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वीर योद्धा बन्दा वैरागी

८ जून बलिदान दिवस
वीर प्रसविनी भारत भूमि ने समय-समय पर अनेक वीरों को जन्म दिया, जिन्होंने इस भूमि के निवासियों पर अत्याचार करने वाले आतताइयों का नाश करते हुए अपने जीवन को आहूत कर दिया| हमारी कथा के कथा नायक बन्दा वीर वैरागी भी इस प्रकार के वीर योद्धाओं में से एक थे| आओ इनके जीवन पर कुछ प्रकाश डालते हए इनसे कुछ प्रेरणा लें |

देश के लिए अपने शरीर का प्रत्येक अंग दान करने वाले बन्दा वीर वैरागी का जन्म जम्मू कश्मीर के क्षेत्र पूंछ के गाँव तच्छक किला में दिनांक २७ अक्तूबर १६७० इस्वी को हुआ| वैरागी जी का आरम्भिक नाम लक्ष्मणदास था| जब वह युवावस्था काल में एक दिन शिकार पर गए तो उन्होंने एक हिरणी पर अपना तीर छोड़ दिया| यह हिरनी गर्भवती थी| इस तीर का परिणाम यह हुआ कि हिरणी का पेट फट गया और उसमें से एक नन्हा सा हिरण का बच्चा निकल कर गिरा और तडपते हुए मर गया| इस घटना को देखकर उनका मन खिन्न होकर वैराग्य की और आ गया| अब युवक लक्ष्मण दास ने अपना नाम माधवदास रखकर घरबार छोड़ दिया और तीर्थयात्रा को चल दिए| अनेक साधुओं से योगादि की शिक्षा प्राप्त कर नान्देड में आकर कुटिया बनाई और यहीं रहने लगे|

इस मध्य ही गुरु गोविन्दसिंह जी भी अपने चारों पुत्रों का बलिदान देकर नांदेड आ गए| एक दिन विचरण करते हुए गुरु जी सन्त माधोदास जी की कुटिया में आ गए| गुरु जी ने संत माधोदास जी को देखते ही उनकी वीरता को पहचान लिया और उन्हें प्रेरित किया कि वह वैराग्य को त्याग दें क्योंकि देश में मुस्लिम शासकों की खुली छूट के कारण हिन्दुओं पर मुस्लिम आतंक जोर पकड़ रहा है| उनसे जूझ कर हिन्दू धर्म की रक्षा करें| इस भेंट से संत माधोदास के जीवन में भारी परिवर्तन आया तथा उन्होंने हाथ में तलवार लेकर मुगलों से लोहा लेने का निर्णय लिया| अब गुरु जी ने उनका नाम बदल कर बन्दा बहादुर रख दिया| नाम परिवर्तन के साथ ही गुरु जी ने उन्हें पांच तीर,एक निशान साहिब, एक नगाडा और एक हुकमनामा देकर अपने दोनों छोटे पुत्रों को जीवित ही दीवार में चिनवाने वाले सरहिंद के नवाब वजीर खां से बदला लेने को कहा |

बन्दा बहादुर ने हजारों सैनिकों को(जिनमें कुछ सिक्ख भी थे) अपने साथ लेकर पंजाब की ओर प्रस्थान किया| दिल्ली उनके मार्ग में ही आती थी, जहां गुरु तेग बहादुर जी ने आर्य जाति की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया था| अत: सर्वप्रथम इस बलिदान का बदला लेने का निर्णय लिया और उन्होंने सबसे पहले गुरु तेगबहादुर जी का सिर काटने वाले जल्लाद जलालुद्दीन का सिर काटा| फिर सरहिंद के नवाब वजीर खां का वध किया| जिन हिन्दू राजाओं ने मुगलों का साथ दिया था, बन्दा बहादुर ने उन्हें भी नहीं छोड़ा| इससे चारों दिशाओं में बन्दा वीर वैरागी के नाम की धूम मच गयी |

बन्दा के पराक्रम से भयभीत मुगलों ने दस लाख की विशाल सेना के साथ उन पर आक्रमण किया| इतनी विशाल सेना का बन्दा वैरागी ने अपनी मुट्ठी भर सेना की सहायता से डट कर सामना किया| वैरागी के पास थोड़े से सैनिक होते हुए भी विशाल सेना के स्वामी मुग़ल निरंतर हारते ही चले जा रहे थे| परिणाम स्वरूप धोखे का सहारा लेते हुए विश्वासघात से दिनांक १७ दिसंबर १७१५ इस्वी को उन्हें अनेक सैनिकों सहित पकड़ लिया| वैरागी से मुसलमान बादशाह इतना भयभीत था कि पकड़ते ही उन्हें एक लोहे के पिंजड़े में बंद कर, एक हाथी पर लाद कर दिल्ली लाया गया| वैरागी सहित उनके ७४० साथी तथा गुरु जी से प्राप्त सिक्ख सैनिक भी उनके साथ थे, जो आरम्भ से ही उनका साथ दे रहे थे, सब मुगलों की हिरासत में थे| युद्ध में आहत रहे सिक्ख सैनिकों के सिर काट कर सिरों को भाले की नोक पर टांगकर नचाते हुए दिल्ली लाया गया| पूरे मार्ग में गर्म चिमटों से वैरागी का मांस नोचा जाता रहा|

दिल्ली पहुँचाने पर मुसलमान काजियों ने कहा कि आप सब लोगों का जीवन अमूल्य है| इस जीवन की रक्षा करने के लिए मुसलमान बन जाओ किन्तु बन्दा बहादुर सहित सब सैनिकों ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया| परिणाम स्वरूप इन पर अत्याचार बढ़ा दिए गए और बन्दा बहादुर को झुकाने के लिए प्रतिदिन १०० सैनिकों का वध किया जाने लगा और इस वध के लिए सार्वजनिक स्थान चुना गया जहां, जनता इस जघन्य कार्य को होते देख सकें| यह स्थान था, जहाँ वर्तमान में हार्डिंग पुस्तकालय है| यह कत्लेआम का कार्य दिनांक ७ मार्च १७१६ इस्वी में आरम्भ किया गया| इन कत्लेआम के दिनों ही एक दिन अमिन नाम के मुग़ल दरबारी ने बन्दा बहादुर से पूछा कि तुमने इस प्रकार के बुरे कार्य करके बादशाह को अपना विरोधी क्यों बना लिया?, जिसके कारण तुम्हारी यह दुर्दशा हो रही है| बन्दा वैरागी जी ने बड़े गर्व से सीना फुलाते हुए कहा कि मैं तो परमात्मा का भेजा हुआ दूत हूँ| तुम्हारे बादशाह अपनी हिन्दू प्रजा पर जो अत्याचार कर रहे थे, उन्हें दूर करने के लिए, उन्हें बचाने के लिए ही मुझे परमपिता ने यहाँ भेजा था| मैं प्रभु आदेश से यह कार्य पूरा करने में बहुत सीमा तक सफल रहा हूँ| क्या तुमने नहीं सुना कि जब-जब संसार में दुष्टों के अत्याचार बढ़ते हैं, तब-तब परमात्मा मेरे जैसे किसी न किसी सेवक को इस धरती पर अत्याचारों का प्रतिरोध करने के लिए भेजता है?

अंत में उससे पूछा गया कि तुमने बादशाह का विरोध किया है इसलिए तुझे ज़िंदा रहने का कोई अधिकार नहीं है अत: तु ही बता कि तु कौन सी मौत मरना चाहता है? इस पर बन्दा बहादुर ने कहा कि मैं किसी भी प्रकार से आने वाली मृत्यु से नहीं डरता; क्योंकि यह शरीर दु:ख का मूल कारण है| मरना या जीना इस शरीर का काम है आत्मा का नहीं| अत: जैसे भी चाहो आप लोग मुझे शहीद कर सकते हो| मेरा पुराना शरीर ही तुम काट सकते हो , मेरी आत्मा को नहीं| मरने के बाद मैं नया शरीर लेकर पुन: आउंगा और हिन्दुओं पर किये हुए अत्याचारों का फिर से बदला लूँगा| नया जन्म लेकर फिर आप लोगों का नाश करुंगा |

बन्दा बहादुर का उत्तर सुनकर बादशाह क्रोध से लाल हो गया और उसने वैरागी को और अधिक तडपाना चाहा| अत: वीर वैरागी के पांच वर्षीय पुत्र को लाकर उनकी गोद में दे दिया और यह आदेश देते हुए उनके हाथ में एक छुरा दिया और कहा कि वह अपने बच्चे का अपने हाथों से वध कर दे| बन्दा चाहे बादशाह की बेड़ियों में बंधा हुआ उसका एक कैदी था किन्तु उसका साहस अब भी वैसे का वैसे ही बना हुआ था| उसने वीरता से उत्तर दिया कि मैं किसी निर्दोष का वध नहीं कर सकता और यह तो मेरा नन्हा बालक है, जिसने अब तक कोई कर्म किया ही नहीं| परिणाम स्वरूप बच्चे का जल्लाद के हाथों वध करवा कर उसका कलेजा निकाला गया और इस कलेजे के टुकडे बन्दा बहादुर के मुंह में ठूंस दिए गए| इस से क्या होता था?, बन्दा तो बन्दा ही था, वह अत्याचारों का सामना करते हुए इन सब से ऊपर उठ चुका था|

हिरासत से लेकर अब तक वीर बन्दा का मांस निरंतर गर्म चिमटों से नोचते हुए उन्हें अथाह वेदना दी जा रही थी किन्तु बन्दा वैरागी के चेहरे पर अब तक भी कोई शिकन तक नहीं थी| मांस नोचने के कारण वह केवल हड्डियों का ढेर मात्र रह गए थे| फिर भी वह मुस्काते हुए मुगल अत्याचारों का सामना करते रहे| अंत में किसी भी प्रकार से उन्हें न झुका पाने के कारण आठ जून सन् १७१६ इस्वी को उन्हें हाथी के सामने डाल दिया गया और इस मदमस्त हाथी के पांवों तले कुचलवा कर बन्दा वीर वैरागी को शहीद कर दिया गया| इस प्रकार अपने जीवन में प्राप्त नाम के तीनों शब्दों को सार्थक करते हुए हमारे बहादुर इस दुनियां से विदा हुए| आज बन्दा वीर हमारे मध्य नहीं है किन्तु देश की अवस्था स्वार्थी राज नेताओं के कारण वैसी ही बन रही है, आवश्यकता है बन्दा जैसे वीरों की जो आगे आकर देश को फिर से एक सूत्र में बाँध सकें|

डॉ..अशोक आर्य
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