आप यहाँ है :

पारदर्शिता की ओर अग्रसर होती कॉलेजियम

कॉलेजियम व्यवस्था’ वह प्रक्रिया है ,जिससे उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण/ तबादले किए जाते हैं। कॉलेजियम व्यवस्था का पूरा मामला तब शुरू हुआ जब 25 नवंबर को संघीय कानून मंत्री श्री किरण रिजुजू ने न्यायधीशों की नियुक्ति करने की प्रक्रिया को “संविधान से परे “या” एलियन” बता दिए थे। विधि मंत्री का कहना था कि” सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी समझ और न्यायालय के आदेश को आधार बनाते हुए कॉलेजियम बनाया है ” भारत का संविधान जो भू- भाग का सर्वोच्च विधि है, सरकार व शासन के लिए शक्ति का मौलिक स्रोत है, शासक एवं शासित के परस्पर संबंधों का मौलिक प्रलेख है, कानूनी संप्रभुता का प्रतीक है। इस सर्वोच्च/उच्त्तम प्रलेख में कॉलेजियम’ का जिक्र नहीं है ।

जनता( लोकप्रिय संप्रभुता ),मीडिया एवं विधि विशेषज्ञों के द्वारा सवाल उठाया जाता है कि
1. कॉलेजियम व्यवस्था क्या है?
2. कॉलेजियम कैसे काम करती है ?;और

3. कॉलेजियम को लेकर सरकार की आपत्ति क्या है?
कई बार मीडिया, कानूनी वहस, टेलीविजन के बहस, बौद्धिक व्यक्तियों के बहस में यह सवाल उठता है या उठाया जाता है कि सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति महोदय के चयन प्रक्रिया में भयंकर भाई – भतीजावाद है, जिसे न्यायपालिका में “चाचाजी संस्कृति “(uncle culture)कहते हैं; अर्थात ऐसे व्यक्तियों को न्यायमूर्ति/ न्यायधीश चुने जाने की संभावना व संभाव्यता अधिक होती है जिनकी जान पहचान के लोग न्यायपालिका में पहले से हैं या ऊंचे पदों पर आसीन हैं।

कॉलेजियम भारत के सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान मुख्य न्यायाधीश और चार वरिष्टता वाले न्यायाधीशों का एक समूह है, ये संवैधानिक व्यक्तित्व मिलकरके तय करते हैं कि उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति कौन होगा ?उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियन की सिफारिश से होती है, जिसमें उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति और संबंधित राज्य के राज्यपाल होते हैं। कॉलेजियम बहुत पुरानी प्रणाली नहीं है और इसके अस्तित्व में आने के लिए उच्चतम न्यायालय के तीन फैसले जिम्मेदार हैं जिन्हें “जजेस वाद” नाम से जाना जाता है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट के अंदर 1993 एवं 1998 के फैसले से लागू है ,लेकिन 3 अक्टूबर ,2017 के पहले किसी को भी पता नहीं चलता था कि कॉलेजियम ने किस आधार पर नियुक्ति की सिफारिश की है? प्रक्रिया पहले भी थी और उसका पालन भी होता था; लेकिन आम जनता के बीच सार्वजनिक कुछ नहीं था ।

उच्चतम न्यायालय ने 3 अक्टूबर ,2017 को पारदर्शिता की ओर पहला कदम बढ़ाया और निर्णय लिया कि कॉलेजियम द्वारा सरकार को भेजी गई नियुक्ति की सिफारिशें सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर सार्वजनिक की जाएगी ,और तब से सुप्रीम कोर्ट द्वारा कॉलेजियम द्वारा लिए गए निर्णय को ‘ एक नोट’ को वेबसाइट पर डाला जाने लगा। इस वर्ष से सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाते हुए सार्वजनिक तौर पर चयन प्रक्रिया और चयन का आधार बताना शुरू कर दिया है। 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने इलाहाबाद, दिल्ली ,मद्रास एवं मुंबई हाईकोर्ट के एडिशनल जजों को स्थाई करने की सिफारिशों में बताया है कि राज्य के मुख्यमंत्री और राज्यपाल ने इन सिफारिशों से सहमति व्यक्त की है। इसके पश्चात कॉलेजियम ने स्थायी नियुक्ति के लिए विचाराधीन नामों को पद के योग्य होने और उनके पद की उपर्युक्त को कसौटी पर योग्य पाया है।

(लेखक प्राध्यापक व राजनीतिक विश्लेषक हैं)

image_pdfimage_print


Leave a Reply
 

Your email address will not be published. Required fields are marked (*)

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

सम्बंधित लेख
 

Get in Touch

Back to Top