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पाकिस्तानी फौज के आतंक का नंगा नाच बलूचिस्तान में
सुबह-सुबह का वक्त। टूटे-फूटे रोशनदान से झांकती सूरज की रोशनी आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ रही थी। बढ़ती तपिश की वजह से ख्वाब का सिलसिला टूटता है और आंखें खुल जाती हैं। जैसे-जैसे नजरों के सामने की चीजें साफ होती जाती हैं, उसके चेहरे पर दर्द की लकीरें गहरी होती जाती हैं। सुबह बिल्कुल नई, लेकिन दर्द वही पुराना। रात में आंख लगने के साथ कहीं खो जाने वाला द