1

2022 का रक्षा बजट: भारत की सुरक्षा निर्धारित करते हुए आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाना

भारत की सुरक्षा ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए रक्षा बजट में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई. क्या यह रक्षा अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिये होगा

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में घरेलू रक्षा उद्योग को प्राथमिकता और अनुसंधान व विकास को मज़बूत करने की ज़रूरत का उल्लेख करते हुए रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता का बिगुल फूंका है. पिछले कुछ बजटों में रक्षा क्षेत्र सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है. सरकार ने लगातार इस क्षेत्र में बजटीय आवंटन के सबसे बड़े हिस्से (13-14 प्रतिशत) को खर्च किया है. इस साल भी यही स्थिति है, जिसमें 525,166 करोड़ रुपये रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence, MoD) को आवंटित किए गए हैं.

पूर्वी लद्दाख में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के साथ सीमा पर आमना-सामना जो साल 2020 के मध्य में शुरू हुआ था अब गतिरोध का रूप ले चुका है. इस मुद्दे पर ताज़ा दौर की बातचीत में बेहद कम प्रगति हुई है.

बजट में यह वृद्धि कई सुरक्षा घटनाक्रमों की पृष्ठभूमि में हुई है. पूर्वी लद्दाख में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के साथ सीमा पर आमना-सामना जो साल 2020 के मध्य में शुरू हुआ था अब गतिरोध का रूप ले चुका है. इस मुद्दे पर ताज़ा दौर की बातचीत में बेहद कम प्रगति हुई है. इस बात के पूरे संकेत हैं कि यह गतिरोध लंबे समय तक चलने की संभावना है. इसलिए, भारतीय सेना को इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को मज़बूत करना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पीएलए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर आगे बढ़ने का दुस्साहस न कर सके. कश्मीर में, इस बात के संकेत हैं कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूह अपनी गतिविधियों को बढ़ा सकते हैं, अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की जीत उत्प्रेरक के रूप में काम कर रही है. इन गतिविधियों ने यह ज़रूरी कर दिया है कि भारत को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराए जाएं.

लेकिन इस सब की पृष्ठभूमि में मोदी सरकार की ओर से सैन्य सुधारों और रक्षा औद्योगीकरण के लिए लगातार किया जा रहा काम भी है. पिछले अक्टूबर में, सरकार ने आयुध निर्माण बोर्डों यानी ओएफबी (Ordnance Factory Boards, OFB) को सात नई रक्षा क्षेत्र से जुड़ी सार्वजनिक इकाइयों के रूप में पुनर्गठित किया. आयुध निर्माण बोर्ड के लंबित निगमीकरण को हासिल करने के बाद, सरकार हथियारों, गोला-बारूद, बख्तरबंद वाहनों और कपड़ों के उत्पादन में दक्षता हासिल करने की उम्मीद कर रही है. इससे रक्षा निर्यात को भी बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. फिलीपींस को ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल प्रणाली बेचने के लिए हाल ही में 375 मिलियन अमेरिकी डॉलर का सौदा भारतीय रक्षा उद्योग के महत्वपूर्ण है. इस संदर्भ में रक्षा बजट का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है.

वित्त वर्ष 2021-22 में एक सकारात्मक विकास यह है कि तीनों सेवाओं ने कथित तौर पर घरेलू रक्षा उपकरणों पर अपने पूंजीगत परिव्यय का 64 प्रतिशत खर्च किया. यह, निश्चित रूप से, आयातित उपकरणों पर निर्भरता को कम करने के लिए सरकार के निरंतर दबाव का परिणाम है.

वित्त मंत्री ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए रक्षा मंत्रालय को 525,166.15 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. यह 46,970 करोड़ रुपये या पिछले वर्ष के 478,196 करोड़ रुपये के आवंटन से 10 प्रतिशत अधिक है और हाल के वर्षों में रक्षा बजट में सबसे बड़ी वृद्धि है.

लेकिन यह बजटीय वृद्धि संसाधनों की उपलब्धता की चुनौती को छुपाती है. पिछले एक दशक में रक्षा बजट में सालाना औसतन नौ प्रतिशत की दर से बढ़ोत्तरी हुई है. यह वृद्धि बमुश्किल मुद्रास्फीति और तीनों सेवाओं की मांगों को पूरा कर रही है.

पूंजीगत परिव्यय के लिए, मौजूदा बजट में 152,000 करोड़ रुपये रखे गए हैं, जो तीनों सेवाओं की अनुमानित मांगों से काफ़ी कम है. 2021-22 के लिए, रक्षा संबंधी स्थायी समिति (Standing Committee on Defence) ने नोट किया था कि सेना, नौसेना और वायु सेना के लिए अनुमानित और आवंटित बजट के बीच का अंतर क्रमशः 14,960.2 करोड़ रुपए, 37,667.23 करोड़ रुपए और 23,925.79 करोड़ रुपए था, जिसमें नौसेना सबसे अधिक प्रभावित थी.

साल 2018 में, लोकसभा की रक्षा संबंधी स्थायी समिति ने सिफारिश की थी कि रक्षा मंत्रालय को सकल घरेलू उत्पाद के तीन प्रतिशत के बराबर बजट आवंटित किया जाना चाहिए. वास्तव में, रक्षा व्यय, जीडीपी के लगभग दो प्रतिशत पर स्थिर रहा है. चूंकि कोविड-19 अभी भी भारत के आर्थिक विकास को प्रभावित कर रहा है, अपर्याप्त आवंटन का यह मुद्दा आने वाले कुछ सालों तक बना रहेगा ऐसी उम्मीद है.

इस बाधा को दूर करने के लिए, 2020 की रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (Defence Acquisition Procedure of 2020) ने कुछ उपकरणों को “संपत्ति के स्वामित्व के बिना संपत्ति रखने और संचालित करने” के साधन के रूप में पट्टे पर देने की अनुमति दी है. इसके तहत इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि लीज़िंग “समय-समय पर किराये के भुगतान के साथ विशाल प्रारंभिक पूंजी परिव्यय को प्रतिस्थापित करने के लिए उपयोगी है”. नौसेना ने आगे बढ़कर इस प्रावधान का इस्तेमाल समुद्री निगरानी उद्देश्यों के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका से दो एमक्यू-9बी (MQ-9B) सी गार्जियन ड्रोन को पट्टे पर देकर किया है.

वित्त वर्ष 2021-22 में एक सकारात्मक विकास यह है कि तीनों सेवाओं ने कथित तौर पर घरेलू रक्षा उपकरणों पर अपने पूंजीगत परिव्यय का 64 प्रतिशत खर्च किया. यह, निश्चित रूप से, आयातित उपकरणों पर निर्भरता को कम करने के लिए सरकार के निरंतर दबाव का परिणाम है. अगस्त 2020 के बाद से सरकार दो नकारात्मक आयात सूचियाँ लाई हैं जिनके तहत 200 से अधिक हथियारों और प्लेटफार्मों के आयात पर उत्तरोत्तर प्रतिबंध लगाने की उम्मीद की जा रही है. रक्षा मंत्रालय की गणना के मुताबिक इसके चलते अगले छह से सात सालों में घरेलू रक्षा उद्योग के लिए चार लाख करोड़ रुपये तक के अनुबंध पैदा होंगे. हालांकि, सेना के भीतर इस बात को लेकर संशय बना हुआ है कि क्या भारतीय रक्षा उद्योग इन उपकरणों को समय पर उपलब्ध करा पाएगा. उल्लेखनीय रूप से, वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में घरेलू उपकरणों के लिए पूंजी खरीद का 58 प्रतिशत 70,221 करोड़ रुपए के रूप में आरक्षित किया गया था. मौजूदा बजट में अब इसे बढ़ाकर 68 फीसदी कर दिया गया है.

आत्मनिर्भरता की कोशिश में क्या मदद कर सकता है और कौन से क़दम तेज़ी ला सकते हैं?

रक्षा अनुसंधान और विकास को मज़बूत करना भारत के लिए महत्वपूर्ण है. सरकार ने स्टार्ट-अप सहित निजी क्षेत्र को अनुसंधान एवं विकास में शामिल होने के लिए लगातार प्रोत्साहित किया है. उसने घरेलू स्तर पर इनोवेशन यानी नवाचार के तंत्र को बढ़ावा देने और उसके इस्तेमाल के लिए ‘इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस’ (‘Innovations for Defence Excellence) जैसी पहल भी शुरू की है. वित्त वर्ष 2022-23 का बजट निजी क्षेत्र के लिए रक्षा अनुसंधान को बढ़ावा देने वाला था जिसमें बजट का 25 प्रतिशत इस के लिए अलग रखा गया. वित्त मंत्री ने नई प्रौद्योगिकियों के परीक्षण और उन्हें प्रमाणित करने के लिए निजी क्षेत्र के लिए एक नया निकाय स्थापित करने की योजना की भी घोषणा की है.

महाद्वीप पर चीन का बढ़ता दबदबा, समुद्री क्षेत्र में पाकिस्तान की नकारात्मक गतिविधियां और अस्थिर अफ़ग़ानिस्तान के साथ, भारत के लिए खुद को सुरक्षित रखना और सुरक्षा वातावरण बनाए रखना एक जटिल प्रयास है. यह बजट, रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करता है और हाल के वर्षों की उपलब्धियों और आगे बढ़ने का वादा करता है.

साभार https://www.orfonline.org/hindi से