Thursday, April 18, 2024
spot_img
Homeखबरेंसब भिखारी हैं इस जग में

सब भिखारी हैं इस जग में

जापान का एक सम्राट रात को निकलता था अपनी राजधानी देखने कि क्या स्थिति है—वेश बदलकर। वह बड़ा हैरान हुआ। और सब तो ठीक था, जब भी वह जाता तो एक भिखारी को जागते हुए पाता एक वृक्ष के नीचे। आखिर उसकी उत्सुकता बढ़ गयी । और एक दिन उसने पूछा कि रातभर तू जागता क्यों है? तो उस भिखारी ने कहा कि अगर सो जाऊं और कोई चोरी कर ले, तो? वृक्ष के नीचे बैठा हूं, कोई और तो सुरक्षा है नहीं, तो दिन में सो लेता हूं। क्योंकि दिन में तो सड़क चलती रहती है, लोग होते हैं; रात तो जगना ही पड़ता है।

सम्राट ने उसके आस-पास पड़े हुए चीथड़ों का ढेर देखा, दो-चार भिक्षा के टूटे-फूटे पात्र देखे, उनके बचाव के लिए वह रातभर जग रहा है।

भिखारी भी चिंतित है कि चोरी न हो जाये। साधु भी चिंतित है कि उसका कुछ सामान न खो जाये। तो उसकी गृहस्थी छोटी हो गयी, सिकुड़ गयी, लेकिन मिटी नहीं। उसके लालच का फैलाव कम हो गया, लेकिन मिटा नहीं।

और ध्यान रहे, लालच का फैलाव जितना कम हो जाये, लालच उतना ही ज्यादा नशा देता है; क्योंकि इंटेंसिटी बढ़ जाती है। यह जरा समझने-जैसा है। जैसे कि सूरज की किरणें पड़ रही हैं, आग पैदा नहीं होती; लेकिन आप एक लेन्स से सूरज की किरणों को इकट्ठा कर लें एक कागज पर, सारी किरणें इकट्ठी हो जायेंगी, आग पैदा हो जायेगी। किरणें तो पड़ रही थीं, लेकिन बिखरी हुई थीं; इकट्ठी पड़ती हैं तो कागज जल उठता है, आग पैदा हो जाती है।

ध्यान रहे, साधारण गृहस्थ आदमी की वासना की किरणें तो बिखरी हुई हैं। साधु के पास तो ज्यादा सामान नहीं रह जाता, जिस पर वह अपनी वासना को फैला दे; बहुत थोड़ा रह जाता है, इसलिए बहुत इंटेंस, बड़ी तीव्रता से वासना इकट्ठी हो जाती है। और कई बार ऐसा होता है कि फैला हुआ गृहस्थ उतना गृहस्थ नहीं होता, जितना सिकुड़ा हुआ साधु गृहस्थ हो जाता है; जकड़ जाता है। थोड़ी जगह वासना इकट्ठी होकर आग पैदा करने लगती है। इसीलिए मनुष्य का मन अनजाने ही, जैसे सहज वृत्ति से सत्य को जानता है |

-ओशो
महावीर वाणी–(भाग–2); प्रवचन–22

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार