Saturday, April 20, 2024
spot_img
Homeपत्रिकाकला-संस्कृतिआत्मा के लिए औषधि है किताबें : डॉ. अल्पना मिश्र

आत्मा के लिए औषधि है किताबें : डॉ. अल्पना मिश्र

आईआईएमसी में ‘वसंत पर्व’ कार्यक्रम का आयोजन

नई दिल्ली। ”मीडिया और इंटरनेट ने किताबों के प्रति लोगों की रुचि को विकसित किया है। किताबों से आप अपने आत्म को उन्नत बनाते हैं। मेरा मानना है कि किताबें आत्मा के लिए औषधि का कार्य करती हैं।” यह विचार प्रख्यात कथाकार एवं लेखिका *डॉ. अल्पना मिश्र* ने मंगलवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘वसंत पर्व’ में व्यक्त किए। इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक *प्रो. संजय द्विवेदी, अपर महानिदेशक *के. सतीश नंबूदिरीपाड*, अपर महानिदेशक (प्रशिक्षण) ममता वर्मा एवं डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह विशेष तौर पर उपस्थित थे।

‘पठनीयता की संस्कृति’विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. मिश्र ने कहा कि भारत में पठन पाठन की एक लंबी परंपरा रही है। नालंदा और तक्षशिला के पुस्तकालय हमारी उसी ज्ञान परंपरा का हिस्सा थे। भारत ने दुनिया को पढ़ने का संस्कार दिया है। उन्होंने कहा कि पुस्तकें पंडित होती है और ज्ञान बिना विवेक के पूरा नहीं होता है। इसलिए अगर किताबें ज्ञान से भरपूर हैं, तो वे पाठक का भी ज्ञानार्जन करती हैं।

डॉ. अल्पना मिश्र ने कहा कि पढ़ना मानवीय क्रियाकलाप का महत्त्वपूर्ण पक्ष है। सामूहिक और व्यक्तिगत चेतना को गढ़ने में ‘पढ़ने की संस्कृति’ की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। यूरोप से लेकर एशिया तक आधुनिकता के विस्तार में ‘पढ़ने की संस्कृति’ निर्णायक रही है। मिश्र के अनुसार किताबें व्यक्ति के मानसिक विकारों को दूर करने का कार्य करती हैं। व्यक्ति कों उसकी कुंठाओं से मुक्ति दिलाती हैं। उन्होंने कहा कि किताबें व्यक्तित्व निर्माण और भाषा के परिमार्जन का कार्य भी करती हैं।

डॉ. मिश्र ने कहा कि पढ़ना असल में संवाद करना है। सभी किताबें बोलती हैं, लेकिन एक अच्छी किताब सुनना भी जानती है। उन्होंने कहा कि पाठक को कभी भी उपभोक्ता की तरह नहीं देखा जा सकता। पाठक शब्दों का निर्माता है, जो लेखक की रचना को पुनर्जन्म देता है।

डॉ. मिश्र के अनुसार तकनीक के प्रसार के बावजूद ऐसा कभी नहीं हुआ कि किताबें छपना बंद हो गई हों। आज भी लोग किताबें पढ़ना पसंद करते हैं। समय और समाज को समझने के लिए किताबें पढ़ना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि किताबें हमारी समस्याओं का समाधान करती हैं और हमें नया रास्ता सुझाती हैं।

इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि पठनीयता की संस्कृति पर आज सवाल खड़े हो रहे हैं। वर्तमान शिक्षा पद्धति में बच्चे रटंत विद्या पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि बच्चों में पढ़ने की संस्कृति विकसित की जाए। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि भारतीय संस्कृति में सभी प्रमुख कार्य स्त्रियों को दिये गए हैं। हमारे यहां स्त्री पूजा की बात कही जाती है, लेकिन जब हम उसे अपने व्यवहार में उतारते हैं, तो स्त्रियों का सम्मान नहीं करते। इस सोच को बदलने की आवश्यकता है।

कार्यक्रम का संचालन विष्णुप्रिया पांडेय ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन *प्रो. प्रमोद कुमार ने किया।

इससे पूर्व वसंत पंचमी के अवसर पर आयोजित एक अन्य कार्यक्रम में आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी के द्वारा मां सरस्वती की पूजा अर्चना कर सभी के लिए सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद लिया गया। इसके पश्चात भारतीय जन संचार संस्थान के पुस्तकालय द्वारा महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की जयंती के उपलक्ष्य में एक व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिसे डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह ने संबोधित किया।

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार