Friday, April 19, 2024
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पं. वंशीधर मिश्रः भारतीय राजनीति का एक गुमनाम सितारा

संविधान निर्माण सभा के लखीमपुर खीरी से पं. बंशीधर मिश्र जी सद्स्य थे , जब गुलाम भारत के नेताओं ने ब्रिटिश कैबिनेट मिसन के नेताओं ने एक निगोसिएसन के तहत संविधान सभा का चुनाव प्रदेशीय विधान सभाओं के सदस्यों द्वारा किया गया उसमे भारत की तमाम रियासतों के राजा महराजाओं को भी हक था अपने वोट का प्रयोग करने का इस प्रकार संविधान सभा की प्रथम बैठक ९ दिसम्बर १९४६ को दिल्ली में हुई ब्रिटिश राज़ में, तब पाकिस्तान की विधान सभायें भी इसमे सम्मलित थी और वहां के राजा महाराजा भी कान्ग्रेस बहुमत मे थी, १५ अगस्त १९४७ के बाद जब पाकिस्तान भारत से अलग हुआ तब संविधान सभा में कुल २०७ सदस्य थे जिनमें २८ सदस्य मुस्लिम लीग़ के, १५ महिला सदस्य और ९० नामित विभिन्न रियासतों के नामित राजा-महाराजा, शेष कान्ग्रेस के सदस्य कांग्रेस पूर्ण बहुमत में थी ८२ % वोट कांग्रेस के पास थे। १५ अगस्त १९४७ को भारत (डोमेनिअन) की आज़ादी के बाद यही संविधान सभा लोकसभा के रूप में जानी गयी इस लिहाज़ से पं० बंशी धर मिश्र खीरी से पहले संसद सदस्य भी थे।

खीरी के लोगों को फ़क्र होना चाहिये की यहां से किसी व्यक्ति ने भारत के संविधान पर हस्ताक्षर किये। इस तरह से लखीमपुर खीरी का संविधान निर्माण में योगदान होने का गौरव हम सभी को होना चाहिये और इस गौरव को देने वाले व्यक्ति का पर इसे विडंबना ही कहेगे कि पं० जी की कोई फ़ोटो या प्रतिमा खीरी के किसी भी यथा उचित स्थान पर नही है और अब न ही लोग उन्हे जानते हैं यह दुखद है कि हम अपने गौरवशाली अतीत को भूलते जा रहे है तो फ़िर भविष्य कैसे बेह्तर होगा!

राजनीति का महारथी- पंडित वंशीधर मिश्र
आज भारत के चुनावी महापर्व पर मुझे कुछ पुराने समय के बेह्तरीन महापुरषों का स्मरण बरबस होता है जो मैने अपने पिता से दादा से, नाना से और मां से सुना आप सभी को बताता हूं! सन १९५२ के प्रथम चुनाव जब लोकसभा और विधान सभा के चुनाव साथ साथ हुआ करते थे आजादी की लडाई का ताजा ताजा खुमार अभी बाकी था लोगो मे देश प्रेम के जज्बे अभी बाकी थे और इस प्रथम उत्सव में लोग बड़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे ……एक आज़ाद मुल्क के आज़ाद लोग!!

कांग्रेस जो प्रतीक थी आज़ादी की और भारत का गरीब तबका शायद राजा महाराजाओं को छोड कर धन के मामले में सभी गरीब थे। और ये सभी कांग्रेस के साथ थे उस समय खीरी से पण्डित वन्शीधर मिश्र विधान सभा का चुनाव लड रहे थे और लोक सभा से कुंवर खुसवक्त राय ! वंशीधर मिश्र असल में वह नाम था जिसके नाम से कांग्रेस और कांग्रेस के नाम से पंडित जी, उनकी तस्वीर देख कर ऐसा मालूम पड़्ता है वो नेता जी से प्रभावित थे उनका ऎनक सुभाष बाबू की तरह और उनका पहनावा भी सु्भाष जैसा और क्यो ना हो नेता जी पूरे भारत के हीरो थे भले वह कांग्रेस की राजनैतिक व्यवस्था से अलग रहे हो!

लक्ष्मीपुर यानी लखीमपुर खीरी जहां वन संपदा बहुतायात में थी तो वंशीधर जी के १९५२ के चुनाव जीतने के उपरान्त उत्तर प्रदेश सरकार का वन मंत्री बनाया गया, राजनीति में माहिर यह व्यक्ति किताबों के भी शौकीन थे और खीरी में इनसे ज्यादा किसी पुस्तकालय में भी पुस्तकेंनही थी कांग्रेस के बडे़ नेता कमलापति त्रिपाठी जैसे लोग इन्हे भेट में पुस्तके दिया करते थे पंडित जी के स्वर्गवास के पश्चात् इनकी बहुमूल्य किताबे अब लखीमपुर के गांधी विद्यालय में मौजूद है इन्होने कई पुस्तके लिखी जो अब गुमनामी में है|

शिव प्रकाश शुक्ल जी एडवोकेट बताते है कि सन १९५२ के प्रथम चुनाव मे पंडित जी के खिलाफ़ १६ स्थानीय कथित राजा चुनाव लड़ रहे थे (क्यो कि वे सिर्फ़ नाम के राजा थे अंग्रेजों ने सब को अपना नौकर बना रखा था ठेकेदार या तालुकेदार या छोटे जमींदार) और सभी राजाओं की जमानत जब्त हो गई। वजह साफ़ थी पंडित जी ने आज़ादी की लड़ाई मे अपनी उम्र के तमाम वर्ष जेल मे गुजारे और वह नेहरू के करीबी थे, अंग्रेजी राज में राजाओं और जमींदारो के जुल्मों से लहुलुहान हो चुका जनमानस अब आज़ाद भारत की प्रणेता कांग्रेस के साथ परिवर्तन चाहती थी ।

१९५७ के द्वतीय चुनाओ में कुछ स्थानीय राजशाही मानसिकता के लोगों ने वंशीधर जी पर चारित्रिक आरोप लगाये और इन संदेशों को पं नेहरू तक पहुचाया नतीजा ये हुआ कि ५७ के चुनाव में मिश्र जी को कांग्रेस ने टिकट नही दिया, इसका परिणाम ये हुआ कि ५७ में खीरी में कांग्रेस का लगभग सफ़ाया हो गया और प्रज़ा सोसलिस्ट पार्टी की जीत हुई। मात्र शिकायत करने पर इस महान नेता का टिकट काटा गया पर आज नेताओं पर सैकड़ों मुकदमें लदे होने के बावजूद टिकट भी दिया जाता है और वह जीतते भी है।

उस दौर के चुनाव में जनता और नेता जिस चाव और इमानदारी से हिस्सा लेते थे जिसका पता मुझे मेरी मां की बातॊ से लगता है “मेरे नाना पं. रामलोटन मिश्र शास्त्री निवासी मुरई ताजपुर जो उस समय के कांग्रेस के बडे़ नेताओं मे से एक थे सहकारिता की राजिनीति में उनका सानी नही था वो छोटे जमींदार की हैसियत रखते थे और बहुत ही मह्त्वाकाक्षी उनकी मह्त्वाकाक्षा इससे पता चलती है कि वह रसियन ट्रेक्टर तब रखते थे जब यहां के राजाओं के पास ट्रेक्टर नही थे। हरगांव चीनी मिल के कई वर्षों तक डाइरेक्टर रहे, एक संस्मरण वंशीधर जी के भतीजे शिवप्रकाश शुक्ल जी बताते है कि मेरे नाना और मिश्र जी चुनाव प्रचार के दौरान लईया और चना साथ साथ बैठकर खाया करते थे और यही तब नेताओं का फ़स्ट फ़ूड हुआ करता था।

और कांग्रेस पार्टी के नेता, अम्मा बताती है जब पं. वंशीधर मिश्र घर आते थे तो मेरे नाना जी घर की महिलाओं से बडे़ वर्तनों मे लगातार पानी गर्म करने को कहते ताकि नेता जी और उनके समर्थकों को तुरन्त चाय पिलाई जा सके, अम्मा कहती है कि तब वह सिर्फ़ सात-आठ वर्ष की थी उन्हे याद है मेरे नाना जी माला पहनाकर स्वागत करते मिठाई खिलाते फ़िर चाय!! उन दिनों के चुनाओं मे मेरे नाना जी खेती के सारे पैसे जनता की सेवा में लगाते और पार्टी के प्रचार – प्रसार में उनकी इस आदत से घर में हमेशा दिक्कते रहती थी।

खीरी की राजिनीति में पं. वंशीधर मिश्र का नाम आज भी सर्वोपरि है और पुराने लोग उन्हे आज भी याद करते है इस दूषित राजिनीति के दौर में भी।

***
कृष्ण कुमार मिश्र वन्य जीव विशेषज्ञ एवं दुधवा लाइव पत्रिका के संस्थापक संपादक है।

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