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मिट्टी का दीया

बल्ब की रोशनी में,
न गति है न चेतना है,
न है कोई प्रतीक और,
न कोई देशना है।।

दिए में निहित है कला,
मिट्टी की सुगंध औ,
कपकपाती लौ में,
होती हवा की स्पंदना है।।

मिटाकर स्वंय को,
करते रहो उजाला,
जलती हुई बाती में,
छिपी यह प्रेरणा है।।

उठते रहो सतत,
व्योम की ऊंचाई तक,
उर्ध्वगामी लौ “विनोदम्”,
करती ये घोषणा है।।