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बुलेट राजा [हिंदी एक्शन कथा ]

दो टूक : कहते हैं जिंदगी हमेशा उस रास्ते जाती है जिस रास्ते के लिए हम उसके लिए बने ही नहीं होते ..पर कई बार जिंदगी लौटकर हमारे उस रास्ते पर भी चल पड़ती है जिसके बारे में उसने कभी नहीं सोचा होता ..लेकिन ऐसा होने पर हमें उसकी कड़वी सचाई पर भी एक नजर डालकर देख लेनी चाहिए कि कहीं ऐसा तो नहीं कि वो हमें गुंजल में फंसा रही हो . निर्देशक  तिग्मांशु धुलिया की सैफ अली खान, सोनाक्षी सिन्हा, विद्युत जामवल, जिमी शेरगिल, गुलशन ग्रोवर, राज बब्बर, रवि किशन, चंकी पांडे, माही गिल, विश्व जीत प्रधान  ,शरत  सक्सेना , विपिन शर्मा , दीप राज राणा और गौरव झा के अभिनय वाली उनकी नयी फ़िल्म बुलेट राजा भी एक ऐसी ही जिंदगी की कहानी कहती है . 

कहानी : फ़िल्म की कहानी उत्तर प्रदेश के लखनऊ में रहने वाले राजा मिश्रा (सैफ अली खान) की  है जो एक रात कुछ आवारा लड़कों से बचता हुआ एक शादी में शामिल होकर शहर के दबंग [शरत सक्सेना ]  के बेटे रूद्र (जिमी शेरगिल) के घर पहुँच  जाता है . उसी रात रूद्र का  चचेरा  भाई ललन [चंकी पांडे ] अपने कुछ लोगों के साथ रूद्र पर हमला करता है और राजा उसे बचा लेता है . दोनों में दोस्ती होती है लेकिन इनकी ये दोस्ती  बदल देती है . रूद्र और उसके पिता के दुश्मन राजा के भी दुश्मन  हो जाते  हैं . खुद को बचाने की लड़ाई मे राजा बुलेट राजा  बन जाता है . राजनीति के उस्ताद राम बाबू [राज बब्बर ] उसे सहारा देते हैं लेकिन राजनीति से और अपराध से जुड़े बजाज[गुलशबन ग्रोवर ] और सुमेर [रवि किशन ] के साथ अफीम माफिया का सरगना [ विश्वजीत प्रधान ] भी उसके दुश्मन ही नही हो जाते बल्कि पुलिस अरुण सिंह उर्फ़ मुन्ना [विद्युत् जामवाल ] भी उसके पीछे पड़ जाता है . बस खुद को बचाने और दूसरों को मात देते राजा बुलेट की इतनी सी कहानी है .जिसमे उसकी प्रेमिका बनी मिताली [सोनाक्षी सिन्हा ]भी शामिल है . 

 

गीत संगीत :  फ़िल्म में संदीप नाथ , कौसर मुनीर और रफ़्तार के गीत हैं और संगीत आरडीबी और निंदी कौर की तिकड़ी ने तैयार किया है . फ़िल्म में देसी टच और पुरबिया संगीत की ताजगी है और तमंचे पर डिस्को ,डोंट टच माय बॉडी के साथ जरा ज़रा सा सरकने लगा जैसे बोलों वाले गीत सुने जा सकते हैं . 

 

अभिनय :  फ़िल्म के केंद्र में सैफ हैं लेकिन उनके पात्र का असली आधार जिमी हैं जो उनके साथ नए तरीके से संयोजन बनाकर सामने आते हैं .  ठेठ देसी किरदार में सैफ खूब  जमते हैं  . जिमी शेरगिल जब तक परदे पर रहते हैं निराश नहीं करते बस उन्हें जरा जल्दी मार दिया  गया .गुलशन ग्रोवर और रवि किशन कुछ भी नया नहीं करते लेकिन  विद्युत् जामवाल को कुछ और निथारा जा सकता था . सोनाक्षी सिन्हा को कुछ नया करने का मौका नहीं मिला जबकि चंकी पांडे अब मसखरे ख़लनायक के तौर पर खीज पैदा करते हैं .  राज बब्बर की एक अलग शैली हैं काम करने और अपने पात्रों को जीने की तो उनके साथ राजीव गुप्ता , विश्व जीत प्रधान  ,शरत  सक्सेना , विपिन शर्मा , दीप राज राणा और गौरव झा भी  अपने छोटे छोटे चरित्रों में याद रहते हैं . 

 

निर्देशन : पहली बात .  यह पान सिंह तोमर और साहेब बीवी गैंगस्टर जैसी फ़िल्में बना चुके धुलिया की शैली की फ़िल्म नहीं है . एक तरह से देखा जाये तो इसे हम तिग्मांशु की पहली व्यवसायिक फ़िल्म कह सकते हैं लेकिन फिल्मी की कहानी में ऐसा कुछ नहीं है, जिसे नया कहा जा सके . पर उनका  प्रस्तुतिकरण और कलेवर में वो  यूपी के अपराध जगत को वो एक मंझे हुए निर्देशक की तरह सामने लाते हैं . वो  परिवेश और प्रस्तुति के साथ भाषा और पहनावे का भी पूरा ख्याल रखते हैं और हमेशा अपने पात्रों को आम जीवन से चुनते हैं जिन्हे वो  रूद्र, सुमेर यादव, बजाज, मुन्ना और जेल में कैद श्रीवास्तव के  साथ शुक्ला, यादव और अन्य जातियों के नामधारी के नेताओं में बदल देते हैं . हालां कि मध्यांतर के बाद फ़िल्म एक जानी पहचानी लीक पर चलती है और अंत में खुद ही बता देती है कि हमने कुछ नया नहीं देखा पर ये भी कि तिग्मांशु अपनी तरीके की अपनी फ़िल्म बनाते हैं जिसे जब चाहे देखा सकता है . 

 

फ़िल्म क्यों देखें : सैफ के लिए .

फ़िल्म क्यों न देखें :  अब भला सैफ के साथ बनी तिग्मांशु की फ़िल्म को छोड़ने को मैं क्यों  कहूंगा .

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