-
द्रविड़ समुदाय में व्याप्त अनार्यत्व एवं हिन्दी-विरोध सम्बन्धी भ्रान्तियाँ और उनका निवारण
दक्षिण में संस्कृत-साहित्य और दर्शन की परम्परा समृद्ध रही है। शंकराचार्य, आचार्य सायण, आचार्य माधव जैसे वैदिक विद्वानों ने उसे जीवित रखा है। अत्यन्त प्राचीन काल से दाक्षिणात्यों का आर्य शासन के अन्तर्गत राजा-प्रजा का सद्भावपूर्ण सम्बन्ध रहा है।
-
द्रविड़ समुदाय में हिन्दी-विरोध सम्बन्धी भ्रान्तियाँ और उनका निवारण
हिन्दी भी संस्कृत परम्परा में प्रादुर्भूत भाषा है, अतः तमिलों द्वारा उसके विरोध का औचित्य नहीं बनता। दाक्षिणात्यों को यह स्मरण रखना चाहिए कि उनके समुदायों और प्रदेशों के मूल नाम संस्कृत के ही हैं। इस परम्परा से उनका चिरकाल से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है।