Friday, March 29, 2024
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महारथियों भारत का नाम बदनाम ना करो

निजी रूप से यह स्वीकारना सही हो सकता है कि ‘ बुरा जो देखन चला , तो मुझसे बुरा न कोई ‘ | लेकिन जब भारत की बात आती है तो हम और आप देश के विभिन्न क्षेत्रों के महारथियों से यह निवेदन तो कर सकते हैं – ‘ कृपापूर्वक भारत का नाम बदनाम ना करो ‘ | इस समय नेता हों या गैर सरकारी संगठन अथवा मीडिया का बड़ा वर्ग इस बात में मुकाबला कर रहे हैं कि किसी न किसी रूप में भारत से बदतर स्थिति दुनिया के किसी देश में नहीं है | जबकि यह उनका भ्रम , पूर्वाग्रह और सही मायने में अपनी कुंठाएं हैं | पराकाष्ठा यह हुई है कि सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के अल्पकालिक पूर्व और फिर से अध्यक्ष बनने के लिए बेचैन राहुल गाँधी साधारण अनपढ़ या माओवादी व्यक्ति की तरह देश के प्रधान मंत्री को ‘ कायर – कायर ‘ कहते हुए भारतीय सेना को बदनाम करते हुए गरीब भोली भली जनता को यह समझा रहे हैं कि ‘ चीन ने भारत की बारह हजार वर्ग किलोमीटर जमीन जीत ली है और यदि वह सत्ता में होते तो पंद्रह मिनट में चीनी सेना को हजारों किलोमीटर धकेल देते | ” यों इस देश की जनता अब बहुत समझदार हो चुकी है , लेकिन क्या कांग्रेस पार्टी या अन्य पार्टियों के नेता अथवा कार्यकर्त्ता भी इस मूर्खतापूर्ण दावे पर भरोसा कर सकता है | मुझसे अधिक अनुभव और आयु वाले उनके नेता या सलाहकार क्या इंदिरा गाँधी से लेकर मनमोहन सिंह के सत्ता काल तक किसी प्रमुख सत्तारूढ़ या प्रतिपक्ष के नेता का ऐसा बयान दिखा सकते हैं , जिसमें प्रधान मंत्री के लिए ऐसे शब्दों का उपयोग किया गया हो | 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में भारत की ऐतिहासिक विजय के बाद भी इंदिरा गाँधी , अटल बिहारी वाजपेयी , जयप्रकाश नारायण , चरण सिंह जैसे नेताओं ने भी शिमला समझौते के लिए आए पाकिस्तानी प्रधान मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को कायर कहकर गालियां नहीं दी थी | हाल के वर्षों में कारगिल युद्ध के बाद भी जनरल मुशर्रफ को किसी बड़े कांग्रेसी नेता ने कायर आदि कहकर गलियां नहीं दी थी | उनके अत्याचारों , तानाशाही शासन का कड़ा विरोध हमेशा किया गया | अपने देश में भी 73 वर्षों के दौरान सरकारें बदली हैं , लेकिन क्या प्रतिपक्ष के किसी नेता ने दुनिया में भारत के प्रधान मंत्री की ही नहीं सेना , शीर्ष उद्योगपतियों , मीडिया को निकम्मा , बेईमान और बिकाऊ कहकर बदनाम किया है ? सामान्य आंदोलनों में दिल्ली से लेकर दूरस्थ गांवों तक समस्याओं को लेकर अपने लोग अपनों पर आक्रोश के साथ नारेबाजी में ऐसा कुछ कर भी सकते हैं , लेकिन करोड़ों रूपये देकर या लेकर क्या इस तरह का कुप्रचार करना दूरगामी सामाजिक आर्थिक हितों के लिए घातक नहीं है ?

आप इसे सत्ता की राजनीति का हिस्सा कहकर शायद किनारा करें | लेकिन भारत की छवि को लेकर एक और गंभीर मुद्दे पर ध्यान देने का कष्ट करें | इन दिनों कुछ नेता और मीडिया का एक वर्ग उत्तर प्रदेश , राजस्थान , पश्चिम बंगाल , मध्य प्रदेश , महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अपराध – हत्या – बलात्कार की घटनाओं को लेकर बेहद उत्तेजित हैं | विदेशी मीडिया में उसे प्रमुखता से उछलवाने के लिए सक्रिय हैं | निश्चित रूप से ऐसे जघन्य अपराध रोकने के लिए सरकारों , पुलिस और अदालतों को कठोरतम कार्रवाई करनी चाहिए | दूसरी तरफ कृपया दुनिया के शक्ति संपन्न लोकतान्त्रिक देशों और समाज की स्थितियों पर भी नजर रख लीजिये | भारत पर दो सौ वर्ष राज करने वाले ब्रिटेन में वर्ष 2019 में बर्बरतापूर्वक बलात्कार की 55 हजार घटनाएं हुई हैं | यह आंकड़ा प्रधान मंत्री मोदी सरकार ने नहीं जारी किया है | यह ब्रिटिश सरकार के अपराध रिकार्ड का आंकड़ा है | हत्या , अपराध , डकैती , चोरी सहित अपराधों की घटनाओं की संख्या लगभग एक करोड़ बीस लाख है | महाशक्ति कहलाने वाले अमेरिका में भी उनकी एफ बी आई के रिकार्ड के अनुसार 2019 में घृणित बलात्कार की 98 , 213 घटनाएं दर्ज हुई हैं | यह भी याद रखिये कि ब्रिटेन की आबादी मात्र छह करोड़ अठहत्तर लाख के आसपास है | हमारे अकेले उत्तर प्रदेश की जनसँख्या करीब 23 करोड़ है | वहीँ भारत सरकार के राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के अनुसार 2019 में पुरे देश में बलात्कार की करीब 45 हजार घटनाएं दर्ज हुई हैं | धीमी गति के बावजूद अदालतों में तीस प्रतिशत मामलों में सजा भी हो चुकी हैं | निश्चित रूप से हमारी न्याय व्यवस्था कमजोर है और मामले वर्षों तक लटके रहते हैं |
लोकतंत्र में विरोध और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की क्या कोई सीमा तय नहीं हो सकती है या जिम्मेदार लोग कोई लक्ष्मण रेखा तय नहीं कर सकते हैं ? समस्याएं हमेशा रही हैं और रहेंगी भी | यह लोकतंत्र का ही परिणाम है कि नरेंद्र मोदी बाकायदा निरंतर चुनाव जीतकर बीस वर्षों से मुख्यमंत्री और प्रधान मंत्री के पदों पर काम कर रहे हैं | विश्व के किसी लोकतान्त्रिक देश में ऐसा संभव नहीं हुआ | वहीँ उनके सत्तारूढ़ रहते हुए कई राज्यों में प्रतिपक्ष की सरकारें काम कर रही हैं | नितीश कुमार और नवीन पटनायक लगातार मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हैं | वे सत्तारूढ़ भाजपा के नेता नहीं हैं | महाराष्ट्र में कट्टर हिंदुत्व वाली शिव सेना और केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यमंत्री हैं | विशाल देश में समस्याओं का निदान और अपराधों पर नियंत्रण विभिन्न स्तरों पर ताल मेल से ही संभव हैं | राजनीतिक पार्टियां समय समय पर जातिगत या सांप्रदायिक आग न लगाएं तो गांवों से महानगरों तक करोड़ों लोग हमेशा मिल जुलकर समस्याओं से निपटना और रहना चाहते हैं | वर्तमान सेटेलाइट युग में क्या यह संभव हैं कि कोई देश भारत के किसी हिस्से पर कब्ज़ा कर ले और सेना मूक दर्शक सिर झुकाए बैठी रहे तथा दुनिया के अन्य देशों को भी पता नहीं चले ? क्या अमेरिका , यूरोप भी पाकिस्तान की तरह चीन के गुलाम हैं ?
यह माना जा सकता है कि सत्ता की व्यवस्था में हमेशा कमजोरियां रही हैं हैं और सुधार की गुंजाइश भी है | संघीय व्यवस्था में केंद्र या राज्य सरकारें ही नहीं जिला तहसील पंचायत स्तर तक अधिकार और जिम्मेदारियां हैं | यदि सेना , सर्वोच्च अदालत और संपूर्ण मीडिया को ही अविश्वसनीय तथा निरर्थक बताया जाता रहा तो आप किसके बल पर स्वयं भी सत्ता पाकर समाज और राष्ट्र का भला कर सकेंगें | भारत की शक्ति का असली समय तो अब शुरू ही हुआ है | बहुत दूर बहुत ऊँचा जाने के लिए भारत की शान बढ़ाने में हाथ बढ़ायेंगें तो आपको भी सुख शांति का अनुभव होगा |

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एक निवेदन

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1 COMMENT

  1. Ajeeb h aapka bhi tark, rape k aankdo se tay kremge k vipakch ko kya khna h? 30+ years se ptrkar hain kitni FIR darj hoti hain ye bhi nhi jante? British shashan 200 saal? History b tod mrod k? यदि सेना , सर्वोच्च अदालत और संपूर्ण मीडिया को ही अविश्वसनीय तथा निरर्थक बताया जाता रहा तो आप किसके बल पर स्वयं भी सत्ता पाकर समाज और राष्ट्र का भला कर सकेंगें … satta inke bal pe? To janta kahe k liye h mahoday?

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