Friday, March 29, 2024
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आयुर्वेेद और शल्य चिकित्सा

आयुष मन्त्राल़य-भारत सरकार ने आयुर्वेद चिकित्सकों की चिर-प्रतिक्षित माँग आयुर्वेद को सर्जरी की मान्यता देकर समयानुकूल एवं राष्ट्र तथा आम जनता के हित में जो निर्णय लिया है,वह स्वागत योग्य है। कारण देश की आबादी के अनुसार देश में 60 प्रतिशत सर्जनों का अभाव है जो एलौपैथ से पूरा नहीं किया जा रहा है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में इन के न जाने के कारण ग्रामीण जनता सर्जरी के लाभ से वंचित रह जाती है जिसे आयुर्वेद सर्जनों से लाभान्वित किया जा सकता है कोरोना महामारी काल में आयुर्वेद की औषधियों और उपचार विधियों से न केवल भारत बल्कि सम्पूर्ण विश्व लाभान्वित हो रहा है और यह गर्व की बात है कि “विश्व स्वास्थ्य संगठन” ने आयुर्वेद की विश्व के लिए उपयोगिता-आवश्यकता को देखते हुए WHO ने भारत को Center for Traditional Medicine की स्थापना के लिए चुना है और आयुष मन्त्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा और दिल्ली एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया द्वारा एम्स में”इंटिग्रेटिव मेडिसिन विभाग” खोलने का ऩिर्णय लिया गया है जो देशहित में महान निर्णय है
भारत की विरासत-आयुर्वेद का विश्व में विस्तार हो और हमारे पारंपरिक ज्ञान से विश्व मानवता लाभान्वित हो यह भारतीयों के लिए प्रसन्नता एवंगर्व का विषय है

ऐसे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा आयुर्वेद के स्नाकोत्तर चिकित्सकों को शल्य चिकित्सा के अधिकारों को दिये जाने के विरोध में हड़ताल करना हास्यास्पद ,निराधार,अमाननीय है जिस के विरोध में आज आयुर्वेद चिकित्सक भी “निःशुल्क चिकित्सा शिविर व निःशुल्क ओपीडी चला कर “आयुर्वेद शौर्य दिवस” मना रहे है

आयुर्वेद के आचार्य सुश्रुत ही विश्व के सर्वमान्य निर्विवाद सर्व प्रथम सर्जन (Father of surgery)है ,
आज एलौपैथी को आयुर्वेद से निकली कहा जाय तो उपहास की बात होगी,पर इतिहास को बदला तो नहीं जा सकता, एलौपैथी अपनी मातृ-चिकित्सा पद्धति ग्रीस को मानती है,जिसे भारत ने ग्रीस को दिया और यूरोप के विद्वान् और एलौपैथ के जनक हिपोक्रेटिस भी स्वीकार करते है कि एलौपैथीके प्रारम्भिक काल में वैद्यक ग्रन्थों का लेटिन में अनुवाद हुआ था, परमाणुवाद के जनक डॉ काक भी महर्षि कणाद को मानते है तो इंजेक्शन और वैक्सीनैशन की शिक्षा भी
डॉ ह्यूलेट के अनुसार यूरोप ने भारत से ही ली,सर्जरी और प्लास्टिक सर्जरी भी भारत से ही यूरोप पहुंची,लेख विस्तार भय से सारांश में इतना ही लिखते है कि बौद्धकाल ,मुगलकाल मे भी आयुर्वेद ग्रन्थों के अनुवाद से ही यह सर्वत्र पहुचा ,इसलिए यह निर्विवाद सत्य है कि आयुर्वेद ही विश्व की विविध चिकित्सा पद्धतियों की मातृ पद्धति (.Mather System),प्राचीनतम
निर्दोषतम,चिकित्सा पद्धति है

इतिहास साक्षी है -मुगलशासन काल में मूर्खतापूर्ण,ब्रिटिश शासन काल में धूर्ततापू्र्ण तरीके से आयुर्वेद और भारतीय संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट करने का प्रयास किया ग़या आजादी मिलने पर भी मानसिक गुलामी से मुक्ति नहीं मिली और आयुर्वेद पर काले कानून बनते गये जिस से विकसित नही हो पा रहा

भारतीय केन्द्रीय चिकित्सा परिषद (ccim) द्वारा शल़्य,शालाक्य तन्त्र मे सर्जरी आ़युर्वेद में पढाई जाती है ,पर IMA ने विविध मेडिकल एक्ट से अन्य चिकित्सा पद्धतियों को वंचित कर अपने को ही एकाधिकार मान रखा है जब कि
शल्य कर्म एक क्रिया है जैसे दर्जी कपड़ा सिलता है सुई मेड इन जापान हो धागा मेडइन जर्मनी हो इस से क्या फरक पड़ता है,शरीर पर फिटिंग सही होनी चाहिए वैसे ही सर्जरी भी है जो शरीर को फिट कर सके इस मे एलौपैथ आयुर्वेद कुछ नहीं है
एलौपथ सर्जरी कर सकता है आयुर्वेद सर्जरी करेगा तो Mixopathy ? यह क्या है ?

आयुर्वेद में “नानौषधिभूतं जगत” के अनुसार जगत मे ऐसा कुछ नहीं जो औषधि न हो ,पृथ्वी पर सभी वनौषधि धातु-उपधातु रत्न-उप रतन् सब कुछ का आयुर्वेद में विस्तृत विवेचन है ,सिनकोना वृक्ष की छाल से कुनीन बना लिया,willow plant से एस्प्रीन बना लिया तो उस पर एलौपथ की सील मार दी इण्डियन फार्मोकोपिया(I.P ) पर ब्रिटिस फार्मोकोपिया (B.P) की सील लगा दी ,केवल निर्माण का फर्क है,जरूरत पड़ी तो हम भी बना सकेंगे, पोदीना से पिपरमेंट अजवायन से थायमोल,नीम्बू से साइट्रिक एसिड बना कर हजारों चीजों कोअपने फार्मोकोपियो की सील लगा लेंगे जैसे सारे शब्दों को अपने कोष में लिख लेंगे तो अब शब्दकोष अपना हो गया।

सुहागा खनिज है हम उस से टंकण भस्म बनाते है आप बोरिक एसिड बनाते तो आप उस की एसिड सुरक्षित रखते हो इसलिए खा नही सकते ,लगा सकते है हम उस की एसिड जला देते है इसलिए खा सकते है दोनों विधि को जान कर हम दोनों प्रकार से प्रयोग कर सकते है हम धातुओं की भस्म बनाते है तो उस में कच्चे धातु का अंश नही रहता जिसे पंचमित्र से जांचा जा सकता है और किसी भी स्थिति में पुनः उस धातु में परिवर्तित नहीं कर सकते जब की उस के गुण सुरक्षित रहते है पर हेवीमेटल का दुष्प्रचार कर रखा है, औषधियों की सही निर्माण प्रक्रिया और उपयोग की विधि सही होनी चाहिए अतः मिक्सोपैथी के नाम पर दुष्प्रचार न करें। भारत की विरासत को उन्नत करने का हम सभी का पावन दायित्व है। हिमालय की तलहटियों में व आधुनिक प्रयोगशालाओं में रोगमुक्ति का उपाय ढूंढने वालों को जो भी ज्ञान प्राप्त हुआ है वह आयुर्वेद(आयु का वेद science of life) है,काल बलवान है, आयुर्वेद वह दीप है जो विश्व चिकित्सा विज्ञान को आलोकित करेगा!

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