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त्रासदी से उबरते केरल को समर्पित मोहिनीअट्टम नृत्य संध्या का आयोजन

नई दिल्ली। सभी शास्त्रीय दक्षिण भारतीय शैलियों में, मोहिनीअट्टम को सराहनीयता के साथ अलग रूप में देखा जाता है। शारीरिक हाव-भाव और धड़ द्वारा की गयी खूबसूरत कलात्मकता इसकी विशेषता है, जहां गर्दन/धड़ की प्रमुखता के साथ शारीरिक प्रभाव व हाव-भाव इसके अद्वितीय पहलू हैं। केरल से मिली दो शास्त्रीय नृत्य विधाओं में से एक मोहिनीअट्टम की कला को जीवंत रखने में गुरू पद्मश्री भारती शिवाजी का विशिष्ट योगदान है, जहां उन्होंने मोहिनिअट्टम सेंटर स्थापित किया है साथ ही वे इस नृत्य शैली को बढ़ावा देने वाली दो किताबों; आर्ट ऑफ मोहिनीयाटम और मोहिनीयाटम की सह-लेखिका भी हैं। गॉड्स ओन कंट्री के नाम से प्रसिद्ध केरल में पिछले दिनों आयी बाढ़ से काफी नुकसान हुआ है। इस प्राकृतिक आपदा के चलते जीवन भी अस्त-व्यस्त हुआ है, जिसने केरल से जुड़े लोगों सहित देश के लोगों को भी मानसिक रूप से प्रताड़ित किया है और सभी ने अपनी तरह से एकजुट होकर राहत कार्य एवम् सम्पन्नता लाने में मदद की है।

केरल त्रासदी प्रभावित हुए लोगों और साधारण जीवन वापस लाने में संघर्षरत केरल को ट्रिब्यूट देने के उद्देश्य से सेंटर फॉर मोहिनीअट्टम एवम् इंडिया इंटरनेशनल सेंटर द्वारा ‘केरल स्मृति’ शीर्षक से एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जहां गुरू भारती शिवाजी ने अपनी शिष्यों संग अद्भुत नृत्य प्रदर्शन करते हुए सभी को मंत्र-मुग्ध किया और केरल के इस कलात्मक रूप से वहां के लोगों को इसे समर्पित किया।

मौके पर पूर्व सांसद श्री बलबीर सिंह और प्रख्यात नृत्यांगना यामिनी कृष्णमूर्ति प्रमुख बतौर प्रमुख अतिथि उपस्थित थे। कार्यक्रम की शुरूआत विधिवत् दीप जलाकर की गयी, जिसके बाद साधना श्रीवास्तव ने कार्यक्रम के उद्देश्य और कलाकारों के विषय में जानकारी देते हुए मंच कलाकारों के सुपुर्द किया।
मंच पर खूबसूरत मोहिनीअट्टम की प्रस्तुति देती गुरू-शिष्या का शानदार नज़ारा और भाव-विभोर करता प्रदर्शन देखते ही बनता था। गणपति स्तुति से शुरूआत करते हुए, मुखाचलम, पारम्परिक सोपान संगीत, जयदेव कृत गीत-गोविंद से अष्टपदी विशेष रूप से गुरूवायु के मंदिर में इसकी विशिष्ट परम्परा है और मोहिनीअट्टम में प्रस्तुति देने का श्रेय भारती शिवाजी को जाता है। इसके बाद मोहिनीअट्टम के तकनीकी पहलुओं का प्रदर्शन किया, इसके अतिरिक्त केरल स्मृति पर आधारित एक नयी कोरियोग्राफी प्रस्तुत की, जिसमें केरल की खूबसूरती, मंदिरों, यहां की संस्कृति और ट्रेडिशंस पर आधारित खूबियों एवम् प्राकृतिक सौंदर्य जिसे परशुराम जी ने खोजा था को बहुत की खूबसूरत अंदाज में प्रस्तुत किया जो यहां उपस्थित लोगों के दिलों को छू गया। सभी दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ कलाकारों एवम् उनके प्रयास का अभिवादन किया।

हमारी कालातीत सांस्कृतिक विरासत के गौरवशाली प्रतीक के रूप में खड़े सेंटर फॉर मोहिनीयाट्टम (सीएफएम) द्वारा केरल में आई आपदा से पीड़ित लोगों एवम् उनकी रिकवरी के समर्थन में यह नृत्य संध्या आयोजित की गयी है, जिसमें माहिनीअट्टम केन्द्र की संस्थापक एवम् पद्श्री गुरू भारती शिवाजी और उनकी शिष्याओं वाणी भल्ला पाहवा, दीप्ति नायर, मेघा नायर, अनाघश्री पार्वती और अल्कजेण्डर वोदोपायोनोवा ने अपना अद्भुत प्रदर्शन किया। इस संध्या की खासियत रही विभिन्न प्रस्तुतिकरण के बीच प्राकृतिक आपदा, जिसने यहां के जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया, ऐसी आपदा जिसने बेहताश समस्याओं को खड़ा कर दिया और लोगों द्वारा दिये सहयोग को दर्शाता है, जहां शहर अपनी धन्य महिमा एवम् वास्तविक सौन्दर्य के पुनर्निर्माण के लिए एक साथ बढ़ रहा है।

गुरू भारती शिवाजी ने कहा बतौर कलाकार यह हमारा स्वाभाविक प्रयास है, क्योंकि मोहिनियट्टम की सुंदर शैली दुनिया के लिए केरल का उपहार है और अपनी एकजुटता व समर्थन व्यक्त करने के कला के प्रदर्शन से बेहतर विकल्प नहीं है। यह प्राकृतिक आपदा थी जिसे शायद की कोई रोक सकता था, सभी के एकजुट समर्थन एवम् सहयोग से जल्दी की केरल अपनी धन्य महिमा प्राप्त कर सकेगा।

भारती शिवाजी संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और साहित्य कला परिषद सम्मान की प्राप्तकर्ता हैं। भारतीय शास्त्रीय नृत्य में उनके योगदान के लिए, भारत सरकार ने उन्हें 2004 में पद्मश्री के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया। भारती शिवाजी ने अमेरिका, लैटिन अमेरिका, अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया, यूरोप और मेक्सिको समेत पूरी दुनिया में व्यापक रूप से प्रदर्शन किया है। 2002 में, उन्हें स्कॉटलैंड, ब्रिटेन में प्रतिष्ठित इंटरनेशनल एडिनबर्ग फेस्टिवल में प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया गया था, जहां यह अपने इतिहास में पहली बार था कि मोहिनीयाट्टम प्रस्तुत किया गया था और दर्शकों और कला आलोचकों द्वारा बहुत अच्छा प्राप्त किया गया था।

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