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कत्लखानों पर अंकुश अभिनंदनीय

युवा राजनेता योगी आदित्यनाथ ने १९ मार्च २०१७ को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री की शपथ ली। अगले ही दिन से उन्होंने अपने राज्य में विभिन्न व्यवस्थाओं में सुधार हेतु अनेक अच्छे कदम उठाने शुरू किये। उनके अच्छे कदमों में एक है – यांत्रिक तथा अवैध (गैर-कानूनी) बूचडखानों और मांस की दुकानों को बन्द करवाना। उन्होंने अधिकारियों को प्रदेशभर में बूचडखाने बन्द करने की कार्य-योजना (एक्शन-प्लान) तैयार करने के निर्देश दिये हैं। उन्होंने गौ-तस्करी पर पूर्ण पाबन्दी के निर्देश भी दिये हैं। मौजूदा हिंसामय परिवेश में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री का यह महत्त्वपूर्ण और साहसिक निर्णय है।
उत्तरप्रदेश में भाजपा ने अपने चुनाव घोषणा-पत्र में तथा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने चुनावी रैलियों में यह वादा किया था कि भाजपा की सरकार बनने पर उत्तरप्रदेश में यांत्रिक तथा अवैध बूचडखानों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जायेगा। प्रदेश में शासन की बागडोर संभालने वाले योगी आदित्यनाथ ने वादे के अनुसार यांत्रिक व अवैध बूचडखानों खिलाफ मुहिम छेड दी है। अब तक दर्जनों छोटे-बडे बूचडखानों, मांस प्रक्रिया इकाइयों और मांस की दुकानों को मुख्यमंत्री के आदेश से बन्द कर दिया गया है। संभवतः पहली बार किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री ने निर्दोश प्राणियों की चीखों और चीत्कारों को इतनी संवेदनशीलता से सुना है तथा मूक प्रजा पर होने वाले अन्तहीन अत्याचारों का अन्त करने की शुरूआत की है।
डॉ. दिलीप धींगयुवा राजनेता योगी आदित्यनाथ ने १९ मार्च २०१७ को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री की शपथ ली। अगले ही दिन से उन्होंने अपने राज्य में विभिन्न व्यवस्थाओं में सुधार हेतु अनेक अच्छे कदम उठाने शुरू किये। समाज में भी अन्य मुद्दों पर तो वैधता और अवैधता की काफी समीक्षाएँ देखने-पढने को मिलती है, लेकिन पशु-पक्षियों के बेहिसाब अवैध कत्ल के बारे में वैसी मुखरता और प्रखरता कम ही देखने में आती है। वैसे ’कुदरत के कानून‘ में कोई बूचडखाना वैध नहीं होता है।
यह वक्त है कि सबको इस करुणामय व पर्यावरण-हितैशी कदम का समर्थन करना चाहिये। सभी धर्मों के गुरुओं, सामान्य और विशिष्टजनों को भी मूक प्राणियों की आवाज बनना चाहिये। जो लिख सकते हैं, उन्हें पशु-पक्षियों के जीने के अधिकार के पक्ष में अपनी कलम चलानी चाहिये। निरीह पशु-पक्षियों की रक्षा का कोई भी कदम, कानून या अभियान हमेशा सर्वथा गैर-राजनीतिक होता है। क्योंकि पशु-पक्षी मतदाता (वोटर) नहीं होते हैं। पशु-पक्षी कभी कोई आन्दोलन, धरना, तोड-फोड या कोई मांग नहीं करते हैं। वे प्रकृति के अनुसार जीते हैं। किसी से कुछ नहीं लेते हैं। स्वाभाविक तौर पर जो कुछ लेते हैं उसके बदले में कई गुना अधिक देते हैं। उनके होने से ही धरती का पर्यावरण स्वच्छ रहता है।
बूचडखाने स्वच्छता के अव्वल दर्जे के दुश्मन होते हैं। बूचडखानों ने स्वच्छ सुन्दर वातावरण तथा पारिस्थितिकी सन्तुलन को बिगाडकर रख दिया है। विभिन्न घातक बीमारियाँ, ग्लोबल वार्मिंग तथा जल की बर्बादी का एक बडा कारण मांस-उत्पादन, मांस-व्यापार और मांसाहार है। अर्थतंत्र की दृष्टि से भी बूचडखाने बेहद नुकसानकारी होते हैं। समाज में फैलती क्रूरता, हिंसा, दुराचार तथा अनेक समस्याओं की जड में क्रूरता से पैदा हुआ वह भोजन भी है, जो पशु-पक्षियों को तडपा-तडपाकर, मारकर प्राप्त किया जाता है। देश-दुनिया के अनेक विचारक और वैज्ञानिक इस तथ्य को स्वीकार करते हैं। अनेक वैज्ञानिक शोध-निष्कर्शों में भी कत्लखानों तथा मांसाहार से होने वाले विभिन्न प्रकार के दुश्परिणामों को बताया गया है। वस्तुतः पशु-पक्षियों के वध का निशेध केवल करुणा का ही विषय नहीं है, अपितु यह एक नीतिपूर्ण और मानवीय जीवनशैली का विषय भी है।
अनेक समीचीन दृष्टियों से उत्तरप्रदेश में अटल निश्चय के साथ कत्लखानों पर रोक लगाना एक सराहनीय कदम है। अन्य राज्यों में भी बूचडखानों तथा पशु-पक्षियों के वध पर रोक लगाई जानी चाहिये। यह शुभ है कि २३ मार्च २०१७ को उत्तरप्रदेश के पडोसी राज्य बिहार के पशुपालन मंत्री अवधेशकुमार सिंह ने बिहार में चल रहे अवैध बूचडखानों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई का निर्देश दिया है। अन्य राज्यों में, देशभर में बेरोक-टोक चलने वाले अवैध बूचडखानों पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये। केन्द्र सरकार से निवेदन है कि वह भी इस दिशा में राज्यों को निर्देश जारी करे। इस सम्बन्ध में मीडिया और समाज की जागरूकता शासन और प्रशासन को अधिक सक्रिय बना सकती है।
इतिहास साक्षी है कि भारत में अशोक, विक्रमादित्य और कुमारपाल जैसे अनेक कुशल शासकों ने प्रकृति और संस्कृति की रक्षा के लिए पशु-पक्षियों की हत्याओं पर रोक लगा दी थी। गुर्जर नरेश कुमारपाल ने तो उनके अधीनस्थ सभी अठारह प्रदेशों को वधशाला-मुक्त कर दिया था। शान्ति, सुरक्षा, समृद्धि और सर्वांगीण विकास की दृष्टि से उनका शासनकाल स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। अकबर ने भी वध-निशेध के फरमान जारी किये थे। मौजूदा वक्त में भी देश में अहिंसा को राज्याश्रय प्रदान करना बेहद जरूरी है। योगी आदित्यनाथ के सुधारवादी फैसले भारत की अहिंसामय पावन संस्कृति का अभिनन्दन हैं।