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हेमा मालिनी के कृष्ण भक्ति के वीडिओ देखकर दंग रह जाएंगे आप
भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी पूरे देश में धूमधाम से मनाई जा रही है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
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कृष्ण एक अबूझ पहेली है, वो अतीत भी है, वर्तमान भी और भविष्य भी!
अर्जुन ज्यादा नैतिकवादी और निष्ठावादी दिखते हैं। कृष्ण बिल्कुल इसके विपरीत दिखते हैं। कृष्ण एक बुद्ध हैं, एक जागृत आत्मा।
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श्रीकृष्ण महान् क्रांतिकारी नायक
श्रीकृष्ण के चरित्र में कहीं किसी प्रकार का निषेध नहीं है, जीवन के प्रत्येक पल को, प्रत्येक पदार्थ को, प्रत्येक घटना को समग्रता के साथ स्वीकार करने का भाव है। वे प्रेम करते हैं तो पूर्ण रूप से उसमें डूब जाते हैं,
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प्रायोजित सम्मान की चमक चार दिन की !
विचारों का प्रभाव शरीर पर पड़ता है। शरीर का प्रभाव व्यवहार पर पड़ता है। हम स्मरण रखें कि सत्य सृष्टि का महानतम तत्त्व है।
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भारतीय दर्शन में पूर्णिमा का महत्व
मुंबई के श्री भागवत परिवार द्रवारा गीता ज्ञान यज्ञ की श्रृंखला एक साल तक किए जाने के बाद ज्ञानामृतम के नाम से अध्यात्मिक श्रृंखला की शुरुआत की गई है।
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गुरु है ‘पूर्णिमा’ का चंद्रमा !
एक तो राह है जीवन को देखने की – गणित की, और एक राह है जीवन को देखने की काव्य की। गणित की यात्रा विज्ञान पर पहुंचा देती है। और अगर काव्य की यात्रा पर कोई चलता ही चला जाए, तो परम काव्य परमात्मा पर पहुंच जाता है।
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आचार्य डॉ लोकेश को यूएनओ के ऐतिहासिक चर्च में ‘विश्व शांति पद्म’ सम्मान
इस अवसर पर शांतिदूत आचार्य डॉ लोकेशजी ने कहा कि विश्व शांति व सद्भावना के लिए आवश्यक है सभी धर्म, वर्ग और सम्प्रदाय के लिए एक साथ सौहार्द भाव से काम करे।
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योग से जीवन निर्माण का नया दौर
अगर लोगों ने अपने जीवन का, जीवन में योग का महत्व समझ लिया और उसे महसूस कर लिया तो दुनिया में व्यापक बदलाव आ जाएगा।
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ईश्वर की तलाश खुद में करें
परमात्मा को अनेक रूपों में पूजा जाता है। कोई ईश्वर की आराधना मूर्ति रूप में करता है, कोई अग्नि रूप में तो कोई निराकार! परमात्मा के बारे में सभी की अवधारणाएं भिन्न हैं, लेकिन ईश्वर व्यक्ति के हृदय में शक्ति स्रोत और पथ-प्रदर्शक के रूप में बसा है।
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सबसे प्यारा शब्द है – माँ
माता के संदर्भ में रचित विश्व साहित्य भी इस तथ्य का साक्षी है। जहां भारतीय साहित्य में संस्कृत से लेकर आधुनिक भारतीय भाषाओं तक माँ के संदर्भ में विपुल सामग्री मिलती है वहां अंग्रेजी, रूसी, जापानी आदि विदेशी भाषाओं के साहित्य में भी माँ को श्रद्धा और आदर के साथ स्मरण किया जाता रहा है।