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क्या हमें आजादी भीख में मिली?

फ़िल्म अदाकारा पदमश्री कंगना रनौत के आधे घंटे से ज्यादा के इंटरव्यू में दिए एक वाक्य पर हंगामा मच गया है और इस हंगामे के बीच देश में एक नया विमर्श छिड़ चुका है कि क्या आजादी भीख में मिली? बड़ी संख्या में लोग कंगना का समर्थन कर रहे जबकि एक ऐसा वर्ग भी है जो कंगना को भद्दी गालियां भी दे रहा है।
एक ट्विटर यूजर लिख रही है कि कंगना को पद्मश्री उनकी प्रतिभा के बल पर नहीं कई रातों में चीखने से मिली है। भाषाती मर्यादाओं की सीमा पार कर चुके विरोधियों को यह भी बताना चाहिए कि अब तक पद्मश्री प्राप्त प्रतिभाओं ने भी कई रातों को चीख कर ही पदम् पुरस्कार प्राप्त की अथवा अन्य कारण भी थे? यदि कंगना ने सेनानियों का अपमान किया तो ऐसे लोग पदम् पुरस्कार विजेताओं का अपमान कर रहे हैं या नहीं?

भारतीय सिनेमा में महिला कलाकारों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। अपनी प्रतिभा के दम पर फिल्मों को हिट करवाने का माद्दा रखने वाली अदाकाराओं की गिनती अंगुलियों में भी नहीं की जा सकती? अपने जिस्म की नुमाइश तक सिमट चुकी फिल्मी हीरोइनों के बीच कंगना रनौत एक मात्र अदाकारा है जो पर्दें पर कपड़ों के साथ भी ‘बोल्ड सीन” कर सकती है और वास्तविक जीवन में बोल्ड व्यवहार भी। अपनी प्रतिभा के दम पर बिना किसी गॉड फादर के फिल्मी दुनिया के रास्ते लोगों के मन-मस्तिष्क में जगह बनाने वाली कंगना के साथ जैसा व्यवहार हो रहा है यह पीड़ादायक है किंतु क्षोभ इस विषय पर होता है कि महिला सशक्तिकरण का झंडा उठाने वाली महिलावादी लेखिकाएं, साहित्यकार, पत्रकार, तथाकथित समाजसेवी कंगना का बार बार होते अपमान पर चुप्पी साध लेते हैं।

आखिर उनका कसूर क्या है? वो महिला है? वो प्रतिभशाली है? किसी कपूर खानदान अथवा जौहर खानदान या खान खानदान से नहीं आती? चरस और रेप पार्टी से पकड़े गए शाहरुख खान के बेटे की गिरफ्तारी पर अश्रु बहाने वाली जमात कंगना पर हो रहे नियय नए हमले पर या तो कोई प्रतिक्रिया देने से बचता है या खुशी जाहिर करते हुए नीच कमेंट करता है।
एक सामान्य सा प्रश्न है कि यदि चरखा और कॉंग्रेस के पराक्रम के आगे झुक कर अंग्रेजों ने भारत को आजादी दी तो फिर उन राष्ट्रों की आजादी के पीछे कौन सी शक्तियां थी जिन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार से आजादी मिली?

अब तक बहुत कम ही बार कानूनी लफड़े से दो-चार होने का मौका मिला है। कभी 1893 के कानून के आधार पर दोषी सिद्ध हुआ तो कभी 1919 के आधार पर।आपने भी कभी न कभी ऐसे कानूनों के बारे में सुना हो या ऐसे नियमों के जंजाल में फंसे हों जो ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों के शोषण करने के लिए बनाए गए थे और आज भी उन्हीं कानूनों के आधार पर भारतीय प्रशासनिक व कानूनी व्यवसाय चल रही है।

प्रश्न और पीड़ा यह है कि एक संप्रभु व स्वातंत्र्य राष्ट्र में लंबी चौड़ी संविधान सभा के बाद भी ऐसे कानूनों को यथावत उन्हीं नामों के साथ ही अंगीकार क्यों किया गया? जब संविधान सभा का निर्माण हो सकता था तो विधायी मामलों के लिए भारत की विधि सभा का निर्माण क्यों नहीं? यदि 1947 की स्वतंत्रता पूर्ण व वास्तविक थी तो स्वतंत्रता के उपरांत वर्षो तक पहला वायसराय एक ब्रिटिश जिसकी प्रगाढ़ मित्रता जिन्ना से भी थी को क्यों बनाए रखा गया? आप सोच भी नहीं? स्वातन्त्र्य भारत में वर्षों तक भारत के सेना अध्यक्ष ब्रिटिश थे। क्या कोई स्वतंत्र राष्ट्र अपनी रक्षा का जिम्मा उसके हाथों में कैसे सौप सकता है जिसने वर्षों तक उसका शोषण किया हो? इस फैसले का परिणाम हुआ कि भारत के बड़े हिदसे पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया जिसे हम पाक अधिकृत कश्मीर कहते हैं। वर्षों तक प्रधानमंत्री नेहरू विक्टोरिया ट्रेटरी का भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर हस्ताक्षर करते रहे।

जब कानून अंग्रेजों का, वायसराय अंग्रेजों का, सेनाध्यक्ष अंग्रेजों का यहाँ तक की प्रधानमंत्री अंग्रेजों का तो कंगना जैसी प्रतिभाशाली मुखर महिला अदाकारा का यह कहना कि आजादी भीख में मिली जनसमुदाय में व्यापक एक स्वभाविक पीड़ा है जिसे दबाने का प्रयास एक प्रकार से आने वाली पीढ़ियों को अपने इतिहास से दूर रखना है।

इस कथन के बाद उन्हें जितनी गालियां दी जा रही है उससे यह समझा जा सकता है कि देश के सच्चे इतिहास को सामने लाने वालों को किस प्रकार प्रताड़ित किया जाता रहा होगा। एक आर सी मजूमदार जैसे इतिहासकारों की बात नहीं है यह एक दमनचक्र है जो एक परिवार के सामने घुटने टेक चुकी व्यवस्था के काले करतूतों का जीती जागती मिशाल है। यह भी विचार करना चाहिए कि ये लोग अपने विरुद्ध की आवाज को स्वीकार नहीं कर पाते? लोकतंत्र और सहिष्णुता की फटी ढोल पीटने वालों का वास्तविक चेहरा समाज के सकम्बे आने लगा है।

कंगना के नए वक्तव्य से लोकतंत्र के ठेकेदारों की पहचान तो हो ही रही है साथ ही साथ पूर्व में सरकारों की चरण वन्दना करने वाले साहित्यकार व पत्रकारों के द्वारा इतिहास के साथ किए गए छेड़छाड़ पर पुनर्विचार की एक ज्योति भी प्रज्वलित हुई है। आशा है कि आने वाली पीढ़ियों भारत के वास्तविक इतिहास से परिचित हो पाएगी।