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लोकतांत्रिक संस्कृति का पतन

लोकतंत्र को जनता के द्वारा,जनता के लिए और जनता से जाना जाता है अर्थात शासक और शासित के संबंध परस्पर विश्वास पर आधारित होता है।विशुद्ध रूप से लोकतांत्रिक संस्कृति से आशय है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,तार्किक क्षमता के आधार पर निर्णय, वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित सोच,कान भरो राजनीति से तटस्थता,मौलिक अधिकारों की सुरक्षा (अतिक्रमण के स्थिति में माननीय उच्चतम न्यायालय और माननीय उच्च न्यायालय में जाने का अधिकार),विरोध/समालोचना करने का अधिकार दबावमुक्त रहकरके कार्य करने की आजादी,चयन की स्वतंत्रता और मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार सभी लोकतांत्रिक संस्कृति के आवश्यक अव्यय है।वैश्विक परिदृश्य में 1920के पश्चात “आत्मनिर्णय का अधिकार” लोकतंत्र और लोकतांत्रिक आदर्शो को बढ़ाने में सहयोगी सिद्ध हुए थे;लेकिन व्यक्तिगत स्वार्थ,राजनीतक महत्वकांक्षा के कारण एडोल्फ हिटलर (नाजीवादी विचारधारा का समर्थक )और बेनिटो मुसोलिनी(फासीवादी विचारधारा का समर्थक) ने लोकतांत्रिक मूल्यों और आदर्शो की दिशा में बलात कार्यवाही से इस लोकतांत्रिक संस्कृति और लोकतंत्र के पर्व को मृतप्राय कर दिए।

द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात राष्ट्र- राज्यों में लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाने के लिए बौद्धिक और आत्मीय (राष्ट्रीय)स्तर पर जागरूक किए;और राष्ट्र – राज्यों में लोकतांत्रिक मूल्यों और कारकों का उन्नयन हुआ। दुर्भाग्यवश वर्तमान में शक्तिशाली देश(राज्य) इस संस्कृति के नाश करने पर ही अपनी विवेकी इच्छा की सहमति दे रहे है।फ्रीडम हाउस(गैर सरकारी संगठन)की अद्यतन प्रतिवेदन के अनुसार संसार में 20%देशों (राज्यों)में ही वास्तविक लोकतंत्र(जनता के द्वारा निर्वाचित/वैधता पूर्ण लोकतंत्र)है;क्योंकि इन व्यवस्थाओं में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, भाषण की स्वतंत्रता ,सूचना प्राप्त करने कि स्वतंत्रता , एकांत का अधिकार और सुख की साधना (जीवन का अधिकार+स्वतंत्रता का अधिकार+पूजा(स्वतंत्र) होकरके करने का अधिकार)प्राप्त है। जिस देश (राज्य) को लोकतांत्रिक आदर्शो और मूल्यों को सुरक्षित करने की नैतिक जिम्मेदारी है,वह ही लोकतंत्र की हत्या कर रहे हैं।

चीन जो संयुक्त राज्य सुरक्षा परिषद(विश्व कार्यकारिणी) का स्थाई सदस्य है। चीन में शी जिनपिंग ने 20वी साम्यवादी दल कांग्रेस(कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस) में अपने आप को आजीवन शासक बनाए रहने पर वैधता(दिखावटी) लिए(विमर्श लोकतंत्र,आंतरिक लोकतंत्र और जन भावनाओं की हत्या कर दिए) वैश्विक स्तर पर चीन स्व घोषित लोकतंत्र का जीता जागता उदाहरण है,वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के अतिक्रमण करने में भी शुमार है।वैश्विक स्तर पर संयुक्त समाजवादी सोवियत संघ(अब रूस) जो शीतयुद्ध के दौरान द्वितीय संसार कहा जाता था,जिसने यूक्रेन पर हमला करके वैश्विक लोकतांत्रिक संस्कृति को क्षरण कर रहा हैं,विश्व को आर्थिक संकट में डाल दिया है ,और सामरिक संकट को उत्पन्न कर दिया है।शक्ति संतुलन के सिद्धांत को चुनौती दे रहा है,संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांत को असफल कर रहा है,शांति के मौलिक सिद्धांतो को भी अतिक्रमण कर रहा है।संयुक्त राज्य अमेरिका ,जो लोकतंत्र का आदर्श माना जाता है और सुरक्षा परिषद का प्रबल और स्थायी सदस्य देश(राज्य) है, जहा पर हताशा,निराशा और अवसाद में तेज़ी से वृद्धि हो रही है।

एक सर्वे में बताया गया है कि संसार के 193 सभ्य राष्ट्र- राज्य (संयुक्त राष्ट्र के सदस्य) में 55% राष्ट्र- राज्य (देश) अपने को लोकतांत्रिक मानते है;लेकिन जमीनी धरातल पर मतदान की प्रक्रिया एक नौटंकी और दिखावटी है।एक लोकतान्त्रिक राजनीतिक व्यवस्था में निर्वाचित नेता और उसकी सरकार की लोककल्याण और राष्ट्र प्रहरी की भूमिका होती है,और अपने नागरिकों से जमीनी लगाव होता है, पलटू राम जैसी सोच और भावना नहीं होती है जो आजकल के नेताओं,जनप्रतिनिधियों का गुण हो चुका है;बल्कि जनता जनार्दन के दुःख की समझ,धर्म , जाति ,लिंग और संप्रदाय से तथस्थ सोच ,उसकी तार्किक क्षमता, वैज्ञानिक और उदारवादी चिंत्तन से ही लोकतंत्र की वास्तविक स्तर आकलित की जाती है।

(डॉ. सुधाकर मिश्रा,राजनीतिक विश्लेषक और दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक आचार्य है।)