य परम्परा से होते हुए संगीत की विविध शैलियां हम तक पहुंची है।पंडित भीमसेन जोशी किराना घराने से हैं जैसे आगरा घराना,इटावा घराना, ग्वालियर घराना, जयपुर घरानाआदि अब एक साधारण व्यक्ति है सोचता है कीघराने क्या है इन में क्या फर्क है अब इन मूलभूत बातों को बातों को अगर वह समझ ले तो संगीत में रस कई गुना बढ़ जाता है।

इस पुस्तक से हमें मालूम पड़ता है कि संगीत सम्राट तानसेन का असली नाम राम तनु पांडे था जो अकबर के दरबार से पहले रीवा दरबार में संगीत साधना करते थे और बैजू बावरा।

घराने क्या हैं
लेखक के अनुसार घराने को अंग्रेज़ी में ‘स्कूल ऑफ़ म्यूज़िक’ कह सकते हैं। एक पुश्तैनी तालीम। कई संगीत अध्येता कहते हैं कि जब किसी की तीन पीढ़ियाँ हो जाएँ, तो ‘घराना’ कहला सकता है। वहीं, कुछ लोग इसे एक ख़ास संगीत शैली भी कहना चाहेंगे।

दिल्ली की कई पीढ़ियाँ निकल गयीं, तो भी लोग ‘घराना’ मानने से कतराते हैं। इंदौर में लगभग इकलौते उस्ताद अमीर ख़ान की गायकी से इंदौर घराना बन गया। बनारस में इतनी अलग-अलग तरह की शैलियाँ रहीं कि यह कहना कठिन है कि बनारस का घराना आख़िर है क्या? और अब तो यह सब एक रुप होता जा रहा है, सभी घराने मिलकर एक होते जा रहे हैं, घरानों के सभी ‘सीक्रेट’ अब ओपेन-सोर्स बन गए। जिसे मर्ज़ी अपना ले।

घरानों का अस्तित्व
लेकिन फिर भी, हम घरानों के अस्तित्व से इनकार नहीं कर सकते। और इसलिए उन्हें समझना ज़रूरी है। तानसेन के समय और उससे पहले भी घराने नहीं होते थे। तब ध्रुपद गाया जाता था, और उनकी ‘बानी’ होती थी। यह एक संगीत शैली थी, कोई पुश्तैनी मामला नहीं था।डागुर बानी, नौहर बानी, खंडार बानी और गौहर बानी। जैसे मियाँ तानसेन गौहर बानी से थे। इन सबके केंद्र या प्रश्रय राजदरबारों और ज़मींदारों के माध्यम से थे। ज़ाहिर तौर पर दिल्ली की मुग़ल गद्दी ही केंद्र थी ।

घरानों का नामकरण
एक और बात रही कि घरानों के नाम ख़ानदानी पूर्वज धरती के आधार पर थे। वह नाम भले किराना (कैराना) रखें, लेकिन उनका केंद्र दक्खिन में धारवाड़ में रहा। जयपुर अतरौली घराने का केंद्र कोल्हापुर बना। आगरा घराना बड़ौदा, मैसूर और मुंबई में पसरा। शाहजहाँपुर घराना और इटावा घराना बंगाल चला गया। वहीं, ग्वालियर घराने के मुख्य वंश कुछ हद तक ग्वालियर में ही रहे”।

प्रमुख घराने
di वाह उस्ताद में देश के ख्यात घरानों का विवरण पुस्तक में विस्तार से देते हैं जिनमें से कुछ के नाम यहां दिए गए हैं जैसे ग्वालियर घराना, घराना आगरा, सेनिया घराना(मिंया तानसेन के नाम पर),
मैहर घराना,अल्लाह दिया खान घराना, इंदौर घराना, मेवात घराना, डगुर कराना और दिल्ली घराना। इसके साथ साथ इन घरानों के पंडित भीमसेन जोशी,ओंकारनाथ ठाकुर,उस्ताद विलायत खान,पंडित जसराज जैसे प्रख्यात कलाकारों की रचनाओं और इनसे जुड़े हुए प्रसिद्ध किस्सों का लेखक बेहतरीन तरीके से वर्णन करते हैं जो पाठक को चकित करता रहता है।

संगीत से उपचार
लेखक म्यूजिक थेरेपी से जुड़ा हुआ एक किस्सा लिखते हैं कि एक बार ओंकारनाथ ठाकुर राग से इलाज करने की बात कह रहे थे तो किसी ने खड़े होकर कहा गुरु जी फिर आप का गठिया ठीक क्यों नहीं होता। यह बात फैलने लगी थी कि ओंकार नाथ जी रागों से शरीर पर प्रभाव डालते हैं।

मुसोलिनी का इलाज
इटली के तानाशाह मुसोलिनी जब यह बात सुनी तो बुलाओ भेजा यह सिद्ध करके दिखाएं की संगीत से शरीर पर प्रभाव पड़ता है क्योंकि मुसोलिनी को उस समय अनिद्रा की बीमारी थी। मुसोलिनी को देखकर ओमकारनाथ ठाकुर ने वीर रस में “राग हिंडौन” की तान लेनी शुरू की तो मुसोलिनी पसीने पसीने हो गया आंखें लाल हो गई चेहरा अंगारे जैसे हो गया और आखिर में बोला “स्टॉप”

फिर पंडित जी ने करुण रस में “राग छाया नट” गाया तो मुसोलिनी जैसा तानाशाह भी भाव विभोर हो गया फिर पंडित जी दूसरे कमरे से वायलिन देकर आ गए और उसी रस में बजाने लगे।पंडित जी ने अनिद्रा के लिए शाम को राग पूरिया सुनने को कहा और इस तरह मुसोलिनी की म्यूजिक थेरेपी कर आए।

रोचक किस्से
वाह उस्ताद में एक जगह लेखक जयपुर अतरौली घराने की गायिका केसरबाई और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से जुड़ा हुआ एक किस्सा लिखते हैं केसर भाई को रविंद्र नाथ टैगोर सुर श्री कहते थे उनका कुर्सी पर तन कर बैठना,मंच पर पुरुष संगीतकारों और आयोजकों पर रौब रखना, कुछ भी उच्च नीच हुई तो उसी वक्त गाना बंद कर गालियां देते हुए जाना यह कहा जा सकता है कि संगीत में पुरुषों की सत्ता पर पहली काबिल चोट केसरबाई केरकर ने की थी।

क्योंकि उससे पहले भी तवायफ परिवारों की महिलाएं गाती रही थी लेकिन केसरबाई नाचने वाली तवायफ नहीं थी। एक बार वह गा रही थी तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री यशवंतराव चौहान अगली पंक्ति में बैठे थे इतने उत्साहित हो गई कि कहा केसर बाई आप जो चाहे मांग ले तो केसर बाई ने हंसकर कहा अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी मुझे दे दीजिए यशवंतराव जी ने कहा यह तो मुमकिन नहीं कुछ और मांग लीजिए तो केसर भाई ने कहा जिस की कुर्सी अपने हाथ में नहीं है भला केसर बाई को क्या देगा।

एक बार दिल्ली में श्रीमती इंदिरा गांधी ने केसर बाई का गला छूकर कहां अपनी बुलंद आवाज मुझे दे दीजिए तो केसरबाई बोली तुम तो यूं ही इतना चिल्लाती हो मेरा गर्ल मिल गया तब तो भूचाल ला दोगे।

साजों के घराने
गायकी के घरानों पर चर्चा के बाद लेखक तबला सीता सारंगी बांसुरी जैसे साजों पर भी विस्तार से प्रकाश डालते हैं।

रागों के प्रहर
लेखक हर राग को दिन रात में समय के हिसाब से जैसे प्रातः काल संध्या रात्रि मध्यरात्रि को गए जाने वाले रागों को विस्तार से दर्शाते हैं। मौसम संबंधी रागों का भी सहज वर्गीकरण करते हैं।

बंदिश बनाने वालों के नाम
बंदिश कई प्रकार की होती है जैसे सदारंग,अदा रंग, सरसरंग आदि नियमत खान,फिरोज खान,दयान खान,अनवर हुसैन आदि उस्ताद इन बंदिशों के रचनाकर हैं।

संगीत संबंधी शब्द

लेखक ने संगीत से जुड़े शब्दों पर प्रकाश डालते हैं जैसे पकड़, चलन, मुर्की, गमक,बोल,तान,तिहाई।

एक आम संगीत प्रेमी के लिए यह किताब किसी खजाने से कम नहीं है जो आपकी लाइब्रेरी को समृद्ध करेगी। लेखन ने संगीत जैसे जटिल विषय से जुड़ी बारीकियां सरल, सहज भाषा में पहुंचाने का सार्थक प्रयास किया है।लेखक का शोध व मेहनत किताब में स्पष्ट रूप से नजर आती है जिसके लिए प्रशंसा के पात्र हैं।

पुस्तक के लेखक के बारे मे-
लेखक प्रवीण कुमार झा जो पेशे से चिकित्सक हैं लेकिन साहित्य में उनकी गहरी रुचि है। वह हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखते हैं दोनों भाषाओं पर इनकी जबरदस्त पकड़ है । बहुत ही खोजपूर्ण और रोचक तरीके से लेखनी चलाते हैं। इनका ब्लॉग भी बहुत लोकप्रिय है बिहार में जन्मे पले बढ़े श्री प्रवीण कुमार ने पुणे दिल्ली और बेंगलुरु में मेडिकल की पढ़ाई की है। लेखक वर्तमान में नॉर्वे में रहते हैं।

ये पुस्तक इस लिंकपर भी उपलब्ध है https://www.amazon.in/-/hi/Praveen-Kumar-Jha/dp/9389373271

साभार lookyourbook.com/ से

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