Friday, March 29, 2024
spot_img
Homeदुनिया मेरे आगेअस्पतालों में जिन उपकरणों से इलाज होता है वही जानलेवा हैं

अस्पतालों में जिन उपकरणों से इलाज होता है वही जानलेवा हैं

अक्सर किसी बीमारी के चलते कई बार हालात इतने खराब हो जाते हैं मरीज को बचाने के लिए उसके हाथ या फिर पैर को ट्रांस्पलांट किया जाता है। इसके लिए प्लास्टिक के हाथ और पैरों को लगाया जाता है। ये मेडिकल उपकरण मशीन की सहायता से बनाए जाते हैं। ऐसे ऑपरेशन के बाद डॉक्टर तो निश्चिंत हो जाते हैं कि मरीज की जान बच गई। वहीं मरीज के परिवार को भी तसल्ली मिल जाती है कि उनके परिवार का सदस्य सुरक्षित है। लेकिन क्या कभी किसी ने उस मेडिकल उपकरण (प्लास्टिक के हाथ या फिर पैर) के बारे में कभी विचार किया है, कि उन्हें किस तरह से तैयार किया जाता है और वह कितने सुरक्षित हैं।

इन्हीं मेडिकल उपकरणों की जांच इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेशन जर्नलिस्ट्स (आईसीईआईजे) ने कई समाचार संगठनों के साथ की। यह जांच 36 देशों में की गई। मानव के शरीर में जाने वाले सभी मेडिकल उपकरणों की जांच को इसमें शामिल किया गया। 10 महीने तक चली जांच के बाद पता चला कि प्रत्येक मेडिकल उपकरण का प्रचार किया जाता है और बेचा जाता है। इस प्रचार में डॉक्टर और अस्पताल सभी शामिल होते हैं। डॉक्टरों को समय समय पर लुभाने के लिए कंपनियां तोहफे आदि देती हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि अपने माल की बिक्री के लिए कंपनियां सभी तरह के तरीके अपनाती हैं।

जांच में पता चला कि ब्रेस्ट इम्प्लांट का काम एम्स के डीडीए फ्लैट के बेसमेंट ऑपिरेटिंग थियेटर में किया जाता है। बता दें हाल ही में जॉनसन एंड जॉनसन के गड़बड़ हिप ट्रांसप्लांट से 4700 भातीय मरीज प्रभावित हुए थे। यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है।

जांच में पता चला कि कई बड़ी कंपनियां हैं जो मेडिकल उपकरण बनाती हैं, इनके बनाए गए उपकरणों का कोई निरीक्षण नहीं किया जाता। चाहे फिर इनकी गुणवत्ता की बात हो या फिर कीमत की। इसके अलावा इस बात की भी जांच नहीं की जाती कि व्यक्ति के शरीर में जाने के बाद उपकरण ठीक से काम करेगा भी या नहीं।

जॉनसन एंड जॉनसन ने वैश्विक स्तर पर 2010 में किए गए सभी ट्रांसप्लांट को वापस लेने का फैसला किया था। साथ ही इससे प्रभावित मरीजों के लिए जो कंपनी की ओर से भुगतान किया जाता उसके नियमों को भी अगस्त 2017 में बदल दिया था। सभी उपकरण वापस लेने का जॉनसन का फैसला भी काफी समय बाद आया।

मेडिकल उपकरण पर 12 साल पहले पहला बिल ड्राफ्ट किया गया था जो अभी तक अधिनियमित नहीं हुआ है। एनडीए सरकार ने भी इसे कानून के तहत लाने पर विचार किया था लेकिन बीते साल एक आसान रास्ता चुना और कानून के स्थान पर मेडिकल डिवाइस बिल लेकर आई।

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने मेडिकल डिवाइसेज नियम-2017 की अधिसूचना जारी की। अधिसूचना के बाद कहा गया कि इससे मेडिकल उपकरणों की गुणवत्ता में सुधार आने के साथ-साथ कीमतों को नियंत्रित करने में भी मदद मिलेगी।

अधिसूचना के मुताबिक मेडिकल उपकरणों को ए, बी, सी और डी चार श्रेणियों में बांटा गया। हर श्रेणी में अलग-अलग प्रकार के मेडिकल उपकरणों को शामिल किया गया और सभी के लिए अलग नियम तैयार किए गए। नियमों के अनुसार मेडिकल उपकरण तैयार करने वाली कंपनियों को स्टेट लाइसेंसिंग ऑथरिटी में पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। कंपनियों की ओर से तैयार किए जा रहे मेडिकल उपकरणों पर नियंत्रण के लिए थर्ड पार्टी के पास ऑडिट करने की जिम्मेदारी होगी।

स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव केएल शर्मा ने इसके बाद कहा था कि अधिसूचना जारी होने के बाद इस क्षेत्र में भारत में निवेश बढ़ेगा। मेडिकल डिवाइसों का प्रोडक्शन बढ़ेगा और इससे न सिर्फ देश की जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी बल्कि निर्यात भी किया जा सकेगा।

स्टेंट, नी, पेस मेकर, हार्ट वॉल्व के अलावा स्टेथेस्कोप, थर्मामीटर, वॉकर, बैसाखी, मेडिकल स्टीक, हड्डी के मरीजों के इलाज में इस्तेमाल होने वाले सहायक मेडिकल उपकरणों सहित दूसरे अन्य मेडिकल उपकरण इसमें शामिल हैं। अधिसूचना के बाद इनकी कीमतों पर न सिर्फ अंकुश लगाने बल्कि गुणवत्ता में भी सुधार की बात की गई।

निजी क्लीनिक और अस्पतालों में सबसे अधिक प्रयोग होता है। जांच में पता चला कि आधे से ज्यादा उपकरण निजी क्लीनिक और अस्पतालों में इस्तेमाल किए जाते हैं। इन्हें लेने से पहले इनकी सटीकता और सुरक्षा को लेकर कोई आकलन नहीं किया जाता है।

जांच में इस बात का भी पता चला कि कई अस्पताल लोगों को सस्ते इलाज के बहाने लुभाने की कोशिश करते हैं। गरीब लोगों को जब अपनी बड़ी बीमारी को दूर करने के लिए सस्ते इलाज का पता चलता है तो वह चले भी जाते हैं। लेकिन वह इस बात से अंजान होते हैं कि वह एक बड़े जाल में फंसने जा रहे हैं। विज्ञापन में बताई जगह पर जब लोग जाते हैं तो उन्हें बातों में फंसाया जाता है। फिर उन्हें पता चलता है कि इलाज के लिए अस्पताल वाले ही उन्हें लोन भी दिलाएंगे।

भोले भाले लोग लोन के जाल में फंस जाते हैं। महंगे दामों पर सस्ते उपकरण उन्हें लगाए जाते हैं। बाद में जब परेशानी होती है तो दोबारा सर्जरी करानी पड़ती है। लेकिन इसमें भी पैसे की जरूरत पड़ती है। जो पैसे दे सकता है वो तो सर्जरी करवा लेता है लेकिन जिसके पास पैसे नहीं होते वो सर्जरी नहीं करा पाता। कई मामले तो ऐसे भी हैं कि पहली सर्जरी का लोन चुका नहीं कि उसमें दिक्कतें आने लगीं। अस्पतालों को न केवल मरीजों के इलाज के बदले पैसे मिलते हैं बल्कि उन्हें लोन वाली कंपनी से भी लाभ मिलता है।

जांच में पता चला कि उपकरण के खराब डिजाइन और ऑपरेशन के दौरान हुई गलतियों के कारण मरीजों को दोबारा सर्जरी से गुजरना पड़ा। ऐसे लोगों की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है। न्यूज वेबसाइट इंडियन एक्सप्रेस भी इस जांच में शामिल था। न्यूज वेबसाइट ने लापरवाही के कई मामलों की जांच की। जब ट्रांसजेंडर समुदाय के कई लोगों से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि कई ब्रेस्ट इम्प्लांट सर्जरी गलत हुई हैं। जिसके बाद सिलिकॉन पैक लगवाने के लिए उन्हें थाईलैंड तक जाना पड़ता है।

भारत में आयात किए गए चिकित्सा उपकरणों का बाजार 35000 करोड़ का है। जिनमें से 70 फीसदी उपकरण बिक जाते हैं। लेकिन सरकारी और निजी चिकित्सा उपकरण निर्माता आपस में भिड़े हुए हैं कि कौन इस क्षेत्र को नियंत्रित करेगा और कैसे।

इस प्रोजेक्ट में दुनियाभर के 252 रिपोर्टर शामिल थे। इसमें शामिल मीडिया हाउस की संख्या 59 है। फिलहाल भारत में इसकी इंडस्ट्री 5.2 बिलियन डॉलर (करीब 35000 करोड़) की है। इंडस्ट्री को साल 2025 तक 50 बिलियन डॉलर तक लाने की योजना है। भारत की मेडिकल उपकरण की इंडस्ट्री एशिया में चौथी बड़ी इंडस्ट्री है। इसमें पहले नंबर पर जापान, दूसरे पर चीन और तीसरे पर दक्षिण कोरिया का नाम शामिल है।

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार