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अमेरिका नहीं, कनाडा जाईये, वहाँ है भरपूर नौकरियाँ और अवसर

‘अमेरिका फर्स्ट’ के नाम पर एच1बी और एच4 (स्पाउज वीजा) के जरिए वहां बड़ी तादाद में कुशल युवाओं के लिए अवसर सीमित किए जा रहे हैं वहीं, कनाडा तमाम रियायतों के साथ इन्हें लुभाने में जुटा है। कनाडा सरकार ने ‘ग्लोबल स्किल स्ट्रेटेजी’ के तहत ग्लोबल टैलेंट स्ट्रीम की रूपरेखा तैयार की है। इसमें ‘टेंपरेरी फॉरेन वर्कर प्रोग्राम’ और ‘इंटरनेशनल मोबिलिटी प्रोग्राम’ के तहत बड़े स्तर पर ‘एक्सप्रेस एंट्री’ वीजा देने की व्यवस्था की गई है। इन कार्यक्रमों के तहत टेक कंपनियों को विज्ञान, इंजीनियरिंग तथा आईटी के क्षेत्र में उच्च दक्षता वाले कर्मियों को प्रायोजित करने की छूट मिलेगी।

कनाडा में जस्टिन त्रूदेव की फेडरल सरकार ने बजट में अगले 5 वर्षों के दौरान इस मद में 2,793 लाख डॉलर खर्च करने का प्रावधान किया है। सालाना 498 लाख डॉलर अलग से खर्च किए जाएंगे। इन योजनाओं से भारत और चीन के कुशल कर्मियों को रोजगार के साथ छह माह के भीतर स्थायी निवासी वीजा का दर्जा भी मिल सकेगा। यह योजना 12 जून से शुरू होगी। माइक्रोसॉफ्ट के अध्यक्ष बिल गेट्स सहित कुछ बड़ी टेक कंपनियों के सीईओ अप्रैल के अंतिम सप्ताह में वैंकूवर में थे। माइक्रोसॉफ्ट ने सिएटल सीमा पार वैंकूवर में एक बड़ा टेक परिसर खोला है।

चर्चा है कि फेडरल और प्रांतीय सरकार की मदद से ब्रिटिश कोलंबिया को सिलिकॉन वैली के रूप में विकसित किया जाएगा। ब्रिटिश कोलंबिया के उदारवादी नेता क्रिस्टी क्लार्क इसमें रुचि ले रहे हैं। उन्होंने टेक कंपनियों को सभी अपेक्षित सुविधाएं देने का आश्वासन दिया है। उनके अनुसार, इससे कनाडा के टेक छात्रों को तो लाभ होगा ही, विदेशी छात्रों को भी स्नातक की डिग्री लेने के बाद कनाडा के वीजा नियम के तहत शिक्षा पूरी करने पर नौकरी की गारंटी मिलेगी। हालांकि अमेरिका ऐसी कोई गारंटी नहीं देता।

अंग्रेजी जरूरी नहीं

भारतीय कुशल कर्मियों के पक्ष में दूसरी बात यह है कि उनके लिए अंग्रेजी भाषा की समस्या नहीं रहेगी। ब्रिटिश कोलंबिया में प्रारंभ में कुशल कर्मियों को अस्थायी वीजा सुविधाएं दी जाएंगी। ऐसे अस्थायी कर्मचारियों के लिए कनाडा सरकार और प्रांतीय सरकार की ओर से भी कोई बंधन नहीं रहेगा और वे अपनी कंपनी से जुड़े रह सकेंगे। इसके अलावा, ऐसे सभी टेक कर्मियों के परिवारों और उनके बच्चों को भी विशेष सुविधाएं देने की योजना बनाई गई है। कनाडा में हाई टेक कंंप्यूटिंग प्रोग्रामिंग और कंप्यूटर सिस्टम एनालिसिस को रेखांकित किया गया है। इसके तहत विशेष तौर पर भारत और चीन के कुशल कर्मियों को प्राथमिकता दी जाएगी। इसके लिए 1.10 लाख कर्मियों का साक्षात्कार लिया जा चुका है। अभी तक कनाडा में टेक कर्मियों को अमेरिका के मुकाबले कम वेतन और सुविधाएं दी जाती थीं, इसी कारण से इस क्षेत्र में ज्यादा काम नहीं हो सका।

‘आउटसोर्स’ कारोबार पर नजर

दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान ‘रस्ट बेल्ट’ राज्यों में बेरोजगारों के मन में एच1बी वीजा खत्म करने और रोजगार के अवसर बढ़ाने को लेकर उम्मीदें जगाई थीं। उन्होंने कहा था कि अस्थायी वीजा विज्ञान, इंजीनियरिंग और आईटी के योग्यतम कर्मियों को ही दिया जाना चाहिए, जो उच्चतम वेतन पाते हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने इस बाबत आदेश भी जारी कर दिए। इसके मुताबिक, विज्ञान, इंजीनियरिंग और आईटी में ‘उत्कृष्ट कुशल कर्मियों को उच्चतम वेतन’ पर एच1बी वीजा दिया जाएगा। इससे वैसे भारतीय और चीनी आईटी कर्मियों को एच1बी वीजा नहीं मिल पाएगा, जिन्हें सामान्यतया कंप्यूटर प्रोग्रामर के तौर पर यह मिल जाता था। बता दें कि अमेरिकी आईटी उद्योग में कार्यरत आठ एच1बी कर्मियों में से एक भारतीय है। ट्रंप के इस फैसले से भारत सरकार भी चिंतित है, क्योंकि एच1बी से भारतीय आईटी कंपनियां 1,500 अरब डॉलर का ‘आउटसोर्सिंग’ कारोबार करती हैं, जो ट्रंप को गवारा नहीं है।

अमेरिका से मोह भंग
ट्रंप के 18 अप्रैल के शासकीय आदेश के बाद अग्रिम राशि देकर प्रीमियम वीजा प्रणाली को खत्म किया जा चुका है। एच1बी के ताजा मामलों की जांच के लिए फेडरल एजेंसियों जैसे डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस, लेबर डिपार्टमेंट, यूएस बॉर्डर और कस्टम के पास 5-6 महीने का वक्त है। एक अक्तूबर से शुरू होने वाले सत्र के लिए अप्रैल के शुरुआती पांच दिनों में ही 85,000 अस्थायी वीजा के लिए 1,99,000 आवेदन मिले, जो बीते साल के मुकाबले 37,000 कम हैं। उधर, ट्रंप के आदेश से कुछ घंटे पहले ऑस्ट्रेलिया ने भी ‘457’ को रद्द करने की घोषणा की थी, जिससे भारतीय कुशल कर्मियों के सामने एक और चुनौती खड़ी हो गई।

कनाडा की घोषणा से उत्साह
कनाडा के मीडिया में अमेरिकी राष्ट्र्पति डोनाल्ड ट्रंप के ‘बाय अमेरिकन, हायर अमेरिकन’ के आदेश को ‘ब्लेसिंग इन डिस्गाइज’ (अप्रत्यक्ष कृपादान) के रूप में लिया जा रहा है। अमेरिका में एच1बी पर काम कर रहे भारतीय कुशल कर्मी कनाडा की ‘ग्लोबल स्किल स्ट्रेटजी’ के तहत एक्सप्रेस एंट्री वीजा देने की घोषणा से उत्साहित हैं। हालांकि ये आईटी कर्मी एक्सप्रेस एंट्री वीजा के लिए कनाडा सरकार द्वारा ली जाने वाली ‘आइल्ट्स’ परीक्षा देने को तैयार नहीं हैं। कनाडा के तकनीकी क्षेत्र में कुशल कर्मियों की बहुत मांग है। इसे देखते हुए वैंकूवर, वाटरलू शहर तथा टोरंटो कॉरिडोर को सिलिकॉन वैली की तर्ज पर विकसित किया जा रहा है। तकनीकी सेवा क्षेत्र कनाडा का पांचवां बड़ा नियोक्ता सेक्टर है। इस सेक्टर में पेशेवर, वैज्ञानिक और तकनीकी सेवा से 13 लाख कुशल कर्मचारी जुड़े हैं। टेक कंपनियां आश्वस्त हैं कि नए परिवेश में वैश्विक प्रतिभाएं अपना कॅरियर बना सकेंगी। कनाडा सरकार और कंपनियां गर्मजोशी से उनका स्वागत करने को बेताब हैं। मांट्रियल की सलाहकार और टेक्नोलॉजी कंपनी की अध्यक्ष इवान कार्डोना ने कहा कि देश के कायदों में बदलाव से कनाडा की टेक कंपनियों को लाभ होगा और वैश्विक प्रतिभा उभरते तकनीकी क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दे सकेंगी। सरकार ने टेक कंपनियों को भरोसा दिया है कि वे वैश्विक प्रतिभा की खोज करती रहें और दो सप्ताह में आवेदक के दस्तावेज आव्रजन विभाग में पेश करें।

व्यापार बढ़ाने में जुटा कनाडा
भौगोलिक दृष्टि से रूस के बाद कनाडा दूसरा बड़ा देश है। हालांकि इसकी आबादी मात्र तीन करोड़ है, जो भारत के कई राज्यों से काफी कम है। पड़ोसी देश अमेरिका के साथ कनाडा के सदियों पुराने व्यापारिक और सामरिक रिश्ते हैं। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापारिक समझौते के अलावा उत्तरी अमेरिका मुफ्त व्यापार करार भी है। लेकिन कनाडा जब ट्रांस पैसिफिक साझेदारी संधि का सदस्य बना तो अमेरिका ने एतराज जताते हुए इस संधि से अपने हाथ खींच लिए। लेकिन कारोबार बढ़ाने के लिए कनाडा की कोशिशें जारी हैं। दोनों देशों के बीच 2016 में 635 अरब अमेरिकी डॉलर का कारोबार हुआ है, जिसमें कनाडा ने 25 अरब डॉलर का ज्यादा माल निर्यात किया था। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कनाडा में व्यापार ही नहीं, कुशल कर्मियों की भी बहुत मांग है। अमेरिका के बाद कनाडा का दूसरा बड़ा व्यापारिक साझीदार चीन है, जबकि भारत सातवें स्थान पर है। कनाडा को अपनी सेवा और इंजीनियरिंग, ऊर्जा, कम्प्यूटर, बीमा आदि क्षेत्र की कंपनियों पर गर्व है। अमेरिका स्थित कनाडा की कंपनियों ने पांच लाख अमेरिकियों को नौकरियां दी हैं।

सिखों का दबदबा
नाडा में पंजाब के सिखों का सरकार और व्यापार में दबदबा है। संसद में 18 सिख सांसद तो हैं ही, रक्षा मंत्री भी सिख हैं। वैंकूवर में कानूनी सलाहकार कंपनी चलाने वाले हरदेव सिंह बल ने बताया कि प्रवासी भारतीयों के लिए कनाडा एक आदर्श देश है, जहां किसी तरह का नस्लीय भेदभाव नहीं है। इसके अलावा, वैंकूवर देश का सबसे बड़ा मालवाहक बंदरगाह है, जहां बड़े पैमाने पर भारत और चीन से माल आता है। यहां बस-ट्रक चालकों की बहुत जरूरत है। बंदरगाह पर माल ढुलाई से लेकर ट्रकों में कनाडा और अमेरिका के सुदूर क्षेत्रों में भारतीय और पाकिस्तानी सिख ही माल पहुंचाते हैं। फिलीपींस के बाद भारत दूसरा देश है, जिसे 2015 में सर्वाधिक 39,530 स्थायी वीजा दिए गए।

‘ग्लोबल टैलेंट स्ट्रीम’ के तहत इस साल तीन लाख कुशल कर्मियों की जरूरत है, जिसे 4.50 लाख करने की संभावना है। नए नियमों के अनुसार, छात्र विश्वविद्यालय परिसर के बाहर वर्क परमिट के बिना काम कर सकते हैं। टोरंटो, मांट्रियल और वैंकूवर में कई लॉ फर्म भी एच1बी व एच4 वीजाधारकों को एक्सप्रेस वीजा देने की तैयारी कर रही हैं। कनाडा ने कुशल कर्मियों को एक्सप्रेस एंट्री से स्थायी निवासी वीजा देने के साथ अंतर कंपनी स्थानांतरण आव्रजन, स्पाउज वर्क परमिट, फेमिली क्लास स्पांसरशिप भी देने की घोषणा की है। स्टूडेंट वीजा परमिट वालों को कॉमन लॉ पार्टनर व स्टूडेंट वीजा भी दिया जाएगा।

साभार- साप्ताहिक पाञ्चजन्य से