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ब्लू माउंटेंस-एक फिल्म ही नहीं, सन्देश भी

आज रिलीज होने वाली ग्रेसी सिंह-रणवीर शौरी अभिनीत ब्लू माउंटेंस महज एक फिल्म नहीं बल्कि बच्चों के नाम एक संदेश है। ऐसा संदेश, जो इस तनावपूर्ण माहौल और हर पल आगे आने की होड़ के बीच बच्चों की जिंदगी बदल सकता है। नन्हे-मुन्ने बच्चे हमारे देश की जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा हैं, उनकी भावनाओं एवं समस्याओं को लेकर इनके लायक फिल्में बहुत कम बनती हैं। लेकिन इसके लिये फिल्म के निर्माता के साहस की प्रशंसा की जानी चाहिए। प्लाजा पीवीआर में प्रीमियर शो के अवसर पर ब्लू माउंटेंस की पूरी टीम के साथ दिल्ली के जाने माने हस्तशिल्प निर्यातक और ब्लू माउंटेंस के निर्माता राजेश जैन पूरे उत्साहित थे। आज की तनावपूर्ण जिंदगी में हर बच्चे से मां-बाप ने इतनी उम्मीदें लगा रखी हैं कि कामयाबी से कम उसे कुछ मंजूर नहीं। लेकिन-कामयाबी एक सतत प्रक्रिया है। इसी विषय पर केन्द्रित यह फिल्म भले ही व्यावसायिक सफलता के कीर्तिमान स्थापित न करें, लेकिन बच्चों से जुड़ी एक सम-सामयिक समस्या को प्रभावी ढंग से प्रस्तुति देने में यह फिल्म सफल रही है। यही कारण है कि इस फिल्म को अब तक अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं।

निर्देशक सुमन गंगुली की यह पहली फिल्म है, लेकिन फेस्टिवल सर्किट में इस फिल्म ने खासा नाम कमाया है। अलग-अलग फिल्म फेस्टिवल्स में ब्लू माउंटेंस ने अब तक 8 अवॉर्डस् जीते हैं। फिल्म ने 19वें अंतरराष्ट्रीय चिल्ड्रन फिल्म उत्सव में बेस्ट फीचर फिल्म का पुरस्कार हासिल किया, चैथे फेस्टिवल मेनशन अवॉर्ड समारोह में स्पेशल फेस्टिवल मेनशन और शिमला में हुए दूसरे अंतरराष्ट्रीय समारोह में स्पेशल जूरी अवॉर्ड मिला। नासिक में हुए 8वे अंतरराष्ट्रीय फिल्म उत्सव में बेस्ट डायरेक्टर का अवॉर्ड सुमन गांगुली को मिला, फिल्म को हरियाणा में हुए पहले अंतरराष्ट्रीय फिल्म उत्सव में बेस्ट चिल्ड्रन फिल्म का अवॉर्ड भी मिला। निर्माता राजेश जैन के लिये इस तरह के विषय को लेकर फिल्म बनाना एक चुनौती रही होगी, लेकिन उनका कहना है कि जब मुझे फिल्म के निर्देशक सुमन गांगुली ने कहानी सुनाई तभी मुझे लगा कि इस फिल्म को दर्शकों के बीच जाना चाहिए। हालांकि, बच्चों पर केंद्रित फिल्म को बॉक्स ऑफिस के आंकड़ों के अनुकूल नहीं माना जाता लेकिन मुझे लगा कि अगर इतनी बेहतर कहानी को दर्शकों तक नहीं पहुंचाया गया तो यह उनके साथ भी अन्याय होगा।

फिल्म के निर्देशक सुमन गांगुली कहते हैं-ब्लू माउंटेंस का आइडिया मेरे दिमाग में काफी पहले आया था, लेकिन मैं इसे बहुत छोटे स्तर पर नहीं बनाना चाहता था। इसलिए थोड़ा वक्त लगा। मैं खुश हूं कि हमने जो मेहनत की-अब वो दर्शकों को दिखायी देगी। यह फिल्म ब्लू माउंटेंस बदलते मौसम के माध्यम से ब्लू माउंटेन्स के बदलते रंगों की तरह ही है। यह फिल्म भी किसी के जीवन में जीतने या हारने की यात्रा की और मानवीय भावनाओं के बदलने की स्थितियों की खोज करती है। यह फिल्म आज के बच्चों को निराशा से आशा की ओर ले जाने एवं उनमें हौसला आफजाई करने वाली फिल्म है। इसमें बच्चों के बारे में बहुत कुछ बताया गया है, जिसमें उनकी उम्मीद और मायूसी दर्शायी गयी है। खासकर आज के इस प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में उसका समाधान कैसे निकलता है। आज के इस भागदौड़भरी जिंदगी में चाहे वह पढ़ाई हो या खेल या कोई और क्षेत्र बच्चे अपने को कितना पोटेंशियल पातें हैं, इन बातों को प्रभावी ढंग से दिखाने का प्रयत्न इस फिल्म में किया गया है। इससे पहले ऐसे ही विषय पर आमीर खान ने ‘तारे जमीन पर’ फिल्म बनाकर बच्चों की दुनिया को बदलने का सार्थक प्रयास किया था। वह भी एक ऐतिहासिक एवं यादगार फिल्म थी।
फिल्म ‘ब्लू माउंटेंस’ एक स्कूली छात्र की कहानी है जो रिएलिटी शो के जरिए अचानक स्टार बन जाता है और जब विफलता हाथ लगती है तो वो डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। लेकिन किसी शो या इम्तिहान में फेल हो जाना जिंदगी में फेल हो जाना नहीं है, फिल्म यही संदेश देती है। फिल्म जिस वक्त आ रही है, उस वक्त कई स्कूलों में छुट्टियां है तो निर्माता को उम्मीद है कि पर्दे तक बच्चे पहुंचेंगे और एक सन्देश के साथ-साथ अच्छा बिजनेस भी मिलेगा।

फिल्म ‘ब्लू माउंटेंस’ में एक्टर्स ग्रेसी सिंह, रणवीर शौरी, राजपाल यादव, आरिफ जकारिया और यथार्थ लीड रोल में नजर आएंगे। इस फिल्म का संगीत संदीप सूर्या, स्वर्गीय आदेश श्रीवास्तव और मोंटी शर्मा ने दिया हैै और बॉलीवुड के प्रख्यात गायकार सुनीधि चैहान, श्रेया घोषाल और शान ने अपनी आवाज का जादू इस फिल्म में बिखेरा है। इस फिल्म के लिए आदेश श्रीवास्तव ने 2 गानों का संगीत दिया था। इसके बाद उनका अचानक देहांत हो गया। इसलिए यह उनकी आखिरी फिल्म बतौर संगीतकार साबित होनेवाली है।

जिस तरह फिल्म को अलग-अलग फिल्म समारोह में पंसद किया गया है उससे उम्मीद लगाई जा रही है कि बॉलीवुड में इस फिल्म को भी उतना ही सराहा जाएगा। सशक्त अभिनय से इस फिल्म में जान फूंकने में सफल रही फिल्म की अभिनेत्री ग्रेसी सिंह ब्लू माउंटेंस के बारे में कहती हैं मैंने जितनी भी फिल्में की हैं, ये उनमें सबसे हटकर है। यह फिल्म मुझे लगान और मुन्नाभाई एमबीबीएस की याद दिलाती है, जो मनोरंजक होते हुए एक मैसेज देने में कामयाब रही। इस फिल्म में वे एक शास्त्रीय गायिका के रूप में दिखाई देगीं। बॉलीवुड में बच्चों पर केंद्रित फिल्में कम बनती हैं लेकिन ब्लू माउंटेंस न केवल बच्चों की जिंदगी पर केंद्रित है बल्कि एक साफ सुथरी और मनोरंजन से भरपूर फिल्म है।

‘ब्लू माउंटेंस’ के बहाने बच्चों से जुड़ी फिल्मों को प्रोत्साहन का धरातल तैयार होना चाहिए। हमारे देश में बच्चों की फिल्मों के लिये सरकारी प्रोत्साहन बहुत जरूरी है। अमेरिका के न्यूयार्क में 18 ऐसे सिनेमाहाल हैं, जहां हमेशा बच्चों से जुड़ी फिल्में दिखाई जाती हैं और इन फिल्मों को देखने के लिए हमेशा भीड़ होती है। अपने बच्चों के साथ मां-बाप फिल्में देखने आते हैं। खास तौर पर वीकेंड में तो ये भीड़ डबल से ज्यादा हो जाती है। बॉलीवुड में बच्चों पर केंद्रित फिल्मों की स्थिति दिवालियापन जैसी है। हमारे यहां बच्चों की फिल्मों के लिए न तो कोई सोच है और न कोई नीति है। सबसे बड़ी बदकिस्मती की बात तो ये है कि हम ऐसी फिल्में बनाने के लिए सरकार की तरफ मुंह उठाकर देखते हैं और चाहते हैं कि ऐसी फिल्में बनाने के लिए सरकारी फंडिंग मिले।

सरकार ने चिल्ड्रन फिल्म सोसाइटी जैसे संस्थान बनाकर अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर दी। कमर्शियल फिल्मों की दुनिया में बच्चों की फिल्मों को लेकर सोच शून्य से भी नीचे है। बड़े सितारों के साथ करोड़ों की रकम से महंगी फिल्में बनाने वाले बड़े निर्माता इसे झंझट कहने से भी संकोच नहीं करते। आमतौर पर बच्चों के लिए फिल्में बनाने की सोच और कोशिश का वास्ता नए फिल्मकारों से होता है, जिनके लिए सब कुछ जोखिम होता है और यही उनके लिए संकट का सबब हो जाता है कि उनकी अपनी कोई पहचान नहीं है। फिर भी वे कोशिशों में लगे रहते हैं। नतीजतन, हर साल-दो साल में कोई ऐसी चिल्ड्रन फिल्म सामने आ जाती है, जो मीडिया की निगाहों में आ जाती है, तो कुछ समय के लिए उसकी चर्चा हो जाती है। इस बात से कोई मना नहीं करेगा कि बाल फिल्मों को लेकर हमारे यहां कोई न तो फॉरमेट है, न सिस्टम है और न ही कोई रास्ता नजर आता है। इन जटिल स्थितियों के बीच ‘ब्लू माउंटेंस’ एक उजाला है।

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(ललित गर्ग)
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