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अटकन-बटकन दही चटाका
हमारी लोक सँस्कृति, लोग गीतों, कहावतों, मुहावरों, आख्यानों, लोक साहित्य में पूरे जगत का सार समाया हुआ है। यदि हम केवल इसे समझ भर लें तो अलग से किसी शास्त्र को पढ़ने की आवश्यकता नहीं रह जाए, क्योंकि लोक संस्कृति उसी का सार है। देखिये इसकी एक बानगी-
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कम्युनिज़्म के चीनी नारों से राजनीति करने वालों ज़रा इस तारीख पर गौर फरमाओ
वर्ष 1989.. अप्रैल माह की पंद्रह तारीख.. ! उस दिन उस चौक पर एक बेहद वीभत्स दृश्य उपस्थित था..