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ब्रह्मवादिनी शश्वती

इस आर्यव्रत देश में सदा से ही महिलाओं को विशेष सम्मान मिला है| महिलाओं ने न केवल पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है अपितु अनेक कार्यों में तो यह महिलायें पुरुषों को भी पीछे छोड़ते हुए आगे निकल जाती हैं| जिस प्रकार वेद मन्त्रों के व्याख्याकारों के रूप में बहुत से विद्वान् पुरुषों के नाम आते हैं, उस प्रकार ही वेद के मन्त्रों की व्याख्या करने वाली बहुत सी वेद विदुषी महिलाओं के नाम भी आते हैं| इस प्रकार की वेद विदुषी महिलाओं की जब गणना की जाती है तो ब्रह्मवादिनी अर्थात् वेद विदुषी महिला शश्वती का नाम भी हमारी आँखों के सामने स्वयमेव ही आ जाता है|

विद्वान् शश्वती की विद्वत्ता को ब्रह्मवादिनी रोमशा से कुछ भी कम नहीं माना जाता क्योंकि उस ने भी वेद मन्त्रों की विषद् व्याख्या कर अधिकारिणी वेद व्याख्याकार बन गईं थीं| यह भी वेद की एक ऋचा पर अत्यधिक कार्य करने वाली और उसकी विशद् व्याख्या करने के कारण उस ऋचा की ऋषिका होने के लिए गौरवान्वित थी|

शश्वती अंगीरा ऋषि की कन्या थी| ऋषि कन्याहोने के कारण यह कन्या आरम्भ से ही बहुत गूढ़ बातें करती थी तथा वेदों के प्रति अत्यधिक अनुराग भी रखती थी| इस की योग्यता तथा सुन्दरता को देखते हुए शश्वती का विवाह उस समय के एक सुप्रसिद्ध राजा आसंग से हुआ| विवाह के पश्चात् भी इस महिला ने वेद की व्याख्या करने का कार्य निरंतर जारी रखा| इसका ही परिणाम था कि उसने ऋग्वेद के अष्टम मंडल के प्रथम सूक्त की ३४वीं ऋचा की विषद् व्याख्या करते हुए इन मन्त्रों की आधिकारिक ऋषिका बनी और इस विदुषी नारी का नाम ऋग्वेद की इस ऋचा के साथ अंकित हो गया|

शश्वती के प्रयास से ऋग्वेद की जिस ऋचा की व्याख्या हुई, यह व्याख्या अपने आप में ही बहुत ही गूढ़ उपदेश लिए हुए है| इसके इस अत्युत्तम और गूढ़ उपदेश ने संसार को वेद के माध्यम से एक नई दिशा दी|

वेद के किसी मंत्र के साथ जब किसी व्याख्याता का नाम जुड़ जाता है तो वह सृष्टि पर्यंत ही जुडा रहता है| इस प्रकार सृष्टि के लगभग चार अरब की आयु तक उस व्याख्याता को व्याख्याकार के रूप में सम्मान मिलता रहता है| फिर शश्वती ने तो ऋग्वेद की एक पूरी ऋचा की व्याख्या की और इस ऋचा के सब मन्त्रों के साथ शश्वती का नाम जुड़ चुका है और यह नाम तब तक जुडा रहेगा, जब तक कि यह सृष्टि रहेगी|

इस प्रकार आज जिन महिलाओं को हमारे कुछ सम्प्रदाय वेद पढ़ने का अधिकार ही नहीं देते, उस युग में भी शश्वती का नाम वेद व्याख्याकारों के रूप में आकाश के सूर्य की भान्ति निरंतर जगमगाता रहा है और आगे भी हमें प्रकाशित करता रहेगा | अत: प्रत्येक वेद सेवक, प्रत्येक वेद का स्वाध्याय करने वाले तथा प्रत्येक उस व्यक्ति के लिए, जिसको वेद के प्रति सम्मान है, के लिए शश्वती सदा मार्गदर्शक, प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी और इस आधार पर किसी को यह कहने का अधिकार नहीं रह जाता कि वेद को कोई स्त्री नहीं पढ़ सकती| आर्य समाज ने तो पुरुषों के समान ही महिलाओं और कन्याओं को वेद पढ़ने और उस पर खुल कर व्याख्याएं करने का अधिकार दिया है| इस कारण ही आज विश्वविद्यालयों में भी बहुत सी महिलायें वेद का ज्ञान प्राप्त कर रही हैं और वेद पर शोध कर रही हैं|

डॅा. अशोक आर्य
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