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जीव चेतना से मानव चेतना में स्थानांतरण जरूरी-गणेश बागडि़या

भोपाल। शिक्षा की भूमिका मानव में निश्चित मानवीय आचरण से जीने की योग्यता विकसित करना है। आज साक्षरता बढ़ रही है साथ ही साथ मानव का अमानवीय व्यवहार भी बढ़ता जा रहा है। यदि शिक्षा सही होगी तो मानव का व्यवहार भी मानवीय होगा। हम अपना जीवन केवल सुविधा के लिए जी रहे है और ऐसा जीवन जीव चेतना में जीना कहलाता है। जीव चेतना से मानव चेतना में स्थानांतरण जरूरी है और यह केवल शिक्षा के माध्यम से संभव है।

यह विचार माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में आयोजित व्याख्यान में प्रख्यात चिंतक, विचारक एवं प्राध्यापक श्री गणेश बागडि़या ने व्यक्त किये। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर श्री बृजकिशोर कुठियाला ने की।

श्री बागडि़या ने कहा कि आज परिवारों के सामने सबसे बड़ा संकट संबंधों के निर्वाह का है। हम भौतिक सुख-सुविधाओं के लिए संबंधों का निर्वाह भूल रहे है। जबकि मानव के लिए सुविधा और संबंध दोनों आवश्यक है। संबंध पूर्वक जीने के लिए समाज आवश्यक है। इस तरह समझ, संबंध एवं सुविधा का आपसी अंतर संबंध है और इसे ही मानवीय चेतना में जीना कहा जाता है। मानव और पशु के बीच अंतर यह है कि यदि पशु को सुविधा मिल जाएं तो वह आराम की मुद्रा में आ जाता है। इसके विपरीत यदि मनुष्य को सुविधा मिल जाएं तो वह और सुविधा के बारे में सोचने लगता है। इसका मूल कारण यह है कि मानव को कितनी सुविधा चाहिए वह इसका आकलन किये बिना सुविधा जुटाने में लगा है।

मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए समझ पहला मुद्दा है। मानव एवं प्रकृति के साथ संबंध पूर्वक जीना दूसरी आवश्यकता है। इससे ही हम परिवार से विश्व परिवार की ओर बढ़ सकते है। मूलतः आई. आईटियन एवं विगत तीन दशकों तक तकनीकी शिक्षा जगत से जुड़े रहने वाले श्री गणेश बागडि़या देश में जीवन विद्या शिविर आयोजित करने के लिए पहचाने जाते है एवं विगत अनेक वर्षो से शिक्षा में मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए प्रयासरत है।

अध्यक्षीय उद्बोधन में बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि हम जैसा समाज बनाना चाहते है, वैसा बन नहीं पा रहा है और इससे पूरा विश्व चितिंत है। एक बेहतर समाज की स्थापना के लिए दो तरह के प्रयास हो सकते है। पहला जो गड़बडि़या है उन्हें ठीक किया जाए अर्थात रिपेयर वर्क और दूसरा सम्पूर्ण व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन करना। यह कार्य शिक्षा एवं संस्कारों के माध्यम से ही संभव है। इसके लिए व्यक्तिगत स्तर पर, संस्थागत स्तर पर एवं सामाजिक स्तर पर प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। कार्यक्रम में वरिष्ठ शिक्षा अधिकारी श्री धीरेन्द्र चतुर्वेदी, शिक्षविद् श्री अजय सूद, विश्विविद्यालय के कुलाधिसचिव श्री लाजपत आहूजा समेत विश्वविद्यालय के समस्त शिक्षक एवं नगर के शिक्षा जगत से जुड़े लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय के विज्ञापन एवं जनसम्पर्क विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. पवित्र श्रीवास्तव ने किया।

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