Saturday, April 20, 2024
spot_img
Homeमीडिया की दुनिया सेकिस्सा दो नामी जूता बनाने वाली कंपनियों की जूतमपैजार का

किस्सा दो नामी जूता बनाने वाली कंपनियों की जूतमपैजार का

अक्सर सुना होगा कि गली मोहल्ले की लड़ाई में जूते चल गए. आज जूते बनाने वाली कंपनियों की लड़ाई की बात करते हैं. यह एक परिवार के दो भाइयों के लड़ने की कहानी है जिसने दुनिया की दो सबसे बड़ी कंपनियों को जन्म दिया. उन भाइयों की जो मरते दम तक एक-दूसरे से बैर निभाते रहे. जूते बनाने वालों की इस लड़ाई ने एक पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया था. हम बात कर रहे हैं 70 साल तक एक दूसरे से बैर निभाने वाली ‘एडिडास’ और ‘प्यूमा’ कंपनी की. इनके बीच की लडाई कॉर्पोरेट जगत की लड़ाइयों के सबसे मशहूर किस्सों में से एक है.

कहानी जर्मनी में औराह नदी के किनारे बसे हैत्सोगेनाउराख शहर से शुरू होती है. क्रिस्टोफ डैस्लर और पॉलिना के चार बच्चे थे- फ्रिट्ज, रुडोल्फ(रूडी), अडोल्फ़ (एडी) और मैरी डैस्लर. क्रिस्टोफ जूते बनाने वाली एक कंपनी में काम करते थे और पॉलिना लॉन्ड्री चलाती थीं. तीनों भाई लॉन्ड्री बॉयज के नाम से मशहूर थे.

कुछ बड़े होने पर फ्रिट्ज म्यूनिख के बैंक में काम करने लगा, रुडोल्फ़ पिता से जूते बनाना सीख रहा था कि तभी पहले विश्व युद्ध में फ्रिट्ज और रूडी को सेना में भर्ती होने का हुकम आया. बाद में एडी भी सेना में जमा हो गया गया. पहले विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद पॉलिना का लॉन्ड्री का कारोबार लगभग बंद हो गया और तब एडी ने लॉन्ड्रीघर में ही जूते बनाने शुरू किये. 1924 में रूडी और एडी ने मिलकर ‘डैस्लर ब्रदर्स शू कंपनी’ की स्थापना की. दोनों भाइयों ने फ़ैसला लिया कि वे सिर्फ़ स्पोर्ट्स शूज ही बनायेंगे. कंपनी चल निकली और साथ में दोनों की किस्मत भी.

फैक्ट्री के पास ही दोनो भाइयों ने अपने लिए एक शानदार घर बनवाया. ऊपरी मंज़िल पर रूडी और उनकी पत्नी फ्रिदल रहते थे और नीचे एडी और उनकी पत्नी कैथी. दोनों भाइयों में खेल के लिए ज़बरदस्त लगाव था और दोनों ही शहर में अलग-अलग फुटबाल की टीमों के समर्थक हुआ करते थे.

जर्मनी में नाज़ीवाद के उदय के साथ दोनों भाई अडोल्फ़ हिटलर की सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए. रूडी, दोनों की अपेक्षा कट्टर नाज़ीवाद के कुछ ज़्यादा ही समर्थक थे. 1936 में जर्मनी के बर्लिन शहर में हुए ओलिंपिक खेल दुनिया के इतिहास में अहम मुकाम रखते हैं. हिटलर का आर्य होने का गर्व इन्हीं खेलों में टूटा और और उसका यह दंभ तोड़ने वाला कोई और नहीं, अमेरिका का एक अश्वेत खिलाड़ी था जिसका नाम था जेम्स क्लेवलैंड ओवेंस, जिसे दुनिया महान जेसी ओवेंस के नाम से जानती है. जेसी ओवेंस 100 मीटर की रेस जीतकर दुनिया के सबसे तेज़ धावक बने थे.

स्पोर्ट्स शूज बनाने वाली दुनिया भर की कंपनियां इन खेलों में आई थीं. खेल शुरू होने से कुछ दिन पहले एडी डैस्लर जेसी ओवेंस से मिले और उनसे अपनी कंपनी के जूते पहनने के लिए निवेदन किया. जेसी ओवेंस को भी डैस्लर शू कंपनी के जूतों ने प्रभावित किया था. इस तरह जेसी ओवेंस कंपनी के पहले ब्रांड एम्बेसडर बने.

आर्यों की सर्वश्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए ही हिटलर ने जर्मनी में इन खेलों का आयोजन करवाया था. उसे जेसी ओवेंस की जीत की कल्पना नहीं थी. बताते हैं कि उसने ओंवेस से हाथ मिलाने से भी इंकार कर दिया था. किस्सा थोड़ा सा भटक रहा है पर होने दीजिये. इतिहास का यह वह मोड़ है जो बेहद निर्णायक था और कम ही लोगों को मालूम है.

उस खेल में जेसी ओवेंस के सिर्फ तीन ही मुकाबले थे ओर तीनों उन्होंने जीत लिए थे. 400 मीटर की रिले दौड़ की अमेरिकी टीम मजबूत थी. उसके गोल्ड जीतने की पूरी-पूरी उम्मीद थी. तभी मालूम हुआ कि टीम के दो धावकों की जगह जेसी ओवेंस और उनके साथी राल्फ़ मेटकाल्फ़ दौड़ेंगे. यह बड़ी अजीब बात थी.

इस दौड़ में गोल्ड मैडल जीतकर जेसी ओवेंस चार गोल्ड मैडल जीतने वाले दुनिया के पहले अश्वेत खिलाड़ी बन गए. बाद में मालूम हुआ कि जो दो खिलाड़ी बदले गए थे वे दरअसल, यहूदी थे और हिटलर नहीं चाहता था कि कोई यहूदी उसके सामने दौड़े या खेल में हिस्सा लेकर जीते. अमेरिका ने उसके दबाव में आकर यह बदलाव किया था.

खैर, हम बात डैस्लर ब्रदर्स बंधुओं की कर रहे थे. जेसी ओवेंस की जीत को डैस्लर शू कंपनी ने बख़ूबी इस्तेमाल किया लिहाज़ा यह कंपनी दुनिया भर में मशहूर हो गयी.

बताते हैं कि भाइयों में टकराव तो उनकी शादियों के बाद ही शुरू हो गया था पर ओलिंपिक खेलों की वजह से परिवार के लोगों ने मतभेद भुलाकर एक साथ काम किया. दूसरे विश्व युद्ध के शुरू होने के बाद अडोल्फ़ कुछ दिनों के लिए फौज में रहे और फिर वापस आकर फैक्ट्री का काम संभालने लग गए. रूडी अक्सर हिटलर के लोगों के साथ रहते जिससे दोनों भाइयों में दूरियां आने लगीं. किस्सा है कि जब एक दिन अमेरिका के सहयोगी मुल्कों ने शहर पर बमबारी शुरू कर दी तो एडी और उनकी पत्नी ने भागकर एक स्थान पर शरण ली. कुछ देर बाद रूडी और उनका परिवार भी वहीं शरण लेने आ गया. रूडी ने अडोल्फ़ को यह कहते हुए सुन लिया कि ‘वो हरामजादे फिर आ गए.’ बताते हैं कि एडी ने यह बात अमेरिकी जहाजों को देखकर कही थी, जबकि रुडोल्फ डैस्लर को लगा कि यह उनके बारे में कहा जा रहा है.

इससे दोनों में झगड़ा और बढ़ गया. जंग में अमेरिकी फौजों से हारने के बाद हिटलर ने आत्महत्या कर ली थी और उधर अमेरिकी सेना ने उन लोगों को तलब किया जिन पर हिटलर को सहयोग देने का शक था. दोनों भाई बुलाये गए. एडी तो जेसी ओवेंस को दी गयी मदद का हवाला देकर बच निकले पर रुडोल्फ को एक साल के लिए नज़रबंद कर लिया गया. नज़रबंदी के दौरान रूडी को मालूम हुआ कि किसी नज़दीकी व्यक्ति ने उनकी राजनैतिक निकटता के बारे में अमेरिकी सेना को जानकारी दी थी. उनका शक सीधा अपने भाई पर गया. नज़रबंदी से छूटकर आने के बाद दोनों भाइयों के परिवारों के बीच झगड़ा आम हो गया और एक दिन अमेरिकी फौजों ने एडी को भी तलब कर लिया. इस बार एडी को अपने भाई पर शक हुआ. एक दिन जब बात हद से ज़्यादा बिगड़ गयी, तब दोनों ने अलग होने का निर्णय कर लिया.

1948 में रुडोल्फ ने फ़ैसला कर लिया कि अब अलग होने का वक़्त आ ही गया. उन्होंने ‘डैस्लर ब्रदर्स शू कंपनी’ में काम करने वाले कर्मचारियों को दोनों भाइयों के फैसले से अवगत कराया. कर्मचारियों को अपना मालिक चुनने का हक़ दिया गया. बताते हैं कि लगभग दो-तिहाई कर्मचारी अडोल्फ़ डैस्लर के साथ रहे बाकी रुडोल्फ के साथ चले गए. तो एडी डैस्लर ने ‘एडिडास’ की स्थापना की और रुडोल्फ ने ‘रुडा’ कंपनी की स्थापना की जिसका बाद में ‘प्यूमा’ नामकरण हुआ. दोनों कंपनियां महज़ पांच सौ मीटर की दूरी पर बनाई गई थीं. शहर की एक बड़ी आबादी इन दोनों कंपनियों में काम करती थी लिहाज़ा शहर के ज़्यादातर लोग इस झगड़े की चपेट में आ गये. एक दुसरे से बात करने से पहले लोग जूतों की तरफ़ देखते. इसका नतीजा यह हुआ कि हैत्सोगेनाउराख को झुकी हुई गर्दनों वाला शहर कहा जाने लगा!

आपने अक्सर सुना होगा कि लोग पहले सामने वाले के जूतों की तरफ़ देखते हैं. यकीन से नहीं कहा जा सकता पर शायद इसकी शुरुआत इन्हीं कंपनियों के झगड़े से हुई थी. हैरत की बात यह है कि शहर में शादियां भी जूतों के आधार पर ही की जाने लगी थीं. एडिडास पहनने वाले एडिडास के जूते पहनने वालों से शादी करते और यही हाल प्यूमा का भी था.

प्यूमा के पास बेहतर सेल्स टीम थी. एडिडास बढ़िया डिजाइन के जूते बनाती थी और उसके अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों से भी अच्छे संबंध थे. दोनों कंपनियां एक-दूसरे की काट में इतनी मशगूल हो गईं कि उन्हें किसी तीसरी कंपनी का भान ही नहीं रहा. एडिडास मशहूर बास्केटबाल खिलाड़ी माइकल जॉर्डन को अनुबंधित करने करने से चूक गयी और जूते बनाने वाली एक और बड़ी कंपनी नाइकी ने बाज़ी मार ली. आज नाइकी का व्यवसाय एडिडास और प्यूमा से कहीं ज़्यादा बड़ा है.

फुटबॉल के जूतों को अंग्रेजी में स्टड कहते हैं. प्यूमा ने 1952 में जर्मन टीम के फुटबॉल कोच सैप हेर्बेर्गर के साथ मिलकर स्टड जूतों में स्क्रू लगाकर एक नया आयाम ही जोड़ दिया. आज भी प्यूमा स्टड के व्यवसाय में एकाधिकार रखती है. अस्सी के दशक में एडिडास ने जूतों में माइक्रोप्रोसेसर फिट किया था. एडिडास के लिमिटेड एडिशन वाले कुछ जूतों की कीमत तो लाख रुपये के आसपास है. दोनों कंपनियां आज सिर्फ़ स्पोर्ट्स शूज ही नहीं बनातीं बल्कि खिलाड़ियों के ट्रैक सूट से लेकर लगभग हर चीज़ में दखल रखती हैं.

1980 में रुडोल्फ के परिवार ने प्यूमा कंपनी में अपनी 75 फीसदी भागीदारी फ्रांस की केरिंग कंपनी को बेच दी. इसके 10 साल बाद यानी 1990 में जिस दिन जर्मनी की फुटबाल टीम विश्व कप फाइनल में पहुंची थी, उस दिन अडोल्फ़ डैस्लर के परिवार के हाथों से एडिडास का मालिकाना हक़ छूट गया। 2009 में दोनों कंपनियों के कर्मचारियों ने आपसी बैर को भुलाते हुए शहर में एक दोस्ताना फुटबाल मैच खेला. बाद में रुडोल्फ डैस्लर के पोते फ्रैंक डैस्लर ने दुश्मनी भुलाते हुए एडिडास में मुख्य क़ानूनी सलाहकर के पद पर काम किया. दोनों भाई चार साल के अंतराल पर चल बसे और उनके टकराव को ध्यान में रखते हुए दोनों की कब्रें कब्रिस्तान के दो सिरों पर हैं मानो कि उनकी रूहें भी आपस में न लड़ें!

27 अक्टूबर को रुडोल्फ की पुण्यतिथि थी. अगली बार जब आप इनमें से किसी एक कंपनी के जूते पहनें तो दोनों भाइयों को ज़रूर याद कीजियेगा और उनका शुक्रिया कहियेगा कि उन्होंने दुनिया को कुछ नायाब दिया था.

साभार- https://satyagrah.scroll.in/ से

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार