Saturday, April 20, 2024
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100 करोड़ के धारावाहिक में डिस्कवरी पर आ रहे हैं बाबा रामदेव

योग गुरु बाबा रामदेव की जिंदगी का संघर्ष अब परदे पर भी दिखेगा। डिस्कवरी चैनल ने उनके जीवन पर आधारित टीवी सीरियल ‘स्वामी रामदेव: एक संघर्ष रामदेव’ तैयार किया है। 12 फरवरी को रात्सेरि 8.30 बजे से इसका प्रसारण शुरू होगा। इस धारावाहिक में बाबा रामदेव की गरीबी में बीते बचपन से लेकर योग गुरु और बड़े कारोबारी बनने तक के सफर की कहानी है। इसके 80 एपिसोड बनाने पर करीब सौ करोड़ रुपये का खर्च आया है। न्यूज 18 से बातचीत के दौरान खुद स्वामी रामदेव ने इस धनराशि का खुलासा किया। जब एंकर ने पूछा कि आप इतने पहले से पॉपुलर हैं, फिर धारावाहिक की जरूरत क्यों पड़ी? इस पर पहले तो रामदेव ने यह कहकर बचाव किया कि यह धारावाहिक डिस्कवरी चैनल ने तैयार किया है, फिर कहा कि धारावाहिक के जरिए उन्होंने टेलीविजन चैनलों का शीर्षासन करा दिया है। क्योंकि देश के टॉप 10 टीवी चैनल कहानियां ही दिखाते हैं, उसमें थोड़ी सी प्रेरणा होती है और मैक्सिमम एंटरटेनमेंट, मगर इस धारावाहिक में मैक्सिमम प्रेरणा होगी, मिनिमम एंटरटेनमेंट।

एंकर ने बाबा से कहा-चूंकि आप योग से फिल्मों तक पहुंच गए हैं तो कुछ डायलॉग आपसे बुलवावा चाहता हूं, अगर आप एक्टिंग करते तो ये डायलॉग कैसे बोलते? यह कहकर एंकर ने पर्ची थमा दी। पहले तो रामदेव ने संकोच किया,मगर एंकर की जिद पर उन्होंने दोनों डायलॉग बोले। पहला डायलॉग था-डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमिकन है। 1978 में अमिताभ बच्चन की चर्चित फिल्म डॉन का यह डायलॉग था। दूसरा डायलॉग शाहरुख खान की फिल्म बाजीगर का था- कभी-कभी जीतने के लिए कुछ हारना पड़ता है, हारकर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं। इससे पहले धारावाहिक को लेकर प्रेस कांफ्रेंस कार्यक्रम में बाबा रामदेव ने कहा, ‘जीते जी अपनी कहानियों को दिखाना एक और संघर्ष को बुलावा देना है लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूं।’ तर्क दिया कि उन्होंने हमेशा धारा के खिलाफ जीवन बहना सीखा है। खुद को देसी और शुद्ध सन्यासी बताते हुए रामदेव ने कहा कि उनको लेकर दुनिया तमाम बातें कहतीं हैं, मगर इससे वे बेपरवाह रहते हैं। उन्होंने कभी खुद को छोटी जात का माना ही नहीं। सिर पर गोबर उठाने से भी उन्होंने कभी परहेज नहीं किया।

बाबा रामदेव ने बताया कि गांव में उनके ही रिश्ते के लोग उनकी मां के साथ क्रूरता करते थे। थोड़ा बड़े होने पर स्वामी रामदेव ने खुद आवाज उठानी शुरू की और हरिद्वार आ गए।

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