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दोहा सृजन

कबिरा इतना लिख गये, क्या लिख्खे हम यार ।
उसने तो की साधना, हम करते व्यापार।।

तुलसी जैसा तप कहाँ, कहँ कलम में भार।
अब घसियारे कलम के, मांगे पद दरबार ।।

मीरा ने श्रृंगार में, जपा कृष्ण का नाम ।
आज सुरीले कंठ की, चाहत केवल दाम ।।

सूर देखते हृदय से ,बाल कृष्ण का रूप ।
लेकिन अब डूबे नयन, काम वासना कूप ।।

लिखे बिहारी की क़लम, सत्य और गंभीर ।
आज क़लम से खींंचते, कविगण मिलकर चीर ।।

खुसरो ने संकेत में, समझा दी हर बात ।
भाषा अब संकेत की, करती केवल घात।।

रहिमन के संदेश में, था जीवन का सार ।
अब जितने संदेश हैं, सबके सब बेकार ।।

– संदीप सृजन
संपादक – शाश्वत सृजन
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