1

डाइनिंग टेबल

सूने घर में सजी डाइनिंग टेबल खुद से ही बातें करने को मजबूर थी। थोड़ी दूर पर पड़ा सोफा सेट हर समय ऊंघता रहता था ,उसे पता नहीं कितनी नींद आती है ?और सेंटर टेबल —–उसे ताजे बासी अखबार, पुरानी पत्रिकाओं से फुर्सत न थी। ड्राइंगरूम में बिछा मखमली कालीन बेचारा सोफ़ा और सेंटर टेबल के बोझ के नीचे दबा था,भला वह कैसे किसी का दुःख बाँट सकता था ?ऐसे में दरवाजा खुला एक ताजा हवा का झोंका आया ,आवाज आयी नमस्ते मैं आप लोगों के साथ रहने आया हूँ।अचानक सोफा सेट, सेंटर टेबल ,कालीन, डाइनिंग टेबल और चरमराता पंखा जिसे लापरवाह राजू चलता छोड़ गया था सभी की मानो नींद टूट गयी, खुश हो कर बोले वाह घर में नया मेहमान ,तुम कौन हो अन्दर आओ हमारे पास बैठो । दरवाजे सेएक कैबिनेट अंदर आता देख सभी ने सिमट कर उसे अपने पास जगह देने की की असफल कोशिश की। पर उसे अपने पास रखने का सौभाग्य डाइनिंग टेबल को मिला ,क्यों कि राजू उसे क्रॉकरी रखने के लिए लाया था। किचन से सामान लाने मेंअक्सर रामू काका से कुछ न कुछ गिर कर टूट जाता था

राजू के दादा जी के जमाने की डाइनिंग टेबल ने लरजती आवाज में कहा आओ बेटा तुम्हारा स्वागत है। कैबिनेट ने नम्र स्वर से कहा दादी आप तो बुजुर्ग हैं कुछ अपने और घर वालों के बारे ने बताएं नही तो समय कैसे कटे गा ?कहते हैं उम्र के साथसारी शक्तियां घटती हैं पर बोलने की बढ़ती है ,यही बात डाइनिंग टेबल के साथ भी थी। वह अपना सारा अनुभव बांटने को उतावली हो उठी।

बेटा राजू के दादा जी का जमाना भी क्या जमाना था यह जो खाली पड़ी कुर्सियां देख रहे हो न सब हर समय भरी रहती थीं ,मेरे आस पास कहकहे गूंजते रहते थे ,और कई स्टूल ,कुर्सियां मेरे इर्द गिर्द पडी रहती थीं। रोज हर समय ढेर सारे पकवान मेरेऊपर रखे रहते थे। राजू के चाचा ,पापा दोनों और बुआ प्यार भरी तकरार करते हुए एक दूसरे से छीन कर खा जाते थे और थोडा छिपा कर रख लेते थे और जिसे नहीं मिलता था उसे मनुहार कर के खिलाते थे।राजू की दादी बेसन का हलवा और मूंगदाल के पकौड़े बड़े अच्छे बनाती थीं।रोज की रसोई राजू की माँ सम्हालती थी। सब बच्चों की फरमाइश पर दादी जिस दिन पकवान बनाती थीं वह दिन त्यौहार से कम नहीं होता था। सारे बच्चे उनका बनाया खाना खाने को उतावले रहते थे पर आपसमें प्यार इतना था कि मजाल नहीं थी बिना सब के इकट्ठा हुए कोई एक निवाला उठा ले।सब को खुश देख कर मैं भी गदगद रहती थी, समय कैसे बीत जाता था पता ही नहीं चलता था।

समय पंख लगा कर उड़ता रहा। दादी ने अनंत में बसेरा बना लिया। राजू की बुआ ब्याह कर पिया का घर बसाने चल दी। समय आया राजू की माँ का। तीन चार सब्जियों की जगह एक सब्जी ,दाल और रायते ने ले ली। घर में हलवा पकौड़ी की जगहइडली ढोकले ने ले ली।दाल में घी में कमी आ गई,इन सब बातों की दो वजह थी एक तो मंहगाई पैर पसार रही थी दूसरे आराम के जिंदगी हो गयी थी। कहीं जाने आने के लिए कार स्कूटर आ गए थे घर के काम में मदद के लिए मिक्सी वैक्यूम क्लीनरवगैरह आ गए थे ,इससे भारी खाना पचना बंद हो गया था।

राजू के पापा का ट्रांसफर कलकत्ता हो गया ,चाचा विदेश चले गए। घर सूना हो गया। सारे घर में सन्नाटा छा गया। मेरा दमकता चेहरा धूल की मोटी परत के नीचे छिप गया। ठहाके तो दूर किसी की आवाज सुनने को मेरे कान तरस गए। पर रात काअँधेरा हमेशा छंटता है। नन्हा राजू जवान हो गया ,और उसकी नौकरी इसी शहर में लगी। मैं तो राजू को देख कर जी उठी। घर का पुराना नौकर रामू अब बूढा हो गया है पर बुलाने पर दौड़ा चला आया। मैंने सोचा पुराने दिन लौट आये गें ,मेरे ऊपरपकवान सजे गें, राजू खुश हो कर खाये गा। हाय री नयी पीढ़ी —रामू सबेरे शाम पूछता है राजू बाबा आप के लिए क्या बना दूं ?पर राजू कहता है बस दूध गरम कर दीजिये मैं ओट्स खाऊंगा।रात को जब राजू लौटा तो फिर रामू ने पूछा तो जवाब मिलाकाका मैंने पिज्ज़ा ऑर्डर कर दिया है आ रहा हो गा ,मेरे रूम में लेते आइये गा दोनों खा ले गें, मैं फिर अकेली रह गयी।

एक दिन राजू चहकता हुआ आया ,काका आज घर अच्छे से साफ़ कर दीजिये गा मेरे कुछ दोस्त खाने पर आ रहे हैं,और हां खाना मैंने बाहर से मंगवा लिया है। मैंने सोचा आज मटर पनीर ,दाल मखनी, दही बड़े,गुलाबजामुन ,इमरती तो हो गी ही औरपता नहीं कितने तरह का सामान हो गा।मेरे आस पास खाने की ख़ुशबू हो गी ,लोग चटकारे ले कर खाये गें ,कही किसी को मिर्च लगी तो वह सीटी मारेगा यही सब सोचते -सोचते सांझ हो गयी ,मेहमान आ गये खाना मेज पर लग गया।

महक अलग लगी ,समझ नहीं आ रहा था कि क्या है ,निगोड़े नाम भी कैसे -कैसे सुनाई दे रहे थे जैसे पास्ता, नूडल्स ,बर्गर ,रशियन सलाद ,बकलावा और न जाने क्या -क्या। बोलने में तो मेरी जीभ ऐंठती है—इतने में खर्राटे की आवाज गूंजी ,सोफ़ाबोला अम्मा अब तुम भी सो जाओ और सब को सोने दो ,एक ही राग कब तक अलापती रहो गी अब तो कैबिनेट भी सो गया।

बेचारी डाइनिंग टेबल चुप हो गयी ,पर बूढ़ी आँखों में नींद कहाँ उसे तो बस इन्तजार था किसी ऐसे का जिसके साथ अपने लम्बे जीवन के अनुभव बाँट सके।