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किताब तो चोरी कर भी पढ़े तो भी कोई बात नहीं
लंबे समय बाद मिल पाने कि खुशी से हम गदगद हो उठे और गर्म जोशी से गले मिल कर एक - दूसरे का स्वागत किया। एक - दूसरे के हाल चाल पूछे, इधर - उधर की चर्चा हुई।
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हुड़क
‘इंतज़ार की घड़ी लम्बी होती है,‘ सुना था कभी , आज देख रही हैं । “चाय ठंढी हो रही है ।” वह स्वयं से बड़बड़ाईं और उठकर खुद ही कमरे में चली गईं । “अभी तक सो रहे हैं , इतना भी क्या सोना भई, कभी खुद भी उठ जाया करें ।”
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पहली कहानी -शक्तिहीन
वह वैश्या चौंक गई, उसने एक झटके से मेरी तरफ मुंह घुमाया। मैंने जीवन में पहली बार उसका चेहरा गौर से देखा। धब्बेदार चेहरे में उसकी आंखों के नीचे के काले घेरे आंसुओं से तर थे। वह मुझे घूर कर देखती हुई लेकिन डरे हुए शब्दों में बोली, "हां… आपको… ठीक लग रहा है।"
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कथा हिन्दू विश्वकोष की
लगभग 37 वर्ष पहले की बात है। हिमालय के नीचे एक तीर्थ में एक बड़ा आश्रम है, जिस की शाखा अमेरिका में भी है। उस के संचालक को अमेरिकी भारतीयों ने कहा कि ‘‘स्वामी जी,
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शक है उन्हें
कार में हम तीन थे फिर भी एक सन्नाटा पसरा हुआ था । कार गलियों में बाएँ - दाएँ मुड़ती हुई गंतव्य की ओर बढ़ रही थी । सुकन्या एवं सौरभ के रिश्तों को सुलझाने की हमारी छोटी सी
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नमस्ते साहब जी
जल्दबाजी नहीं है. ये फैक्ट्री के आवासीय परिसर में ही रहने वाले लोग हैं. इन सबकी मंजिल या तो इनका क्वार्टर है या फिर फैक्ट्री का वो गेट जहाँ एक छोटा सा बाज़ार है.
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भाड़ में जाय ऐसा इनक़लाब
ऐसे ही किसी एक दिन वह रोज़ की तरह बे-तमीज़ी पर उतारू था। उस के पिता उसे बार-बार टोक रहे थे। वह अनसुना करता जा रहा था। तभी अचानक पड़ोस वाले डेविड साब की वाइफ उस
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मंगलसूत्र
तभी कावेरी के ख्यालों का ताँता टूटा, देखा उसका ऑफ़िस आ गया है | तेज़ क़दमों से आगे बढ़ती हुई कावेरी अपने ऑफिस के कमरे के सामने पहुँची, देखा तो सामने उसकी मित्र साधना
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दो लघु कथाएँ
यह लिखकर उसने अपनी बाएँ हाथ की हथेली बंद की और उसी हाथ की अपनी छोटी अंगुली को दो बार दबा कर पाम-गेजेट को ऑफ किया फिर मेज की दराज से स्माइल-सप्लीमेंट की एक गोली निकाल कर मुंह में रख दी।
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जब दौड़ी उम्मीदों की रेल…
इतने में उनका दोस्त मिथुनवा दौड़ा-दौड़ा एक ख़बर लेकर आया और हाँफते-हाँफते बोला- ''सुना तुम लोगों ने, एक खुशखबरी है|