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श्री लंका की सच्चाई भारत के लिए भी चेतावनी है
वहीं भारत? अपना भविष्य अफ्रीकी देशों के उन मॉडल की और ले जाता हुआ, जहां प्रधानमंत्री की सत्ता भूख और नस्ली-जातीय हिंसा से गृहयुद्ध अनुभव लगातार है। मैं चालीस वर्षों से जिम्बाब्वे और इथियोपिया पर गौर करते हुए हूं।
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एक थे शास्त्री, एक हैं मोदी: दो विपदा, दो प्रधानमंत्री!
9-खोखली आर्थिक स्थिति में शास्त्री ने केबिनेट-जनता सबके सामने सत्य बोला। कंजूसी-मितव्ययता का अभियान चलाया। सरकार के खर्चे घटाएं। खुद उन्होने वेतन नहीं लेने, सरकार में सादगी,
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कमल मोरारकाः सनातनी हिंदू परंपरा का भामाशाह
वे सनातनी हिंदू परंपरा के ऐसे सच्चे शेखावटी सेठ थे जो मेवाड़ के भामाशाह की तरह हमेशा अपने नेता चंद्रशेखर के प्रति, उनके समाजवादी विचारों के प्रति समर्पित रहे।
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अमीर देशों में कोरोना से ज्यादा मौतें क्यों हो रही है
रिपोर्ट में भारत का जिक्र नहीं है। ठीक भी है! भला हमारी राजनीति का, हमारे शासन का ज्ञान-विज्ञान से क्या लेना-देना! जर्मन समाजशास्त्री मैक्स वेबर का यह कहना कि यदि दुनिया में
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जाँच के घेरे में तीनों खान
के लिए मैदान में उतरीं कंगना रनौत ने अपने खिलाफ राज्य सरकार की ओर से हुई हर कार्रवाई को हिंदू-मुस्लिम का एंगल दिया। उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोला और जवाबी
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चीन के खिलाफ ट्रेड वार जरूरी
इससे पहले भारत ने टिकटॉक सहित चीन के 59 एप्स पर पाबंदी लगाई थी तब माना जा रहा था कि यह बड़ा कदम नहीं है।
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मुर्दा देश, 27 हजार लाशों का ढेर, बिकाऊ विधायक और चमकता रिलायंस!
हां, मैंने 10 लाख संक्रमितों और 25 हजार मौत के आंकड़े के दिन, इनके उठावने के चार दिन तक इतंजार किया कि देश में कहीं किसी से, टीवी चैनलों की बहस में, मीडिया में ढाह-ढाह कर रोते, गुस्से में भभकते विलाप की रूदाली
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कोरोना से लड़ रहे या मकड़जाल बना रहे?
बहरहाल, भारत की हर दास्तां निराली है। अपना मानना है कि भारत में कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई कुल मिलाकर पुलिसकर्मियों, जिला प्रशासन कर्मचारियों और भयभीत नागरिकों की वायरस के
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सरकार टेस्ट कराए, जान बचाए, भूख धर्मादा पर छोड़े
आप कह सकते हैं कि लोग तो वैसे ही गंभीर हो चुके हैं। सरकारों को समझ आ गया है। पर नौ अप्रैल मतलब लॉकडाउन के 16वें दिन के हालातों पर अपना मानना है कि 130 करोड़ लोगों के प्रतिनिधि नेताओं-अफसरों के
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मुसलमान जान लें सत्य! दो टूक सत्य! हिंदुस्तान की आत्मा क्या है?
क्या ऐसे भारत के नेता और राजनीतिक दल सत्यवादी नहीं हो सकते हैं? जाहिर है आजाद भारत की दिक्कत, समस्या और कैंसर की गांठ यह है जो हम सत्य से दूर झूठ के छलावों में,