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शिक्षा से वंचित बच्चों के लिए वरदानः रीड अलॉंग एप

स्वागत कीजिए गूगल रीड अलॉंग एप का, जो प्राथमिक स्तर की शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चों को सही उच्चारण करना और पढ़ने को आनंददायक बनाने का काम कर रहा है।

छह साल की सोनी गाजियाबाद की एक झुग्गी बस्ती में रहती है और पास के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में ग्रेड एक की विद्यार्थी है। मार्च के महीने में कोविड-19 के खतरे के बढ़ने और लॉकडाउन शुरु होने के बाद से वह अब तक स्कूल जाकर अपनी पढ़ाई शुरू नहीं कर पाई है। लेकिन जुलाई के पहले ह़फ्ते में उसने एक एप पर जोर-जोर से पढ़ना शुरू किया और तब से उसे हिंदी कहानियां पढ़ने में आनंद आने लगा है और साथ ही उसकी आसान हिंदी, अंग्रेजी शब्दों और वाक्यों को बोलने के कौशल में भी सुधार आया है। उसकी मां पास के ही एक अपार्टमेंट में घरों में काम करती है। वहीं पर एक शिक्षक ने उसे इस एप से जोड़ा।

स्वागत कीजिए गूगल रीड अलॉंग एप का, जो प्राथमिक स्तर की शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चों को सही उच्चारण करना और पढ़ने को आनंददायक बनाने का काम कर रहा है। यूं तो इस एप का भारत में मार्च 2019 में ही शुभारंभ हो गया था, लेकिन तब यह सिर्फ हिंदी और अंग्रेजी तक ही सीमित था। लगभग एक साल तक की सफल आजमाइश के बाद इसे अब दुनिया के 180 देशों में उपलब्ध कराया गया है और बच्चे इसके जरिये नौ भाषाओं में अपनी उच्चारण क्षमता सुधार सकते हैं। अंग्रेजी, हिंदी के अलावा यह एप अब बांग्ला, मराठी, तमिल, तेलुगू, उर्दू के साथ ही स्पेनिश और पुर्तगाली भाषा में भी उपलब्ध है।

गूगल को इस एप का आइडिया किस तरह आया? गूगल इंडिया के प्रॉडक्ट मैनेजर नितिन कश्यप बताते हैं, “हमारे इंजीनियरिंग लीड जोहैर हैदर वर्ष 2016 में उत्तरप्रदेश के अंदरुनी इलाकों से होकर जा रहे थे, तभी उनके दिमाग में विचार आया कि शुरुआती मूल शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए कुछ किया जा चाहिए।” उनके अनुसार, उसके बाद के मंथन ने यह आइडिया दिया कि हम बचपन में जो भी बोलना सीखते हैं, उसे जोर-जोर से पढ़कर ही सीखते हैं, जिससे कि कोई शिक्षक या हमारे अभिभावक हमें सही बोलने पर शाबासी दें और गलत उच्चारण करने पर उसे सुधारें।

गूगल टीम के इसी ज्ञान ने पहले बोलो एप को जन्म दिया और फिर उसे विस्तार देकर रीड अलॉंग को दुनियाभर में पहुंचाया गया। कश्यप बताते हैं, “यह एप बोली को पहचानने की गूगल की मौजूदा तकनीक और लिखे शब्दों को बोल पाने की तकनीक पर आधारित है।” जब बच्चे जोर-जोर से पढ़ते हैं तो ये तकनीकें अपना काम शुरू कर देती हैं। बोली को पहचानने की तकनीक बताती है कि बच्चा क्या सही बोल रहा है और क्या गलत बोल रहा है। सही बोलने पर बच्चे को प्रशंसा मिलती है- स्टार और बैज के तौर पर, और गलत बोलने पर गूगल असिस्टेंट के रूप में कार्यरत शिक्षिका दीया गलती को सुधारती है और बच्चों को सही उच्चारण बोलने में मदद करती है। तकनीकी वचुअर्ल शिक्षिका दीया अंग्रेजी शब्दों का हिंदी अर्थ भी बच्चों को बताती है, जिससे हिंदी के साथ ही उनकी अंग्रेजी भी बेहतर होने लगती है। यही नहीं, बच्चे दीया को टैप करके किसी शब्द या वाक्य के बारे में जान सकते हैं।

भारत के गांवों या कस्बों में इंटरनेट की उतनी अच्छी पहुंच नहीं है, ऐसे में यह एप कितना उपयोगी साबित हो सकता है? कश्यप कहते हैं, “एक बार डाउनलोड करने के बाद एप चलाने के लिए इंटरनेट की आवश्यकता नहीं रहती। हां, इसे चलाने के लिए ऐसा स्मार्टफोन चाहिए जो एंड्रॉइड 4.4 (किटकैट) चलाने में सक्षम हो या उससे बेहतर हो। चूंकि यह एप बिना इंटरनेट के चलता है, इसलिए अभिभावकों को इस बात की भी चिंता नहीं रहती कि बिना उनकी निगरानी में बच्चे इंटरनेट सर्फिंग न करने लगें।

रीड अलॉंग एप की एक और खास बात है, एक ही स्मार्टफोन पर कई बच्चों के प्रोफाइल बना पाने की क्षमता। इससे एक ही परिवार के कई बच्चे एक ही स्मार्टफोन से इस एप से जुड़ सकते हैं और एप की खूबी यह है कि यह उनके प्रदर्शन के हिसाब से उनके लिए आसान या थोड़ी मुश्किल पाठ्य सामग्री पढ़ने के लिए प्रस्तुत करता है। इसी तरह से नए सीखने वालों को अक्षर आधारित गेम खिलाए जाते हैं तो एक स्तर तक सीख चुके बच्चों को शब्द या वाक्य आधारित गेम खिलाए जाते हैं।

रीड अलॉंग बच्चों के सीखने के लिए एक बढि़या एप हो सकता है, लेकिन दूरदराज के गांवों में बच्चे इसका इस्तेमाल करें, यह भी इतना आसान काम नहीं है। इसीलिए गूगल इंडिया ने कई नॉन-प्रॉफिट संस्थाओं और पाठ्य सामग्री तैयार करने वाली संस्थाओं से भागीदारी की है। ये संस्थाएं शिक्षकों और अभिभावकों को समझाने के जरिये न सिर्फ इस एप को लाखों बच्चों तक पहुंचा रही हैं, बल्कि एप के लिए विभिन्न भाषाओं में दिलचस्प कहानियां भी उपलब्ध करा रही हैं। कश्यप के अनुसार, “गूगल से भागीदारी करने वाली नॉन-प्रॉफ़िट और पाठय सामग्री तैयार करने वाली संस्थाओं में कैवल्य एजुकेशन फ़ाउंडेशन, सीएसएफ, रूम टू रीड, साझा, प्रथम एजुकेशन, बेयरफुट कॉलेज, लैंग्वेज एंड लर्निंग फाउंडेशन, एडइंडिया फाउंडेशन और अन्य शामिल हैं।” वह बताते हैं, “इसके अलावा तेलंगाना राज्य सरकार और उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए हैं, जिसके तहत रीड अलॉंग के बारे में जागरूकता और इसके इस्तेमाल का प्रयास होगा। साथ ही, इनकी हिंदी और अंग्रेजी की पुस्तकों को भी इस एप पर लाने पर काम हो रहा है।”

रीड अलॉंग को लेकर अभिभावकों और शिक्षकों से कैसी राय मिली है? कश्यप के अनुसार, “पिछले साल हुए एक अध्ययन के अनुसार 92 प्रतिशत अभिभावक मानते हैं कि उनके बच्चों के प्रदर्शन में कुछ न कुछ सुधार आया है और 95 प्रतिशत चाहते हैं कि इसके जरिये उनके बच्चों की पढ़ाई जारी रहे। शिक्षक भी इस एप को अपना रहे हैं जिससे कि बच्चों को सिखाने के उनके प्रयासों में यह मददगार बन सके।” रीड अलॉंग के पहले स्वरूप “बोलो” को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के 200 गावों में पायलट परियोजना के तौर पर शुरू किया गया था। वहां से फीडबैक मिला कि 64 प्रतिशत बच्चों का प्रदर्शन बेहतर हुआ है, उसी के बाद इसका नया स्वरूप रीड अलॉग सामने आया।

एक प्रॉडक्ट मैनेजर के तौर पर इस एप को विकसित करने और कामयाब बनाने में क्या चुनौतियां सामने आईं? कश्यप खुलासा करते हैं, “पहली चुनौती तो अभिभावकों को यह समझाने की थी कि पढ़ने का कौशल कितना अहम है, दूसरी बात यह समझाना कि इसे कैसे मोबाइल के जरिये सीखा जा सकता है और तीसरी चीज़ कि कैसे उन्हें अपने स्मार्टफोन को बच्चों को सीखने के लिए नियमित तौर पर देने को तैयार करें। इन शुरुआती चुनौतियों के बाद चुनौती थी कि बच्चों को एप का अनुभव बोरियत करने वाला लगने के बजाय आनंददायक लगे। इसके बाद बच्चों को एक लंबे समय (दो-तीन महीने से अधिक) के लिए इस एप से जोड़े रखना था जिससे कि उनके प्रदर्शन में सुधार का आकलन किया जा सके।”

रीड अलॉंग एप को गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है। कश्यप के अनुसार, “यह नि:शुल्क उपलब्ध है।” रीड अलॉंग से बच्चे दुनिया में कहीं भी, कभी भी अपना पढ़ने का कौशल बेहतर कर सकते हैं। यह एक ऐसा एप है जिसे भारत में विकास के बाद गूगल ने पूरी दुनिया के बच्चों के लिए उपलब्ध कराया है।

साभार- https://www.facebook.com/SPANmagazine/ से