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दाग़ देहलवी का अंदाज़े बयाँ कुछ और ही था
प्रेम के हर अंदाज को अपने शब्द देनेवाला यह शायर उसे हर रंग में अपनी शायरी में पिरोता रहा. मिलना - खो जाना जिसके लिए उस तरह का अर्थ रखते ही नहीं थे. वह तो उसी का हो गया था
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नैन सिंह रावत : जिन्होंने 150 साल पहले दुनिया के नक्शे पर तिब्बत का भूगोल जोड़ा था
नैन सिंह अच्छे लेखक भी थे. उन्होंने ‘अक्षांश दर्पण’ और ‘इतिहास रावत कौम’ नाम से दो पुस्तकें भी लिखीं.
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वारिसों की नाफरमानी के बाद भी जेपी की वैचारिकी खारिज नही हुई है
भारत में जेपी को आज एक महान विचारक और सत्ता से सिद्धांतो के लिये जूझने वाले योद्धा की तरह याद किया जाएगा इस त्रासदी के साथ कि उनके अनुयायियों ने उनके विचारों के साथ व्यभिचार की सीमा तक अन्याय किया।
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क्रांतिकारी शहीद यतीन्द्रनाथ दास (जतीन दास)
कलकत्ता में यतीन्द्र के घर १ अमिता घोष रोड पर आज विकट सन्नाटा है। कोई देशवासी उन दरो-दीवारों को अब नहीं देखता जहां कभी उस क्रांति-कथा का सपना बुना गया था जो इतिहास में 'लाहौर षड्यंत्र केस' के नाम से दर्ज है।
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गोपाल राम गहमरी : एक जासूसी लेखक जिसको पढ़ने के लिए लोगों ने हिंदी सीखी
गोपालराम गहमरी के मौलिक जासूसी उपन्यासों की संख्या ही 64 है. अनूदित उपन्यासों को भी मिला दें तो यह 200 के करीब पहुंच जाती है.
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रामकथा के अनोखे चितेरे : फादर कामिल बुल्के
श्रीराम को माध्यम बनाकर रचा गया भारतीय साहित्य तो विशाल है ही, विदेशी साहित्य का भी अलग महत्त्व है।
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गामा पहलवान, जिनका नाम तब देश के बच्चे-बच्चे की जुबान पर था
70 या 80 के दशक तक पैदा हुए बच्चों पर अनजाने ही समाजवाद का असर रहता था. हर बहस में कुछ सवाल घूम-घूम कर आते.
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देश की आजादी और शिक्षा के क्षेत्र में अहम् योगदान रहा स्वामी ब्रह्मानंद जी का
देश की संसद में स्वामी ब्रह्मानंद जी पहले वक्ता थे जिन्होने गौवंश की रक्षा और गौवध का विरोध करते हुए संसद में करीब एक घंटे तक अपना ऐतहासिक भाषण दिया था। 1972 में स्वामी जी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के
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परसाई के बहाने
हिंदी साहित्य के मशहूर व्यंग्यकार और लेखक हरिशंकर परसाई से आज कौन परिचित नहीं है और जो परिचित नहीं है उन्हें परिचित होने की जरूरत है. मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के जमानी गाँव में 22 अगस्त 1924 में पैदा हुए परसाई ने लोगों के दिलों पर जो अपनी अमिट छाप छोड़ी है.
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जो रचता है वह मारा नहीं जाता है
हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि भगवत रावत की कविताओं को पढ़ते हुए लगता है, जैसे हम देश के उन आम-आदमियों से मिल रहे हैं जो इस पृथ्वी को कच्छप की तरह अपनी पीठ पर धारण किये हुए हैं पर उन्हें न इस बात का न भान है और न गुमान।