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देसी भारतीय गाय का दूध विदेशी गायों से बेहतर

क्या स्वदेशी भारतीय गायों का दूध विदेशी नस्ल वाली गायों से बेहतर है? अगर दूध की गुणवत्ता और उसमें निहित प्रोटीन तत्त्वों के संयोजन की बात करें तो इसका जवाब ‘हां’ है। उभरता वैश्विक रुझान दूध को उसके बीटा-केसीन की प्रकृति के आधार पर ए1 और ए2 श्रेणियों में वर्गीकरण का है। कुल दुग्ध प्रोटीन में बीटा-केसीन की मात्रा 30-35 फीसदी होती है। ए2 दूध को आम तौर पर ए1 पर वरीयता दी जाती है क्योंकि यह मां के दूध से मेल खाता है। भारतीय नस्ल वाली गाय का दूध भी इसी श्रेणी से संबंधित है।

बीटा-केसीन में ए1 और ए2 दूधों में समान रूप से पाए जाने वाले 209 अमिनो अम्लों की एक श्रृंखला होती है। लेकिन 67वें स्थान पर स्थित अमिनो अम्ल दो मामलों में अलग होता है। जहां ए2 बीटा-केसीन का इंसानी दूध की तरह इस स्थिति में उपयोगी प्रोलाइन होता है वहीं ए1 में हिस्टीडाइन होता है जो पाचन के दौरान अस्वास्थ्यकर पेप्टाइड बीसीएम-7 में टूटने की प्रवृत्ति रखता है। आम तौर पर ‘दूध का शैतान’ कहा जाने वाला यह पेप्टाइड मॉर्फीन से समानता रखता है जो कि मस्तिष्क के लिए बेहद नुकसानदायक है।

भारत समेत अधिकांश एशियाई एवं अफ्रीकी देशों में विकसित पशु नस्लों से निकलने वाला दूध मूल रूप से ए2 किस्म का ही है। इसके उलट यूरोपीय (फ्रांस को छोड़कर), ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अमेरिका में विकसित नस्लों के मवेशी सामान्य तौर पर ए1 दूध ही पैदा करते हैं। कुछ मामलों में उनके दूध में ए1 और ए2 बीटा-केसीन का मिश्रण होता है लेकिन मोटे तौर पर यह ए1 श्रेणी वाला दूध ही होता है। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि बचपन में ए1 दूध के सेवन का संबंध टाइप-1 डायबिटीज, दिल की बीमारी, पाचन अनियमितता और ऑटिज्म जैसी बीमारियों से जुड़ा हो सकता है। ऑटिज्म एक मानसिक अवस्था है जिसमें लोग सामाजिक गतिविधियों का हिस्सा होने से बचते हैं और बार-बार एक ही आचरण दोहराते रहते हैं। लेकिन ए2 श्रेणी वाले दूध के सेवन से इस तरह की बीमारियां होने का कोई नाता सामने नहीं आया है। सामान्य दूध को लेकर असहज लोग भी ए2 दूध का सेवन कर सकते हैं।

असल में, गाय ए2 दूध का अकेला जरिया नहीं है। भैंस, बकरी, भेड़, याक और ऊंट जैसे दूसरे दुधारू पशुओं से भी ए2 दूध मिलता है। यही वजह है कि इन मवेशियों के दूध को बाजार में खास स्थान मिलता है। कूबड़ वाले कुछ पशुओं, मसलन ऊंटनी से निकले ए2 दूध की कुछ किस्में ऑटिज्म पर काबू पाने और उसके लक्षणों को पूरी तरह दूर करने के लिए भी मुफीद मानी जाती हैं। इस मान्यता के कारण भारत समेत कई देशों में ऊंटनी के दूध की मांग एवं मूल्य दोनों में काफी तेजी आई है। लेकिन इनमें से अधिकांश दावों की पुष्टि के लिए अभी और अध्ययन किए जाने की जरूरत है।

हालांकि यह सच है कि देसी गाय का दूध ए2 किस्म वाला होने के दावे को वैज्ञानिक तौर पर पुष्ट किया जा चुका है। राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (एनएएएस) ने हाल ही में जारी रणनीति पत्र में इसे स्वीकार भी किया है। ‘भारत में ए1 एवं ए2 दूध की पूर्ण क्षमता का दोहन’ शीर्षक पत्र कहता है कि भारत में देसी गायों के साथ विदेशी सांडों के मेल से विकसित संकर नस्ल की गाय में भी विशुद्ध ए2 बीटा-केसीन के गुण पाए जाते हैं। संकर किस्म की गायों में ए1 प्रोटीन की मौजूदगी दुर्लभ होने के साथ ही नदारद रहती है।

एनएएएस का रणनीति पत्र 1,500 पशुओं के तुलनात्मक विश्लेषण के नतीजों पर आधारित है। करनाल स्थित नैशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्सेज ने इस अध्ययन के दौरान संकर किस्म की गायों को भी शामिल किया था। अध्ययन से पता चला कि भारत के 91 फीसदी देसी मवेशियों के दूध में केवल ए2 बीटा-केसीन ही होता है। बमुश्किल 0.09 फीसदी नमूनों में ही ए1 बीटा-केसीन के नाममात्र के निशान पाए गए। खास बात यह है कि किसी भी भारतीय मवेशी का दूध ए1 किस्म का नहीं था।

ए1 एवं ए2 किस्म के दूध के गुण एवं दोष के बारे में जागरूकता बढ़ रही है। न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया एवं अमेरिका जैसे बड़े दुग्ध उत्पादक देशों में भी लोग ए1 दूध को लेकर फिक्रमंद हो रहे हैं। न्यूज़ीलैंड ने तो प्रजनन में इस्तेमाल होने वाले सांडों को ए1 एवं ए2 के तौर पर चिह्नित करना शुरू कर दिया है ताकि ए2 दूध देने वाली गायों को बढ़ावा मिले। ए2 कॉर्पोरेशन लिमिटेड नाम का एक कारोबारी घराना ए2 किस्म की गायों की पहचान एवं उनके दूध की बिक्री के लिए आगे आया है। उसने ‘ए2’ और ‘ए2 मिल्क’ को अपने ट्रेडमार्क के तौर पर पंजीकृत करा लिया है। बहरहाल एनएएएस का यह रणनीतिक पत्र कहता है कि ए2 दूध के उत्पादन में भारत को यूरोप के दुग्ध उत्पादक देशों की तुलना में बढ़त हासिल है। ऐसी स्थिति में भारत ए2 दूध को लेकर दुनिया भर में बढ़ती मांग को आसानी से पूरा कर सकता है।

साभार – बिज़नेस स्टैंडर्ड से