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संपादक जी, सुजीत की खबर हटा लीजिए, अभी तो जेएनयू का मुद्दा गर्म रखिए
देश में हलचल हो या न हो, दिल्ली में हलचल है। वैसे तो जब भी दिल्ली में कोई हलचल होती है तो मै गांव फोन करता हूं, ये जानने के लिए कि क्या गांव में भी कुछ ऐसा है?
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मै रोज सुबह जब कोई हिंदी का समाचार पत्र पढ़ता हूं, तो रोज मरता हूं’
नब्बे के दशक में हिंदी के कई समाचार-चैनल शुरू हुए और अब तो इनकी संख्या सैकड़ों में है। सबसे तेज और सबसे आगे जैसे जुमलों के साथ पत्रकारिता करने की होड़ ने पत्रकारिता के मूल्यों का क्षरण किया, जिसमे सबसे ज्यादा नुकसान हिंदी भाषा का हुआ।