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एक जैसी हो सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए पेंशन नीति

आज के भारत में अगर अपनी बात कहने के लिए यह कहा जाए की भारत की १०% के करीब  जन संख्या बरिष्ठ नागरिकों की  है ( ६० वर्ष आयु से ऊपर) एवं इस में से करीब ७० से ७५% प्रतिशत भारत के देहात में बस्ती है तो यह गलत नहीं होगा और उन में से अधिकांश को किसी प्रकार की ‘सेवा निब्रिती’ पेंशन नहीं मिलती है. बे बरिष्ठ नागरिक जो सरकारी सेवा से निब्रित होते रहे हैं उन को पेंशन मिलती रही है और इस पेंशन में साल १९९६ के बाद तो समान्यता दूसरों के मुकाबले अच्छी खासी बढोतरी भी होती रही है. आज के दिन आप को बहुत से रिटायर्ड सरकारी मुलाजम मिल जाएंगे जो जितना बेतन रिटायरमेंट के समय ले रहे थे शायद उस से भी दुगनी आज पेंशन ले रहे होंगे. इस के बिपरीत यदि हम गरीबी रेखा के नीचे के सरकारी माप दंड देखें  और इन्दिरा गाँधी नेशनल ओल्ड ऐज पेंशन स्कीम जो  ६० साल के ऊपर और गरीबी रेखा के नीचे के हिन्दुस्तानी  के लिए है और जिस के होने पर सभी राजनेता बड़ा गर्व महसूस करते हैं जिस के  अंतरगत एक बजुर्ग को कई जगह  एडियाँ रगड़ने के बाद २०० से ५०० रूपए प्रति माह पेंशन मिलती है किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएँगे जब उस को यह बताएया जाएगा कि आज एक सरकारी रिटायर्ड कर्मचारी जिस को ४०,०००  रुपये मासिक पेंशन मिलती है उस को १ जुलाई २०१५ से मूल वेतन  का ११९ % महंगाई बत्ता ( ४७,६००) भी मिलता है .

जरा सोचिये एक सीनियर सिटीजन जो सरकार से जुड़ा रहा है उस को प्रति माह  ४७६०० रूपए मिलने पर भी बे कहता है कि सरकार ने उस को कुछ नहीं दिया और दूसरी ओर एक बजुर्ग जिस को सरकार गरीबी रेखा से नीचे मानती है उस को उस के खाने और दबा दारू के लिए सिर्फ २०० से ५०० रूपए प्रति माह दे कर भी ‘मंत्री’ जी गर्व महसूस करते हैं. एक संस्था के अनुमान के अनुसार इस समय भारत के सरकारी खजाने पर रिटायर्ड सरकारी मुलाजमो का भोज जीडीपी का २.२ % है. कुछ आंकड़ों के अनुसार 31st मार्च 2011 को केंद्रीय सरकार के कर्मचारिओं की संख्या सिर्फ 30.87 लाख बताई गई है जिस को में थी.

सरकारी कर्मचारी तो ६० साल के बाद रिटायर होता है और उस को पेंशन भी मिलती है पर एक मजदूर जो बिना अधिकारिक अबकाश के शारीरिक काम करता है  ५० साल से पहले ही अकसर कमजोरी और बिमारिओं का शिकार हो जाता है इस लिए अगर हम उस की आर्थिक और शारीरिक स्थिति को ध्यान में रख कर ‘बरिष्ठ नागरिक’ की संख्या का अनुमान लगाएँ तो साल २००१ की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर 50 साल  से ऊपर के नागरिक १5% तक हो सकते हैं जो ६० साल की आयु के ऊपर के करीब ८% के आंकडे से दुगने होंगे . ब्याख्या करें’ तो आज के भारत में ऐसे ‘सीनियर सिटीजन’ जिस को जीने के लिए पेंशन जैसी आर्थिक सहाएता की आवश्यकता हो सकती है की संख्या १९ से २० करोड़  हो सकती है. इस आधार ( 50 साल आयु ) पर सीनियर सिटीजन की समस्याओं का अनुमान सरकारी कर्मचारी की जरूरत और ६० साल की रिटायरमेंट ऐज के आधार पर लगाना उचित नहीं होगा.

 

यहाँ एक और बात जिस की और ध्यान देने की जरूरत है बे यह है कि भारत की अधिकाँश आबादी जो देहात और गाँव में रहती है बे शिक्षा और आर्थिक स्तर पर पिछड़ी हुई है . इसलिए देहात या गाँव में अगर कुछ कार्यरत सरकारी कर्मचारी  या पेंशन भोगी सरकारी कर्मचारी के परिवार रहते भी हैं तो बे  भी अधिकतर  निम्न स्तर की सरकारी सेवा पेंशन या बेतन बाले ही होंगे. जिस प्रकार से आज के दिन सरकारी स्कूल और हॉस्पिटल से आम नागरिक को शिक्षा, उचित स्वस्थ सेवा और दबाई नहीं मिलती है  उस से आर्थिक स्तर पर पिछड़े परिवारों और जनों को बेकारी और बीमारी का शिकार होना पड़ रहा है. इस लिए आज के दिन भारत सरकार और राज्य सरकारों को ऐसे नागरिक जो सीनियर सिटीजन की श्रेणी में आते हों , जिन को आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए, जीने के लिए कितनी पेंशन की जरूरत है जैसे विषय पर पूर्ण विचार करना चाहिए. शायद यह कहना भी आज के संधर्व में अनुचित नहीं होगा कि  सरकारी खर्च पर राजनेताओं और कर्मचारिओं को किसी भी निजी हॉस्पिटल से स्वस्थ सेवा न दी जाए क्यों कि यदि ‘मालिक’ को स्वस्थ सेवा नहीं मिलती है तो फिर ‘प्रधान सेवक’ को कैसे मिल सकती है?

 

एक अनुमान के अनुसार भारत में ५०% से ज्यादा बजुर्ग अपने ही लोगों द्वारा प्रताड़ित होते हैं और इस में अधिकतर आर्थिक कारण से होते हैं. सरकारी मुलाजम को तो पेंशन के रूप  में इतनी आमदनी होती है की बे अपना निर्बह सामान्य डंग से कर सके पर  जिन लोगों ने  सरकारी नौकरी नहीं की होती उन को अधिकतर अपने बच्चों या सम्बंधियो पर निर्भर होना पड़ता है  और अधिकतर परिवारों में पड़ताडना का कारण आर्थिक तंगी हो सकती है.  इस लिए कहा जा सकता है की ९५ से ९८% बजुर्ग जो आर्थिक और मानसिक पर्ताडना में जीवन बिताते हैं बे रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी परिवार के नहीं होते और इन में से बहुत से इस लिए सामने नहीं आते क्यों कि भारत में आम आदमी का जीवन कुछ संस्कारों एवं सामाजिक बन्धनों से कुछ अधिक ही प्रभाबित है.

 

जुलाई २०१५ में करीब करीब ५० लाख केन्द्र सरकार के कर्मचारी ( इन परिवारों में २ करोड़ आश्रित जन होंगे ) और करीब ५६ लाख केंद्र सरकर के पेंशनर ( इन परिवारों में करीब १.५ करोड़ आश्रित जन  होंगे ) होने का अनुमान है. इस तरह से ५० लाख मुलाजमो को केन्द्र सरकार मासिक करीब  ३०३६४ Cr रूपए (Cr ३,६४,३६८ रूपए सलाना )  बेतन  दे रही होगी ( मूल बेतन  १३८६४  Cr रूपए  और महगाई बत्ता  Cr १६४९९ रूपए. ) . इसी तरह रिटायर्ड ५६ लाख मुलाजमो को करीब २४९१० Cr रूपए पेंशन दे रही होगी ( २९८९२० Cr रूपए सालाना )  ( मासिक Cr रूपए ९२४३ मूल और Cr १०९९९ रुपार  महगाई रिलीफ ). कुछ आंकड़ों के अनुसार 31st मार्च 2011 को केंद्रीय सरकार के कर्मचारिओं की संख्या सिर्फ 30.87 लाख भी बताई गई है जिस को चेक करने की जरूरत है.

 

इसी तरह राज्य सरकारों के करमचारियो के बारे में आंकड़े सामने आ सकते हैं. मेरे पास राज्य सरकारों के सेवा में और रिटायर्ड करमचारियो की संख्या के आंकडे नहीं हैं. केन्द्र सरकार के बेतन लेने बाले और पेंशन लेने बाले कर्मचारी अगर १ करोड़ ६ लाख हैं तो अनुमान  के लिए सभी राज्य सरकारों के ऐसे कर्मचारी कम से कम ४ करोड़ तो होंगे ही . आज की जनसँख्या अगर १२५ करोड़ है तो भारत में कम से कम २५ करोड़ परिवार होने चाहियें और इस आधार पर भारत के ८० % परिवार आज के दिन किसी प्रकार की  सरकारी  पेंशन योजना जिस का यहाँ बर्णन किया जा सके के दायरे में नहीं आते क्यों कि जो पेंशन सरकारी  मुलाजमो को मिलती है और जो कुछ पेंशन सरकारी सामाजिक योजनाओं के अंतर्गत सिर्फ गरीबी रेखा के नीचे बालों को भी दी जाती हैं उस में भी कम से कम १  और ५० का अनुपात देखा जा सकता है.

 

एक  बात  जिस  ओर आज ध्यान देने की अति अवश्यकता है  बे यह है कि राजनेता  और  सेवा में लगे उच्च पदों पर बैठे सरकारी  अधिकारी  अपने  निजी  स्वार्थ  और  हित  के लिए सरकारी करमचारियो एवम राजनेताओं  की सेवा  शर्तों  और  बेतन  में  बिना  संसद  या विधान सभा  को विश्वास  में लिए  कोई  निर्णय  न  कर  सकें क्यों  की  आज  के  दिन  अधिकतर बेतन  और सेवा निब्रण आयु जेसे विषेयों पर निर्णय राजनेता वोट की राजनिति करते हुए  लेते हैं. जिस प्रकार से सांसद और विधायक के बेतन और पेंशन के नियमो में परिवर्तन संसद या विदायिका ही करती है ऐसे ही एक सरकारी कर्मचारी के बेतन, रिटायरमेंट पेंशन और सेवा से निब्रित होने की आयु सीमा  जैसे  निर्णय सिर्फ सरकार के निर्देश पर नहीं होने चाहिए यह भी संसद या विधानसभा को ही करने चाहिएँ क्यों कि आज की चुनी हुई सरकारें राष्ट्रहित में कम और वोट लेने के स्वार्थ में ज्यादा निर्णय करने लग गई हैं.

 

किस प्रकार से आज के बेरोजगार युवा का जीविका  देने के नाम पर  सरकारें  भी शोषण कर रही है इस का अंदाजा जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा साल २०११ और साल २०१५ में बनाई गई नई भरती नीतिओं से लगाएआ जा सकता है. नवम्बर २०११ की जम्मू कश्मीर सरकार की नई भरती निति के अनुसार एक नयेअराज्पत्रिक कर्मचारी को पाँच साल तक एक चोथाई से एक तिहाई तक बेतन मिलना था जिस को साल २०१४ में चुनाब सामने देख कर कांग्रेस-नेशनल कांफ्रेंस सरकार ने बापिस ले लिया था. सत्ता में आने के बाद बीजेपी पीडीपी सरकार ने फिर से करीब करीब  बेसी ही निति बना दी और साथ ही लोगों को कुछ नौकरी देने का भी एलान कर दिया क्योंकी चुनाब अब २०२० में ही होने हैं.

हर सरकारी कर्मचारी से निष्काम सेवा की आशा की जाती है इस लिए यहाँ तक हो सके हर सरकारी कर्मचारी की रिटायरमेंट पेंशन के लिए निति एक जेसी होनी चाहिए . इतना जरूर है कि सरकारी कर्मचारी की पेंशन उचित स्तर की होनी चाहिए पर इस के लिए समाज कितना भोझ उठा सकता है इसका ध्यान रखना जरूरी है पर इस के साथ साथ सरकार के बाहर सेवा दे रहे आम जन की सामाजिक एवं जीने लायक आर्थिक सुरक्षा का ध्यान रखने का दायित्व भी एक सांसद और सरकारी कर्मचारी पर है.

 

बन रेंक बन पेंशन का विषय कुछ सालों से सेना के संधर्व में चर्चा में रहा है और इसी ५ सितम्बर को बीजेपी के नेत्रित्व बाली भारत सरकार ने इस बारे घोषणा कर दी है. बन रेंक बन पेंशन (‘ओआरओपी’ ) का सिधांत सभी सरकारी कर्मचारिओं के लिए होना चाहिए न कि सिर्फ सेना के लिए इस पर  धीमी आवाज में गलियारों में चर्चा शुरू हो गई है  और सीमा सुरक्षा बल जैसे विभागों से कुछ संकेत आ भी चुके हैं..  सबको इस ओर  ध्यान देना चाहिए , आंदोलनों का इन्तजार नहीं करना चाहिए. सरकारी करमचारियो की  सेवा शर्तों में अगर इतना अंतर हो की एक को पेंशन मिले और दुसरे को न मिले तो किसी भी समय विकट आन्दोलन की आशा की जा सकती है..

 

बजुर्गों को समाज का सहारा मिलना चाहिए क्यों कि उन्होंने अपनी जवानी में अपना ‘पसीना’ दिया होता है जो अब सूख चुका होता है. सरकारी कर्मचारी को दी जाने बाली रिटायरमेंट पेंशन भी इसी कारण दी जाती है. आज बहुत कम लोग और सरकारी कर्मचारी इस बात को समझते हैं कि सरकारी कर्मचारी को किसी भी प्रकार से अपना कोई अन्य काम सेवा के दौरान  धन अर्जित करने के लिए करने का न अधिकार है और न ही अनुमति है. यहाँ तक के अधिक धन कमाने की गरज से सम्पति की खरीद फ़रोख्त करना भी एक सरकारी मुलाजम के लिए एक तरह से  माना है . यह अल्ग बात है कि कई सरकारी कर्मचारी नियमों का उलंघन करते पाए जा  सकते हैं.

 

कोई कह सकता है कि कहीं कहीं पर सरकारी डॉक्टरों को निजी प्रैक्टिस करने की अनुमति है और जिन को अनुमति नहीं दि गई है फिर उन को नॉन प्रक्टिसिंग अलाउंस क्यों दिया जाता है, यहाँ तक की सेना में काम  कर रहे डॉक्टरों को भी  नॉन प्रक्टिसिंग अलाउंस  दिया जाता है. इस पर विस्तार से चर्चा कहीं और करेंगे  और यहाँ इतना ही काफी होगा कि यह एक छूट ख़ास कर के डॉक्टर को उस समय की सामाजिक परिस्थितिओं  में दी गई है अगरचे यहाँ भी कुछ को नॉन प्रक्टिसिंग अलाउंस देना किसी प्रकार से भी तर्क संगत नहीं है. डॉक्टरों को भी  निजी प्रैक्टिस करने की अनुमति सिर्फ उन की कमाई बढाने के लिए नहीं दी गई थी या है, अगर ऐसा होता तो फिर यह अनुमति एक सरकारी अभियंता या लिपिक के लिए भी होती.

 

इसलिए सरकार को अपनी नई पेंशन नीति जिस के अनुसार १जनबरी २००४ के बाद सेवा में लगे केन्द्र सरकार कर्मचारी ( जम्मू कश्मीर में १ जनबरी २०१० से ) के लिए पेंशन नहीं रखी गई है ( सेना को छोड़कर) उसपर पुनर विचार करना चाहिए. रिटायर हो कर पेंशन लेने बाले सरकारी करमचरिओं को भी इस के लिए सरकार और राजनेताओं पर दबाब डालना चाहिए कि उन की जगह लेने बाले नए कर्मचारिओं को भी उन की तरह ही पेंशन मिलनी चाहिए.

जरा सोचिये कि एक तरह से  आज जैसी सरकारी सेवा शर्तों के अनुसार साल २०३७ -३८  तक रिटायर होने बाले केंद्रीय  और जम्मू कश्मीर में साल २०४३-४४  तक रिटायर होने बाले करीब करीब सभी  सरकारी करमचारियो को तो पेंशन मिलेगी और शायद यही कारण है की आज कोई कर्मचारी संस्था नये भरती होने बाले कर्मचारियों के लिए पेंशन को बहाल  करने के लिए सरकार पर दबाब नहीं डाल रही क्यों कि इन की डोर एक तरह से पुराने करमचारियो के हाथ है.

 

 

ऐसे ही संसद और विधायक को पाँच साल से कम सेवा पर भी पूरे जीवन पेंशन का अधिकार है जब कि सरकारी सेवा और सार्वजानिक क्षेत्र में काम करने बालों को जा तो पेंशन ही नहीं मिलती और अगर मिलती भी है तो कम से कम २० साल या  अधिक  की सेवा के बाद. यह पक्षपात दूर करना होगा \

ऐसे ही निजी क्षेत्र या आम आदमी के लिए जिन सामाजिक सुरक्षा की पेंशन  योजनाओं की अकसर आज के शीर्ष नेता बात करते हैं बे भी १००० से ले कर ५००० रूपए प्रति माह  से ज्यादा पेंशन का सन्देश नहीं देती. अगर एक आम नागरिक को १००० से लेकर ५००० रूपए में जीविका की सुरक्षा बूड़े होने पर हो सकती है तो फिर सरकारी मुलाजम को इस से १० से २० गुणा अधिक पेंशन देने की क्या जरूरत है. मोदी जी ने अपने को जनता का प्रधान सेवक कहा है इस लिए उन्ही से कुछ कडबे – मीठे निरने लेने की आशा की जा सकती. 

और जो नए लोग सरकारी सेवा में आ रहे हैं बे नौकरी दूंदते दूंदते बेहाल हो चुके होते हैं इस लिए उनके पास इसके लिए सोचने  या आन्दोलन करने का समय नहीं होता . पर भविष्य में बे ऐसा कर सकते हैं इए को नाकारा नहीं  जा सकता . अगर सरकार को पेंशन बंद करनी ही थी तो आने बाले नए कर्मचारीओं के लिए ही क्यों,  जनबरी १ २००४ या जनबरी १ २०१० के बाद सेवा निब्रित होने बाले सभी कर्मचारिओं के लिए बंध करनी चाहिए थी. हाँ ऐसे निर्णय का अधिकार सिर्फ संसद या विदायका को ही होना चाहिए.

जम्मू कश्मीर में जो लोग सरकारी सेवा में १  January, 2010 से लगे हैं उन पर  Defined Contributory Pension Scheme (DCPS ) लागू है जो बंद की गई पेंशन स्कीम से बहुत ही निम्न स्तर की है. क्यों की यह निर्णय सिर्फ एक सरकारी आदेश से किए गए हैं इन को बड़ी आसानी से बापिस भी सरकारी आदेश से लिया जा सकता है.

सरकारी मुलाजम को पेंशन देने के साथ साथ सरकार और पेंशन लेने बालों को यह भी सोचना होगा कि उन को तो ६० साल की उमर के बाद खाने और स्वस्थ सेवा के लिए सरकार से पूरे जीवन कुछ धन मिल जाता है पर एक आम दैनिक काम करनेबाले मजदूर / ठेलेबाले/ निजी मालिक के कर्मचारी को बूड़े या अपाहज हो जाने पर कोई सहारा नहीं होता है. इंसानियत के साथ इस से बड़ा मजाक और कोई भी नहीं हो सकता कि आज के दिन २०० से५०० रूपए की गरीब बुडापा पेंशन  दी जाए और बे भी कुछ ही अति ‘गरीब’लोगों को, राजनेताओं को आम आदमी के साथ राजनिति का खेल खेलने से रोकना होगा.  और अगर सरकार आम जन के लिए सरकारी खजाने पर २०० -५०० रूपए से ज्यादा मासिक पेंशन का भोज नहीं डाल सकती तो फिर उसी सरकारी खजाने पर  एक सरकारी कर्मचारी या संसद को हजारों रूपए की पेंशन देने का भोज कैसे डाल सकती है ?

 

( श्री दयासागर वरिष्ठ लेखक एवं स्तंभकार हैं, वे विभिन्न सामाजिक व राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखते हैं।)

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