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दक्षिणअफ्रीका हिंदी शिक्षा संघ की अध्यक्ष प्रो. उषा शुक्ल को वैश्विक हिंदी सेवा सम्मान

‘देश-विदेश में हिंदी’ विषय पर मुंबई में वैश्विक संगोष्ठी आयोजित

‘भारत में हो रही हिंदी की कमजोर स्थिति अन्य देशो में भी हिंदी की स्थिति को कमजोर कर रही है।’यह बात दक्षिण अफ्रीका ‘हिंदी शिक्षा संघ’ की अध्यक्ष प्रोफ़ेसर उषा शुक्ला ने ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ तथा ‘मुंबई रेल विकास कॉर्पोरेशन’ द्वारा चर्चगेट स्टेशन भवन स्थित सभागार में आयोजित ‘वैश्विक हिंदी संगोष्ठी’ में मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए ‘देश-विदेश में हिंदी’ विषय पर अपने वक्तव्य में कहीं। उन्होंने कहा अब वहाँ भी स्थितियाँ बदल रही हैं। ज्यादातर लोग भारतवंशी अब वहाँ घरों में अंग्रेजी बोलते हैं। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में हिंदी के प्रसार के लिए विशेष उपाय करने की बात कही।

इस अवसर पर मुंबई रेल विकास कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक प्रभात सहाय ने विदेशों में अपने हिंदी के अनुभव बताए कहा कि विदेशों में लोग हिंदी को सम्मान देते हैं। उन्होंने देश में विशेषकर कार्यालयीन हिंदी को सरल व सहज बनाने पर जोर दिया। उनका कहना था कि ऐसी हिंदी लिखी जानी चाहिए कि उसका अंग्रेजी अनुवाद करवाने की आवश्यकता न पड़े। उन्होंने हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाए जाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

साहित्यकार माणिक मुंडे ने विश्व की अनेक भाषाओं के लुप्त होने और भारतीय भाषाओं पर मंडराते खतरे को देखते हुए उसके लिए राजाश्रय को आवश्यक बताने के साथ-साथ भारतीय भाषाओं के विकास के लिए योजनाबद्ध उपाय करने पर भी जोर दिया। ‘अभियान’ के अध्यक्ष अमरजीत मिश्र ने संविधान की अष्टम अनुसूची को लेकर मचे बवाल के संदर्भ में कहा कि यह उचित होगा कि अष्टम अनुसूची को ही संविधान से हटा दिया जाए। उन्होंने हिंदी का प्रयोग व प्रसार बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठाने पर जोर दिया।

unnamed (1)दिल्ली से प्रकाशित ‘प्रवासी संसार’ के संपादक राकेश पांडेय ने कहा कि जिस प्रकार हिंदी की तमाम बोलियों और उप बोलियों को अष्टम अनुसूची में जुड़वाने की होड़ लगी है, इससे न केवल हिंदी की बल्कि हिंदी की बोलियों की स्थिति भी कमजोर हो रही है। हिंदी से अलग भाषा बनने के बाद भी न तो कोई मैथिली को अधिक पढ़ रहा है और न ही अब हिंदी में मैथिली साहित्य को पढ़ाया जा रहा है। जिस प्रकार हिंदी की अन्य बोलियां भी अष्टम अनुसूची में जुड़ने के लिए जोर लगा रही है, इससे हिंदी और इसकी बोलियों दोनों को ही भारी नुकसान होगा । उन्होंने उन तकनीकी कारणों की जानकारी भी दी जिनके कारण हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बना पाना कठिन हो रहा है। उनका कहना था कि अब तक के अनुभवों का हवाला देते हुए कहा कि इस मामले में यह बात सामने आती है कि जब भारत के ज्यादातर नेता व राजनयिक स्वयं संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में नहीं बोलते तो दुनिया ऐसी भाषा के लिए एक और भाषा जुड़वा कर आर्थिक बोझ क्यों वहन करना चाहेगी। पहले हमें हिंदी को सही मायने में भारत की राष्ट्रभाषा बनाना होगा।unnamedमुंबई से प्रकाशित कई पत्र पत्रिकाओं के संपादक बिजय जैन ने हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाए जाने के लिए संयुक्त प्रयास किए जाने पर जोर दिया। उन्होंने इसके लिए विश्व हिंदी दिवस पर मुंबई से दिल्ली तक हिंदी रेल यात्रा का आयोजन कर जनजागरण की बात कही। बैंक ऑफ बडोदा के उप महाप्रबंधक जवाहर कर्णावट ने विभिन्न देशों में हिंदी के प्रसार की स्थिति की जानकारी दी और भारत में हिंदी के प्रयोग व प्रसार के लिए उपलब्ध भाषा प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर जोर दिया। के.सी. कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ शीतला प्रसाद दुबे ने हिंदी के प्रसार के लिए शिक्षा, साहित्य, सिनेमा और राजभाषा आदि सभी क्षेत्रों के बीच समन्वय स्थापित कर संयुक्त प्रयास किए जाने पर जोर दिया।

इस अवसर पर संगोष्ठी का संचालन करते हुए वैश्विक हिंदी’ सम्मेलन के निदेशक डॉ एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’ ने कहा कि जब तक हिंदी को शिक्षा, रोजगार, व्यापार और व्यवहार की भाषा नहीं बनाया जाता तब तक हिंदी का विकास और प्रसार संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि अष्टम अनुसूची में शामिल होकर हिंदी की बोलियां हिंदी को तो समाप्त करेंगी ही लेकिन स्वयं भी बच न सकेंगी। डॉ.गुप्ता ने कहा कि भारतीय भाषाओं में भी कंप्यूटर पर कार्य करने की सभी सुविधाएं उपलब्ध हेने पर भी जानकारी के अभाव में ज्यादातर लोग रोमन में लिखते है। इसलिए आवश्यक है कि स्कूल व कॉलेज स्तर पर सभी विद्यार्थियों को कंप्यूटर व मोबाइल आदि उपकरणों पर हिंदी में देवनागरी लिपि में कार्य करने संबंधी प्रौद्योगिकी की जानकारी दी जाए और भाषा शिक्षण में भाषा प्रौद्योगिकी का समावेश किया जाए।
राजभाषा अधिकारी उदय कुमार सिंह ने हिंदी व भारतीय भाषाओं के प्रसार कार्यक्रम में वैश्विक हिंदी सम्मेलन के प्रयासों की सराहना करते हुए इसके लिए आजीवन हरसंभव सहयोग देने की बात कही।

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संगोष्ठी में निम्न बिंदुओं पर आम सहमति बनी :-
1. हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एकजुट हो कर सरकार से मांग की जाए।

2. हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने के लिए सभी स्तरों पर सरकार द्वारा प्रयास किए जाएँ।

3. अष्टम अनुसूची में हिंदी क्षेत्र की बोलियों का समावेश करने से हिंदी को भारी नुकसान होगा और बोलियाँ भी हिंदी से कट कर कमजोर होंगी। इसलिए ऐसा करना भारतीय भाषाओं व बोलियों के हित में नहीं है।

4. बोलियों के साहित्य का भी संरक्षण व विकास होना चाहिए इसके लिए राज्य सरकारों व स्थानीय भाषा अकादमियों को काम करना चाहिए।

5. विद्यार्थियों को कंप्यूटर व मोबाइल आदि उपकरणों पर हिंदी unnamedमें देवनागरी लिपि में कार्य करने संबंधी प्रौद्योगिकी की जानकारी दी जाए और भाषा शिक्षण में भाषा प्रौद्योगिकी का समावेश किया जाना चाहिए।

6. जब तक हिंदी को शिक्षा, व रोजगार तथा व्यापार व व्यवहार की भाषा नहीं बनाया जाता तब तक हिंदी का समुचित विकास और प्रसार संभव नहीं। इस दिशा में कारगर उपाय किए जाने चाहिए। हिंदी माध्यम से शिक्षा पानेवालों को स्तरीय शिक्षा के साथ-साथ रोजगार में भी वरीयता दी जानी चाहिए।

7. हिंदी के प्रसार के लिए शिक्षा, साहित्य, सिनेमा और राजभाषा आदि सभी क्षेत्रों के भाषा प्रेमियों को परस्पर समन्वय व सहयोग के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए।

इस अवसर पर ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ द्वारा दक्षिण अफ्रीका ‘हिंदी शिक्षा संघ’ की अध्यक्ष प्रोफ़ेसर उषा शुक्ला को दक्षिण अफ्रीका सहित विश्व स्तर पर हिंदी के प्रसार के लिए ‘वैश्विक हिंदी सेवा सम्मान’ तथा मुंबई रेल विकास कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक प्रभात सहाय को हिंदी के प्रयोग व प्रसार की उनकी अभिरुचि व प्रयासों के लिए ‘राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान’ प्रदान किया गया।
संगोष्ठी में विशेष उपस्थितों में रोशनी खूबचंदानी, गजानन महातपुरकर, कलीमुल्लाह खान, मेघराज पाहवा, रामप्रीत यादव, विद्या देशमुख, सुषमा तैलंग, अतुन चटोपाध्याय थे। स्वागत संबोधन मुंबई रेल विकास निगम के निदेशक (परियोजना) आर.एस. खुराना ने त था स्वागत मुख्य राजभाषा अधिकारी व मुख्य कार्मिक अधिकारी अल्का अरोड़ा मिश्रा ने किया। संगोष्ठी में बड़ी संख्या में शिक्षा, साहित्य, राजभाषा क्षेत्र व हिंदी सेवी संस्थाओं के लोग उपस्थित थे।

साभार
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
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वेबसाइट- वैश्विकहिंदी.भारत / www.vhindi.in