Saturday, April 20, 2024
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सितंबर माह में बलिदानी हुए आर्य समाज के योध्दा

आर्य समाज एक मत पंथ नहीं अपितु वैदिक धर्म का अनुगामी एक वेद प्रचारक और समाज सुधारक संगठन है| इस संगठन ने जो अल्प समय में कार्य कर दिखाया है, वह विश्व के किसी अन्य समुदाय ने नहीं किया| यह कार्य करते हुए इसके वीरों ने अपने बलिदान भी दिए, संकट भी सहे, परिवारों की दुर्गति भी हुई किन्तु इसके सदस्यों ने अपने जीवन, अपने परिवार का मूल्य इससे अधिक कभी नहीं होने दिया| आओ इस की बलिदानी परम्परा में सितम्बर महीने से सम्बंधित कुछ वीरों को याद करें|

महाप्रस्थान गुरु विरजानंद जी डण्डी
गुरु विरजानंद जी क जन्म पंजाब के जालंधर के पास करतारपुर क्षेत्र में हुआ| छोटी आयु में ही चेचक के कारण आखें चली गईं किन्तु तो भी आपने अपने परिश्रम से उच्चकोटि की शिक्षा प्राप्त की| आपको अपने समय का व्याकरण का सूर्य कहा जाता है| अनेक व्यक्तियों को आपने शिक्षा दी| आप केवल आर्ष ग्रन्थों को ही पढ़ाते थे| स्वामी दयानंद सरस्वती जी की लग्न, उत्साह, तथा अनुरक्ति की भावना से आप अत्यधिक प्रसन्न थे| इसका ही परिणाम था कि स्वामी दयानंद जी भी आपसे शिक्षा प्राप्त कर अभूतपूर्व विद्वान् बन गए| गुरुदक्षिणा स्वरूप आपके वेद प्रचार तथा संसार से अज्ञान, आन्याय और अभाव को मिटाने के आदेश को जीवन में धारण किया तथा इस निमित्त ही अपना पूरे का पूरा जीवन आहूत कर दिया| आर्य समाज आज जिस प्रौढ़ रूप में दिखाई दे रहा है, यह गुरु जी के इस आदेश का ही परिणाम है| भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के आप सूत्राधार थे| आपका देहांत अश्विन वदी त्रयोदशी संवत् ११९२५ विक्रमी को हुआ|

बलिदानी ताराचंद जी
संवत् १९७३ की श्रावण वदी ११ को मेरठ के गाँव लुम्बा में जन्मे ताराचंद जी भी आर्य समाज के अत्यधिक अनुरागी थे| हैदराबाद सत्याग्रह में अपने चचेरे भाई सहित पंडित जगदेव सिंह सिद्धान्ती जी के जत्थे के साथ जेल गए| जेल की यातनाओं ने उन्हें इतना कमजोर कर दिया कि निजाम हैदराबाद को जेल में भी आपका बोझ सहन नहीं हो रहा था| अत: आपको जेल से बाहर फैंक दिया गया| आप किसी प्रकार घर के लिए लौट रहे थे कि मार्ग में आपकी दयनीय अवस्था को देख कर डा. परांजपे जी ने आपको नागपुर में उतार लिया और आपका उपचार आरम्भ किया किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ और २ सितम्बर १९३९ ईस्वी को आपका देहांत हो गया|

जन्म पंडित गंगापसाद उपाध्याय

पंडित गंगाप्रसाद उपाध्याय आर्य समाज के उच्चकोटि के विचारक, दार्शनिक तथा लेखक थे| आपने आर्यसमाज को उच्चकोटि का साहित्य दिया| आपने अपनी पत्नी का जीवन भी लिखा| यह जीवन चरित विश्व साहित्य के किसी महान् व्यक्ति के हाथों लिखा अपनी पत्नी का प्रथम प्रकाशित जीवन चरित है| आपने अपनी पत्नी के नाम से कलाप्रैस की स्थापना की| इस प्रैस से उच्चकोटि का वैदिक साहित्य प्रकाशित होता रहा| विश्व के महान् वैज्ञानिक तथा संन्यासी स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती जी आप ही के सुपुत्र थे| आपका देहांत २९ अगस्त १९६८ ईस्वी को हुआ|

जन्म स्वामी नित्यानंद जी
झज्जर के गाँव कलोई निवासी चौधरी झुण्डाराम धनखड तथा माता सरतीदेवी के यहाँ विक्रमी संवत् १९४८ को जन्मे सुपुत्र न्योंनंद सिंह ही आगे चलकर स्वामी नित्यानंद जी के नाम से जाने गए| आप पांच भाई बहिन थे| पिताजी ने कुछ हिंदी का ज्ञान दिया| संवत् १८६३ में गाँव में आर्य समाज की स्थापना के साथ ही आपकी भी आर्य समाज के साथ रूचि बनी| भजन गायन में आपको अत्यधिक रूचि थी| जब धर्मांध ब्राहमणों ने आपका यज्ञोपवीत उतरवा दिया तो आपने आर्य समाज में जाकर नया यज्ञोपवीत पहिना| १९३९ में हैदराबाद सत्याग्रह में साढ़े तीन महीने जेल में रहे| लौहारु क्षेत्र में आर्य समाज के प्रचार का श्रेय आपको ही जाता है| यहाँ आप पर खूब प्रहार हुए| सन् १९४२ में आपकी पत्नी दाखादेवी गुरुकुल खानपुर में सेवा करने लगी, यहीं पर ही सन् १९८२ में उनका निधन हो गया| जब आप निदाना गाँव में आर्य समाज का प्रचार कर रहे थे तभी किसी ने सांग आरम्भ कर दिया| आपके कहने पर एक आर्यवीर ने उस सांगी को गोली मार दी| आपने हिंदी रक्षा आन्दोलन तथा गोरक्षा आंदोलन में भी भाग लिया| प्रचार में जो कुछ भी धन आपको मिलता वह सब गुरुकुल को दानकर देते थे|

बलिदान रामनाथ जी
मोती भाई रणछोड़ तथा माता मणि भैण कस्बा असारवा जिला अहमदाबाद निवासी के यहाँ ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी संवत् १९७३ विक्रमी तदनुसार १६ जून १९१७ ईस्वी को जन्मा बालक ब्रह्मचारी रामनाथ के नाम से सुप्रसिद्ध हुआ पिताजी की इच्छा के अनुरूप आपमें बाल्यकाल से ही समरसता के विचार तथा आर्य समाज के प्रचार की भावना भरी थी| सेवा के समय आप अपने आवश्यक कार्य भी छोड़ देते थे| हरिजनों को समान अधिकार दिलाने तथा जाती को मुस्लिम आधिपत्य से छुडाने के लिए आप सदा ही जूझते रहे| सेवा के प्रति इतनी श्रद्धा थी कि गर्मियों में ठण्डे पानी की छबील लगा कर लोगों के लिए जल सेवा का कार्य किया करते थे| सविनय अवज्ञा आन्दोलन में नोऊ महीने तक जेल के कष्ट सहन किये| हैदराबाद सत्याग्रह में भगा लेकर अनानुषिक कष्टों का सामना किया| जेल कि यातनाओं के कारण भयंकर रोग लग गया, निजाम को जब विश्वास हो गया कि अब आपका जीवनांत होने वाला है तो जेल से रिहा कर दिया गया| इस रिहाई के मात्र दो सप्ताह बाद ही दिनांक ८ सितम्बर १९३९ ईस्वी को ख़ुशी ख़ुशी बलिदान हो गए|

बलिदानी नाथूराम
हैदराबाद, सिंध के संभ्रांत ब्राह्मण पंडित कीमतराय जी के इकलौते सुपुत्र नाथूराम जी बालपन से ही मनमौजी तथा गंभीर स्वभाव के धनी थे| जब १९२७ ईस्वी में आर्य समाज में प्रवेश किया तो परिवार आपसे रुष्ट हो गया किन्तु इसकी चिंता तक नहीं की तथा हैदराबाद में आर्य युवक समाज की स्थापना होने पर इसके सदस्य बने| आप पौराणिकों को निरुत्तर कर देते थे| जब मुसलमानों के अहमदी फिरके की नवगठित अंजुमन ने हिन्दू देवताओं पर छींटाकशी की तो इसका उत्तर देते हुए आपने उर्दू पुस्तक “ तारीखे इस्लाम” का सिन्धी भाषा में अनुवाद कर मुसलमान मौलवियों से अनेक प्रश्न पूछे| उत्तर देने के स्थान पर आप पर मुसलमानों ने मुकद्दमा दायर कर दिया| दिया| केस की सुनवाई के समय न्यायालय हाल में ही धर्मांध मुसलमान ने आपको छुरा मारकर दिनांक २० सितम्बर १९३४ ईस्वी को बलिदान कर दिया|

बलिदान नारूमल जी
कराची के मुनियारी के व्यापारी आसुमल जी के यहाँ सन् १९१० ईस्वी में नारूमल जी का जन्म हुआ| आपके परिवार में देशभक्ति की सरिता निरंतर बहा करती थी| आपके सब भाई और बहिन आर्य समाज के कार्य करते रहते थे| आपको लाठी चलाने और व्यायाम करने में अत्यधिक रूचि थी| आप कांग्रेस से भी प्रेम करते थे तथा खादीधारी भी थे| पिता तो स्वर्ग सिधार चुके थे| माता तथा भाई अनेक आन्दोलनों में भाग लेने के कारण जेल जाते और छूटते रहते थे| १९३०-१९३१ के आन्दोलन में आपको भी काफी चोटें आईं| इन दिनों मुसलमान हिन्दुओं के प्रति घृणा फैला रहे थे| आप मुसलमानों की इसी घृणा का ही शिकार हो गए| आपकी दुकान पर खोजा जाति के एक ग्राहक ने कहा कि तुम आर्य समाजी हो, काफिर हो तथा यह कहते हुए छुरे से आपके पेट तथा हाथों पर कई वार किये और भाग गया| आपकी सेवा भावना के कारण हिन्दु और मुसलमान दोनों समुदायों के लोगों ने हड़ताल कर दी| अंत में कातिल पकड़ा गया| आप अस्पताल में घावों को न सहते हुए बलिदान हो गए जबकि कातिल को फांसी हुई|

महाप्रस्थान पंडित नरेंद्र जी
पंडित नरेंद्र जी आर्य समाज में ही नहीं हैदराबाद निजाम की नजरों में भी लौहपुरुष के रूप में जाने जाते थे| हैदराबाद में निजाम के अत्याचारों का विरोध न केवल लेखनी से अपितु संगठन के माध्यम से भी करते रहे| उनकी संगठन कला भी बेमिसाल थी| अनेक बार जेल गए| भयानक कैदियों के साथ जो व्यवहार किया जाता है, वही व्यवहार पंडित जी के साथ निजाम की जेल में हुआ| जब निजाम हैदराबाद ने इन्हें देखा तो पूछने पर उन्हें बताया गया कि हुजुर यह वही डेढ़ बलिष्ठ का नरेंद्र है, जिसने पूरी हैदराबाद रियासत के नाक में दम कर रखा है| जेल में पीट पीट कर उनकी तथा सभा के के कर्मचारी हीरालाल की हड्डियां तोड़ दीं| जब इन दोनों को उपचार के लिए अस्पताल भेजा गया तो आपने कहा कि पहले हीरानंद का उपचार करो फिर मेरा करना| प्रबंध पटु पंडित नरेंद्र जी ने मथुरा अर्धशताब्दी का ऐसा सुन्दर प्रबंध किया कि लोग देखते ही रह गए| २४ सितम्बर को आपने इस दुनियां से महाप्रस्थान किया|

महाशय राजपाल जी
महाशय राजपाल लाहौर में आर्य समाज के एक निर्भीक पुस्तक प्रकाशक थे| आर्य समाज की पुस्तकों के प्रकाशन के समय वह बड़े से बड़ा खतरा मोल लेने से भी कभी भयभीत नहीं होते थे| ऐसी ही पंडित चमूपति जी की एक पुस्तक प्रकाशित करने पर मुसलमान कुपित हो उठे तथा हाथ धोकर महाशय जी के पीछे पड गए| एक दिन अवसर पाकर एक धर्मांध मुसलमन ने छुरे के वार से उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया| कातिल तो पकड़ा गया किन्तु महाशय राजपाल जी को नहीं बचाया जा सका| वह धर्म की बलिवेदी पर अपनी बलि चढ़ा गए| दिल्ली के कश्मीरी गेट में राजपाल एंड संस नामक पुस्तक प्रकाशक का कार्य उनकी ही स्मृति में चल रहा है| आपका जन्म २७ सितम्बर को हुआ था|

पंडित क्षितिश कुमार वेदालंकार
आपका जन्म १६ सिताम्बर १९१५ ईस्वी को दिल्ली में उस दिन हुआ, जिस दिन भरत मिलाप हुआ था| आप उच्चकोटि के लेखक, पत्रकार तथा देशभक्त थे| पत्रकार तथा यात्री के रूप में भी आपकी ख्याति सर्वाधिक थी| जब हैदराबाद में सत्याग्रह का शंखनाद हुआ तो गुरुकुल कांगड़ी में पन्द्रह ब्रह्मचारियों का जत्था आप ही के नेतृत्व में सत्याग्रह के लिए हैदराबाद को रवाना हुआ| साप्ताहिक आर्य जगत् का जो स्वरूप आज दिखाई देता है, उसका श्रेय भी आपको ही जाता है| आपने २४ सितम्बर १९९२ को इस नश्वर शरीर का त्याग किया|

पंडित प्रकाश चन्द कविरत्न
पंडित प्रकाशचंद कविरत्न जी आर्य समाज के उच्चकोटि के भजनोपदेशक कवि तथा संगीतकार थे| आर्य जगत् में आज भी इनके समकक्ष कवियों तथा संगीतकारों का अभाव है| आज भी इनके संगीत की धुनों पर आर्यगण दीवाने हो जाते हैं| आपने अपने काव्य को फिल्मी धुनों से सदा दूर रखा| आप कहा करते थे कि आर्य समाज के पुरोहितों को एम ए अथवा शास्त्री नहीं करनी चाहिए, ऐसा करने से लालच में आकर यह अध्यापक बनने लगेंगे| इससे आर्य समाज के कार्य की गति रुक जावेगी| आप गठिया का दुर्दांत रोग होने पर भी जीवन पर्यंत इसके कारण हुई अपंगता को आर्य समाज के कार्य में बाधक नहीं बनने दिया तथा आप अपनी सेवाओं के माध्यम से अंत तक आर्य समाज की सेवा करते रहे| मेरा आपसे निकट का सम्बन्ध था| ५ सितम्बर अध्यापक दिवस को आपका देहांत हो गया|

हासानंद जादूगर
आपने आर्य समाज के प्रचार के लिए एक अनूठा ढंग निकाला| यह ढंग था जादू| संसार में जादू नाम की कोई कला नहीं है, केवल चालाकी ही जादू है| इस तथ्य को वह अपनी जादुई कला दिखाते हुए सिद्ध किया करते थे| मूलत: सिन्धी होने के कारण पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को भी अपनी करामात दिखा कर आये थे| इनकी पुण्य तिथि २८ सितम्बर को है|

बलिदानी पुरुषोत्तम जी मगनलाल शाह
जिस गोधरा रेल अग्नि काण्ड की चर्चा आज भी होती है, जिसमे अनेकों हिन्दुओं को ज़िंदा जलाकर मारने का कार्य मुसलामानों ने किया था, उस गोधरा का इतिहास आरम्भ से ही हिन्दू विरोधी रहा है| बहुत समय पहले से ही यहाँ हिन्दुओं पर अत्याचार तथा आर्यों के बलिदान होते रहे हैं| इसका कारण यह है कि यहाँ मुसलमानों की संख्या हिन्दुओं से प्राय:दोगुना से भी अधिक है| दो समुदायों में बंटे मुसलमान आपस में लड़ते हैं किन्तु हिन्दुओं के विरोध में वह एक हो जाते हैं| वास्तव में यह विरोधी अवस्था वहां उत्तर भारतीय प्भाव की देन है| इधर के मुसलमानों के भड़काऊ भाषण, लेख तथा विचार इसका कारण हैं| यही कारण है कि यहां के मुसलमान विशेष रूप से खांची मुसलमान यहाँ हिन्दुओं की हानि करने का कोई भी अवसर खोने नहीं देते| इसी क्षेत्र में जन्मे आर्यवीर पुरुषोत्तम जी शाह हिन्दुओं को संगठित करने तथा उनकी रक्षा के लिए दिन रात एक किये रहते थे| हिन्दुओं की रक्षा के लिए वह प्रशासन की सहायता भी लेते थे| वहाँ के हिन्दू उनके दीवाने हो रहे थे| पुरुषोत्तम जी का आर्य समाजी होना भी उन्हें चैन नहीं लेने देता था| सितम्बर १९२८ के तीसरे सप्ताह जैनियों के पर्युषण पर्व पर पुरुषोत्तम जी भी जैनियों की रक्षार्थ डटे हुए थे कि मुसलमानों ने अकारण ही अकस्मात् आक्रमण कर दिया| इस आक्रमण में जो बीस आर्यवीर घायल हुए, उनमें आप भी एक थे| इन भयंकर घावों के कारण अगले ही दिन आपका बलिदान हो गया| इस समय आपकी आयु मात्र चालीस वर्ष की थी|

बलिदानी भगतसिंह
अमर बलिदानी भगतसिंह के नाम से देश का ही नहीं विश्व का बच्चा बच्चा परीचित है| आपके दादा का यज्ञोपवित संस्कार स्वयं स्वामी दयायंद जी ने अपने हाथों से किया था| इस प्रकार यह परिवार आर्य समाजी परम्पराओं को अपने में संजोये हुए था| आपका जन्म २७ सितम्बर १९०७ ईस्वी को उस दिन हुआ था, जिस दिन आपके चाचा तथा लाला लाजपत राय जी मांडले जेल से छूट कर लौटे थे| आपने देश की स्वाधीनता के लिए क्रान्ति मार्ग को अपनाया|संसद में बम फैंकने के आरोप में पकडे गए तथा पुरस्कार स्वरूप आपको फांसी का आदेश सुनाया गया| विश्व भर में नैतिकता का ढिंढोरा पीटने वाले अंग्रेज ने नैतिकता तथा कानून को तोड़कर आपसे डरे हुए आपको प्रात:काल को फांसी देकर तथा शरीर के टुकडे टुकडे करके सतलुज नदी में बहा दिया| फिरोजपुर के पास हुसैनीवाला में आपका शरीर देश के
वीरों ने नदी से निकालकर वहीँ पर ही आपका अंतिम संस्कार कर आपकी वहां पर समाधि बनाई|

मेरा भी इस परिवारसे संबंध रहा है| अब तो यह भी कहा जाता है कि आपको फांसी दी ही नहीं गई, आपको गोली से शहीद किया गया,
किन्तु यह अभी गहन खोज का विषय है|

इस प्रकार आर्यों ने अनेक बलिदानी वीर पैदा किये| इन की याद, इनका स्मरण आने वाली पीढ़ी में नए रक्त का संचार करता है| अत: बलिदानियों की याद को ताजा बनाए रखना आवश्यक हो जाता है|

इस दृष्टि को सामने रखते हुए बलिदानी वीरों तथा आर्य समाज के एकनिष्ठ महापुरुषों को स्मरण करते हुए प्रतिमाह इस प्रकार का लेख दिया जाता है| यह इस माला का एक मोती मात्र है| अत: आओ हम सब मिलकर अपने परम वैभव को याद करते हुए आर्य समाज कोआगे ले जाने में लगें और एक बार फिर से भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए अग्रसर हों|

डॉ.अशोक आर्य
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