-
‘ममता’ की ‘क्रूरता’ ने तो आपातकाल की यादें ताजा कर दी
ममता बनर्जी की यह मंशा जनकल्याणकारी राज्य की लोकतांत्रिक भावना के अनुरूप नहीं है। सरकार सिर्फ तारीफ पसंद करे और आलोचकों से किनारा करे, यह कतई जायज नहीं है।
-
मैं माथुर साहब की कुर्सी को प्रणाम करके उस पर बैठता था
मैं उस अलौकिक अखबार के दफ्तर में था, जिस अखबार का संवाददाता न बन सका,
-
पुष्पेंद्र की तरह तुम भी चले गए चंदा
मुझे याद है । नई दुनिया इंदौर में उप संपादक के तौर पर जॉइन किया था । अस्सी का साल था । नई दुनिया की परंपरा के मुताबिक़ प्रत्येक पत्रकार की शुरुआत प्रूफ रीडिंग डेस्क से ही होती थी ।
-
एसपी सिंहः पत्रकारिता मेॆं जो गूँज पैदा की, वो आज शोर में बदल गई
उनके देहावसान की खबर सुनते ही हर मीडिया हाउस में सन्नाटा छा गया। देश भर के पत्रकार, संपादक, राजनेता,अधिकारी, छात्र, प्राध्यापक, तमाम वर्गों के बुद्धिजीवी सदमे में थे। हर प्रसारण केंद्र ने
-
हरिवंश जी का सवाल- क्षेत्रीय अख़बारों का यह ताक़तवर हथियार कैसे जंग खा गया?
गांधी के रास्ते पर होते तो आज पत्रकारिता संकट का सामना नहीं करती। इन दिनों हर कीमत पर मुनाफ़ा ज़रूरी हो गया है। पूंजी ने सारा गणित बिगाड़ दिया है। अब मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
-
‘मिस्टर मीडिया: पत्रकारों को पहले क़ाबिल पेशेवर तो बनाइए’
जी हां, यही हाल है इन दिनों चैनल संचालकों का। हर मालिक अच्छे पत्रकारों का रोना रो रहा है। चैनल के कंटेंट पर सवाल उठाओ तो यही उत्तर मिलता है,
-
चुनाव आयोग डाल-डाल तो फर्जीवाड़ा करने वाले पात-पात
पिछले आम चुनाव में चुनाव आयोग ने पेड न्यूज़ तथा अन्य खराबियों को रोकने के लिए ज़िला स्तर से लेकर प्रदेशों की राजधानियों तक मीडिया निगरानी केंद्र बनाए थे।
-
दुष्यंत ने व्यवस्था पर बुलडोज़र चलाया अब उनकी यादों पर सरकार बुलडोज़र चला रही है
बेहद भावुक, व्यथित और सुन्न करने वाली मगर यादगार शाम। भोपाल के दुष्यन्त कुमार संग्रहालय में दुष्यन्त की जयंती पर
-
स्व. कुलदीप नैयरः एक शख्सियत, कई खासियतें
भारतीय राजनीति और पत्रकारिता से कुलदीप नैयर का ओझल होना एक युग की विदाई है। जवान आंखों से हिन्दुस्तान की आजादी और बंटवारा देखने और महसूस करने वाले इने गिने लोगों में से एक बचे थे। आज के पाकिस्तान
-
स्व. राजेन्द्र माथुर वाली पत्रकारिता अब इतिहास में ही मिलेगी
आपातकाल लग चुका था। देश आजाद होने के बाद पहली बार प्रेस सेंसरशिप लगा दी गई थी। मैं कॉलेज में पढ़ता था।