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मुनिश्री १०८ प्रमाणसागर जी महाराज
 

  • जैन साधना का प्राण है सल्लेखना

    जैन साधना का प्राण है सल्लेखना

    सल्लेखना जैन साधना का प्राण है. सल्लेखना के अभाव में जैन साधक की साधना सफल नहीं हो पाती. जिस प्रकार वर्षभर पढ़ाई करने वाला विद्यार्थी यदि ठीक परीक्षा के समय विद्यालय न जाये तो उसकी वर्षभर की पढ़ाई निरर्थक हो जाती है, उसी तरह पूरे जीवनभर साधना करने वाला साधक यदि अंत समय में सल्लेखना /संथारा धारण न कर सके तो उसकी साधना निष्फल हो जाती है.

    • By: मुनिश्री १०८ प्रमाणसागर जी महाराज
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    • In: खबरें

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