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मोदी सरकार को दिल्ली एग्रीमेंट 1952 की वैद्यता पर भी अपना मत साफ़ करना चाहिए

भारत का संबिधान लिखने के बाद और भारत की रियासत जम्मू कश्मीर के लिए जम्मू कश्मीर के विधान के लिखने के पहले  भारत के उस समय के कांग्रेस के शीर्ष नेता जवाहर लाल नेहरु ने उस समय के महाराजा हरी सिंह द्वारा नियुक्त किए गए प्रधानमंत्री शेख मोहमद  अब्दुल्लाह के साथ 1952 में एक समझौता किया था . इस समझौता को जवाहर लाल जी ने प्रधान मंत्री के नाते अपनी सरकार के सामने भी रखा था . रिकार्ड्स में कहीं भी कोई ऐसा वर्णन मुझे नहीं मिला है जिस में उस समय के किसी शीर्ष नेता या मंत्री ने या संसद ने इस कथित समोझोते पर कोई प्रश्न खड़े किए हों. हाँ इतना जरूर है कि इस समझोते पर न ही महाराजा हरी सिंह  और न ही उन के रेजेंट की कोई मोहर  लगी थी. लोग इस समझोते की बैधयता पर प्रश्न करते रहे है और करते भी हैं. कश्मीर घाटी के नेता और नेशनल कांफ्रेंस इस समझोते को भारत की जम्मू कश्मीर रियासत के भारत गणराज्य के साथ संवैधानिक सम्बंधों का मूल आधार मानते हैं. जम्मू कश्मीर की सरकारें इस समझोते का अकसर अपने डाक्यूमेंट्स में जिकर करती रही हैं. भारत सरकार ने भी कभी भी अधिकारिक स्तर पर इस के  होने का या इस की कोई मूल वैधयता  का खंडन नहीं किया है. और न ही मई 2014 में दिल्ली में आई भाजपा सरकार ने इस पर अभी तक कोई वक्तब्य दिया है और न ही इस की अधिकारिक स्थिति पर कोई तथ्य जनता के सामने रखे हैं जब की  भारतीय जनता पार्टी ( जन संघ) ही एक मात्र भारत का राष्ट्रीय दल आज तक इस अनुबंध ( अग्रीमेंट) की किसी अधिकारिक या  सम्बिधानिक मान्यता पर प्रश्न खड़े करता रहा है. इस लिए इस को भारत सरकार के नजरिये  से अधिकारिक मान कर ही आगे चर्चा करें गे.

इस अनुबंध जिस को 1952 दिल्ली अग्रीमेंट के नाम से जाना जाता है में लिखी गई कुछ बातों के आधार पर ही लगता है कुछ बातें भारत के संबिधान का प्रतक्ष या अप्रत्क्ष डंग से हिस्सा बनी, कुछ बातों को नज़र में रख कर भारत के राष्ट्रपति ने 1954 में  जम्मू कश्मीर से संबंधित  एक सबिधानिक निर्देश दिया और जम्मू कश्मीर के 1956/57  में अपनाये गए विधान की कुछ धाराएं लिखी गई जो आज तक कई प्रकार के विवादों का कारण बनी हुई हैं. आज के दिन अगर जम्मू कश्मीर में हालात शांति पूर्ण नहीं हैं और विदेशी शक्तियां भी इस राज्य में असथ्रिता बनाने में कुछ कामयाब हुई हैं इस के लिए  यह कहना भी गलत नहीं होगा की जम्मू कश्मीर के कुछ मुख्यधारा के दलों या नेताओं ने जिस प्रकार से 1952 के दिल्ली अग्रीमेंट से जुड़े विवादों में जम्मू कश्मीर के लोगों को उलझाये रखा है एवं जिस प्रकार से दिल्ली की सरकारों ने आम आदमी तक तथ्य ले जाने में सम्भेदन्हीनता दर्शायी है  भी कुछ सीमा तक इस का कारण हैं. जिन विषयों को जम्मू कश्मीर राज्य को पिछले ६० साल से विवादों और दूरियों के घेरे में रखा गया है उन में स्टेट सब्जेक्ट या जम्मू कश्मीर का स्थाई निबासी का दर्जा , भारत के बे नागरिक  जो जम्मू कश्मीर के स्थाई निबासी हों उन के लिए सरकारी सेवा और सथाई सम्पति के ख़ास अधिकार, जम्मू कश्मीर का राज्य चिन्ह ( राज्य ध्बज) और जम्मू कश्मीर राज्य सम्बंदित लिखे जाने बाले सम्बेधानिक प्रभ्धानों का डंग जेसेविषय कहे जा सकते हैं.  Par bharat ki anay riasatoan ke nagrikoan ne ( JS / SS/ BJP ko chod kar ) eis baat ke liyae apnea netaon ko kabhi nahin poocha, jab ki oon ko poochnae ki jaroorat jeeada thee. बीजेपी ने भी पूर्ण सत्ता में  आने के बाद इस दिशा में कोई ख़ास दृष्टि डाली हो इस प्रकार के अभी तक कोई संकेत नहीं मिले हैं.

भारत के संबिधान के अनुच्छेद  370 को अकसर विवादों के घेरे में धकेला जाता है. इस में कोई शक नहीं है कि अनुच्छेद  -370  को सम्बिधान में डालने पर प्रश्न खड़े किए जा सकते हैं और इस के अस्थायी होने पर भी 67 साल बाद भी मजूद होने पर चर्चा होनी चाहिए पर इस के अस्तित्व पर प्रश्न करना  विधान की दृष्टि से शायद उचित न हो. जम्मू कश्मीर से सम्बंदित जिन कुछ विषयों की चर्चा ऊपर की गई है उन के लिए अनुषेद 370 को ही अधिकतर लोग दोषी ठहराते हैं  जब कि ऐसा कहना पूर्णतया उचित नहीं है. अनुच्छेद  370 के आलावा भारत के संविधान में एक और भी अनुच्छेद  है जो इस प्रकार के विवादों के लिए दोषी ठहराया जा सकता है. और यह अनुच्छेद  है 35A . अनुच्छेद 370 की सम्बेधानिक वैधयता पर प्रश्न खड़े नहीं किए जा सकते पर अनुच्छेद 35A की सम्बेधानिक वैद्यता पर प्रश्न खड़े किए जा सकते हैं. इस अनुच्छेद  के जन्म को ही असंवैधानिक कहा जा सकता है और इस पर ऊच्तम पीठ द्वारा विचार करने की मांग की जा सकती है. जब मैंने इस अनुच्छेद  पर नजदीक से नज़र डाली तो पाया बहूत से निति के पंडित भी इस अनुच्छेद  के बारे में अधिक नहीं जानते थे .

भारत के संबिधान में अनुछेद 35 A ( 1954) को भारत की रियासत जम्मु कश्मीर  के विधान के  लिखने  से पहले ही डाल दिया गया था. पर  जिस बात पर विशेष ध्यान देने की अवश्यकता है बह यह है कि यह अनुच्छेद भारत की संबिधान सभा ने न लिखा था और न ही पारित किया था; और न भारत की संसद ने संशोधन कर के इस को संबिधान में डाला था  . अपितु यह अनुच्छेद राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 370 का सहारा ले कर डाला गया था. इस अनुच्छेद को संबिधान में डालना एक तरह से संबिधान में संशोधन करने जैसा ही है और अनुच्छेद -370 के अंतरगत राष्ट्रपति  को संबिधान में संसोधन करने का अधिकार नहीं मिलता है. कोई भी अगर इस अनुच्छेद  को ध्यान से पड़ेगा तो उस के लिए यह समझाना कठिन नहीं होना चाहिए की अगर संबिधान सभा को एसा करने के लिए सुझाव दिया जाता तो वे कभी ऐसा नहीं करती. इस लिए 1954 में संबिधान ( जम्मू कश्मीर को लागु होना) आदेश 1954 स.आ.48 मई 14 1954 राष्ट्रपति द्वारा संबिधान के अनुच्छेद 370 के खंड -1 में राष्ट्रपति को प्राप्त शक्तिओं का नाम ले कर अनुच्छेद 35 के बाद संबिधान में अनुच्छेद 35A के नाम से एक नया अनुच्छेद डाला गया जब कि इस प्रकार की कोई भी शक्ति सविधान में संशोधन करने की अनुच्छेद 370 राष्ट्रपति को नहीं देता है और कोई भी संशोधन अनुच्छेद 368 के अंतर्गत ही किया जा सकता है. यह ही नहीं इस नए अनुच्छेद को भारत के संबिधान के मुख्य भाग में न रख कर के  परिशिष्ट-1  के रूप में संविधान के साथ रखा गया. शायद यही कारण है कि किसी चिन्तक और विधि विश्लेषक  का ध्यान इस के सबिधानिक पहलुओ की और नहीं गया.

अनुच्छेद -35A  की छाया में ही जम्मू कश्मीर विधान सभा एवं जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर  में रहने बाले भारत के नागरिकों जो जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासी की श्रेणी में आते हैं और भारत के अन्य नागरिकों के बीच भेदभाव किया जा सकता है . जम्मू कश्मीर के विधान की धारा -6, धारा-8, धारा-9 , धारा-51, धारा-127 और धारा -140   अनुच्छेद -35A के अंतर्गत ही संवैधानिक दृष्टी से आज नयायपालिका के सामने मान्य हैं  और इन के एक तरह से भारत के समविधान के अनुच्छेद  14 (विधि के समक्ष समता -Equality before law), 15 ( धर्म, मूल बंश ,जाति, लिंग या जन्म  स्थान के आधार पर बिभेद का प्रतिशोद – Prohibition of discrimination on grounds of religion, race, caste, sex or place of birth. ) ,16 ( नियोजन के विषय में अवसर की  समता -Equality of opportunity in matters of public employment  ) , 19 ( बाक स्वातंत्र्य अदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण – Protection of certain rights regarding freedom of speech, etc.)  के ऊलंगन करने के बाबजूद भी इन को असम्बिधानिक नहीं कहा जा सकता.  और अनुषेद 35A में जो कुछ रखा गया है उस में बहुत सी बातों का स्त्रोत ( मूल आधार) शेख अब्दुल्लाह और जवाहर लाल नेहरु के बीच हुए 1952 के दिल्ली एग्रीमेंट में है. मोदी सरकार को दिल्ली एग्रीमेंट की बैध्यता पर भी अपना मत साफ़ करना चाहिए

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