Friday, March 29, 2024
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Homeप्रेस विज्ञप्ति‘भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने के लिए आगे आएं’- श्री होसबाले

‘भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने के लिए आगे आएं’- श्री होसबाले

भोपाल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने आज यहां ‘21वीं सदी में शिक्षक शिक्षा का कायाकल्प’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में शिक्षा जगत से जुड़े सभी लोगों से आह्वान किया कि वे भारत को पुनः विश्व गुरु बनाने के लिए आगे आयें। आज हमारे पास नीति है, परिवेश भी है। यदि हम संकल्प लेंगे तो आने वाले 15-20 वर्षों में यह संभव है। समाज को साथ लेने के लिए सकारात्मक आन्दोलन करें।

श्री होसबाले संगोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में समापन समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान, मध्यप्रदेश शासन और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस संगोष्ठी में समापन सत्र में प्रदेश के स्कूल शिक्षा राज्य मंत्री श्री इंदर सिंह परमार, एन.सी.टी.ई. के अध्यक्ष श्री विनीत जोशी, विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष श्री कैलाश चंद्र शर्मा व चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के कुलपति श्री नरेन्द्र कुमार तनेजा, उपाध्यक्ष मंजूश्री सरदेशपांडे, प्रदेश संयोजक डॉ. शशिरंजन अकेला भी मंच पर उपस्थित रहे।

इस अवसर पर श्री होसबाले ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है और इसमें लाखों लोगों ने योगदान दिया है। विश्व भर के लोकतांत्रिक देशों में कहीं भी ऐसी नीति नहीं है जिसको बनाने में इतनी बड़ी संख्या में लोगों की भागीदारी हो। यह हमारे संविधान की तरह ही इसे जनता ने स्वयं के लिए बनाया है। पूर्व में भी शिक्षा जगत को लेकर अच्छी नीतियां बनाईं गईं लेकिन उनका क्रियान्वयन ठीक तरीके से नहीं हो पाया। आज समाज में यह संकल्प दिखाई देता है कि हम भारत को विश्व के अन्य देशों के मुकाबले आगे रखें।

उन्होंने कहा कि विद्या वैश्विक है, यह सार्वदेशिक है। शिक्षक अपने विद्यार्थी को मात्र एक चौथाई ही सिखाता है लेकिन वह बाकी तीन हिस्सों के लिए भी उसके मन में भावना तैयार करता है, वातावरण का निर्माण करता है। दूसरा चौथाई भाग अपनी बुद्धि से, तीसरा चौथाई भाग अपने सहपाठियों से सीखता है और अंतिम चौथा भाग वह कालक्रम में सीखता है। उन्होंने कहा कि समाज, सरकार और शिक्षण संस्थाओं की जिम्मेदारी है कि शिक्षक को पर्याप्त सम्मान मिले। आज कहा जाता है कि शिक्षकीय दायित्व प्रोफेशन है। शिक्षण व्यवसाय या नौकरी नहीं है। यह तपस्या, साधना और मिशन है। यदि शिक्षक को समाज में अलग से महत्व चाहिए तो उसे राष्ट्रधर्म के अनुसार जीना होगा। हमारे समाज में ऐसे हजारों उदाहरण हैं, जिसमें ऐसे शिक्षकों को विद्यार्थी अंतिम सांस तक याद रखते हैं। उन्होंने शिक्षकों से आह्वान करते हुए कहा कि वे शिक्षण संस्थाओं में गुणवत्ता बढ़ाने के लिए प्रयास करें। यह वर्तमान पीढ़ी का दायित्व है कि भारत की शिक्षण प्रणाली एक आदर्श मॉडल के रूप में स्थापित हो और विश्व के अन्य देश इसकी चर्चा करें।

विद्या भारती शिक्षक शिक्षा के मानक बनाने के लिए सुझाव दे- श्री जोशी

एन.सी.टी.ई. के चेयरमैन श्री विनीत जोशी ने कहा कि उनकी संस्था अब आगे शिक्षण व्यवस्था के मानक को तैयार करने का कार्य करेगी। उन्होंने विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान से इस बारे में सुझाव देने का आग्रह भी किया। उन्होंने बताया कि चार वर्षीय बीएड पाठ्यक्रम तैयार हो चुका है और इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू किया जाएगा। साथ ही यूजीसी ने ‘एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट’ बनाने के लिए रेगुलेशन बना लिया है और इसे भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के साथ मिलकर एक प्लेटफार्म पर लांच करने की तैयारी चल रही है। केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा आयोजित किये जाने का प्रस्ताव भी विचाराधीन है, जिसे आने वाले सत्र से शुरू किये जाने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि दो दिवसीय संगोष्ठी की अनुशंसाओं का अध्ययन कराकर उसे लागू करेंगे।

शिक्षा पर भारत की अवधारणा उच्च और व्यापक है- प्रो. तनेजा

दो दिवसीय संगोष्ठी की रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के कुलपति प्रो. नरेन्द्र कुमार तनेजा ने कहा कि शिक्षा को लेकर पश्चिम की अवधारणा एकांगी है। भारत की अवधारणा विस्तृत एवं उच्च है। शिक्षा का उद्देश्य सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को स्थापित करना है। आज शिक्षा को पैकेज के साथ जोड़कर हम देखते हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति बहुविषयक शिक्षक शिक्षा को व्यावहारिक रूप प्रदान करेगी। इसके लिए नवाचार को आवश्यक अंग बनाना चाहिए। आज शिक्षा क्षेत्र में शोध सीमित संख्या में हो रहे हैं उन्हें भी बढ़ाने की आवश्यकता है। समाज में यदि शिक्षक को सम्मान मिलेगा तो प्रतिभावान युवक शिक्षक बनेंगे।

इस अवसर पर विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष श्री कैलाश चंद्र शर्मा ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को क्रियान्वित किये जाने को लेकर संस्थान की ओर से दस सदस्यीय स्थायी समिति बनाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के साथ 28 अन्य क्षेत्रीय संगोष्ठियों में प्राप्त सुझावों को सभी नियामक संस्थाओं को भेजा जाएगा।

कार्यक्रम का संचालन विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान के मध्यप्रदेश संयोजक डॉ. शशिरंजन अकेला ने किया। अतिथियों का स्वागत डॉ. एस.पी.एस.राजपूत, श्री अभिषेक त्रिपाठी, डॉ. भारती सातनकर एवं श्री जी. मधुसूदन ने किया। आभार प्रदर्शन विद्या भारती के मध्य भारत प्रांत प्रमुख डॉ. रामकुमार भावसार ने किया।

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